'लोकतांत्रिक नींव पर हो रहा हमला', कांग्रेस नेता जयराम रमेश ने शेयर किया नेहरू का माफीनामा; कही ये बात
हाल ही में पारित वक्फ (संशोधन) अधिनियम को लेकर भाजपा सांसदों की आलोचना के बाद कांग्रेस नेता जयराम रमेश ने 1959 में सीजेआई को लिखे नेहरू के माफीनामे को ...और पढ़ें

पीटीआई, नई दिल्ली। हाल ही में पारित वक्फ (संशोधन) अधिनियम को लेकर भाजपा सांसदों निशिकांत दुबे और दिनेश शर्मा द्वारा सुप्रीम कोर्ट की आलोचना से उपजे विवाद के बाद कांग्रेस नेता जयराम रमेश ने वर्ष 1959 में सीजेआई को लिखे पूर्व प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू के माफीनामे को अपने एक्स पोस्ट पर साझा किया।
उन्होंने इस माफीनामे का हवाला देते हुए कहा कि इस तरह लोकतांत्रिक नींव का निर्माण हुआ, जिस पर अब हमला हो रहा है। गौरतलब है कि वक्फ (संशोधन) अधिनियम के कुछ प्रविधानों को सुप्रीम कोर्ट में चुनौती दी गई है।
जयराम रमेश ने अपने एक्स पोस्ट में क्या लिखा?
एक्स पोस्ट में रमेश ने कहा कि 26 जून, 1959 को नेहरू ने भारत के चीफ जस्टिस एसआर दास और सुप्रीम कोर्ट के जज विवियन बोस को पत्र लिखकर 10 जून, 1959 को नई दिल्ली में एक प्रेस कांफ्रेंस में की गई अपनी टिप्पणियों पर गहरा खेद व्यक्त किया था। उनकी टिप्पणी को जस्टिस बोस की आलोचना माना गया था जो उस समय मूंदड़ा मामले की जांच कर रहे थे। उन्होंने कहा कि इस तरह लोकतांत्रिक नींव का निर्माण हुआ, जिस पर अब हमला हो रहा है।
जयराम रमेश के इस ट्वीट का समर्थन उनकी पार्टी के सहयोगी और राज्यसभा सांसद अभिषेक सिंघवी ने किया। उन्होंने कहा कि मित्र जयराम रमेश द्वारा किया गया ट्वीट दिखाता है कि किस तरह महान लोगों के मन में उदारता और विनम्रता स्वाभाविक रूप से समाहित थी। मुझे यकीन है कि आज भी कई लोग, जिनमें उच्च पदों पर बैठे लोग भी शामिल हैं, यह कभी नहीं समझ पाएंगे कि ऐसे लोगों और मूल्यों को क्या खास बनाता है।
न संसद, न कार्यपालिका, संविधान सर्वोच्च है : सिब्बल
राज्यसभा सांसद कपिल सिब्बल ने मंगलवार को उपराष्ट्रपति जगदीप धनखड़ पर पलटवार करते हुए कहा कि न संसद, न ही कार्यपालिका, बल्कि संविधान सर्वोच्च है। धनखड़ ने हाल ही में सुप्रीम कोर्ट के आदेश पर उनकी टिप्पणी पर सवाल उठाने के लिए आलोचकों को आड़े हाथों लिया था।
सिब्बल ने दावा किया कि कोर्ट ने जो कुछ भी कहा वह देश के संवैधानिक मूल्यों के अनुरूप था और राष्ट्रीय हित से प्रेरित था। एक्स पोस्ट में सिब्बल की टिप्पणी धनखड़ के उस बयान के तुरंत बाद आई, जिसमें उन्होंने कहा था कि संवैधानिक पदाधिकारी का बोला गया हर शब्द सर्वोच्च राष्ट्रहित से प्रेरित होता है।

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