क्रूरता, गंभीर चोट या आत्महत्या के लिए प्रेरित करना... SC ने सास, ससुर और ननद के खिलाफ क्यों रद किया मुकदमा?
सुप्रीम कोर्ट ने कहा है कि आईपीसी की धारा 498ए (दहेज प्रताड़ना) के तहत दंडनीय अपराध के लिए पीड़िता पर क्रूरता के आरोप होने चाहिए। अस्पष्ट आरोपों से मामला नहीं बनता। कोर्ट ने सास ससुर और ननद के खिलाफ दहेज प्रताड़ना का मुकदमा रद्द कर दिया क्योंकि उनके खिलाफ लगाए आरोप सामान्य प्रकृति के थे।

जागरण ब्यूरो, नई दिल्ली। सुप्रीम कोर्ट ने अपने एक फैसले में बताया है कि आईपीसी की धारा 498ए (दहेज प्रताड़ना) अपराध के मुख्य तत्व हैं। कोर्ट ने कहा है कि आईपीसी की धारा 498-ए के तहत दंडनीय अपराध के लिए पीड़िता पर क्रूरता करने के आरोप होने चाहिए। उसमें पति और उसके परिवार के सदस्यों द्वारा की गई क्रूरता ऐसी प्रकृति की होनी चाहिए कि वह गंभीर चोट पहुंचाने या पीड़िता को आत्महत्या के लिए प्रेरित करने अथवा खुद को गंभीर चोट पहुंचाने के लिए प्रेरित करने, के इरादे से की गई हो।
कोर्ट ने कहा कि अस्पष्ट और सामान्य आरोपों से प्रथम दृष्टया मामला नहीं बनता। यह कहते हुए शीर्ष अदालत ने सास, ससुर और ननद के खिलाफ आईपीसी की धारा 498-ए, (दहेज प्रताड़ना), 377 (आप्राकृतिक यौनाचार) और 506 (आपराधिक धमकी) का मुकदमा रद कर दिया।
किस मामले में सुनाया फैसला?
ये फैसला प्रधान न्यायाधीश बीआर गवई, के. विनोद चंद्रन और अतुल एस चंदुरकर की पीठ ने महाराष्ट्र के नागपुर के एक मामले में दहेज प्रताड़ना व अन्य धाराओं के तहत दर्ज मुकदमा रद करने की सास, ससुर और ननद की याचिका स्वीकार करते हुए हुए सुनाया है। हालांकि कोर्ट ने स्पष्ट किया है कि इस आदेश का असर पति के खिलाफ इन्हीं धाराओं, आईपीसी धारा 498-ए, 377 और 506 में चल रहे मुकदमे पर नहीं पड़ेगा।
अदालत ने और क्या कहा?
कोर्ट ने सास, ससुर और ननद की याचिका स्वीकार करते हुए कहा कि उनके खिलाफ आईपीसी की धारा 498-ए, 377 और 506 में दर्ज मुकदमा रद करने योग्य है। कोर्ट ने किसी मामले को रद करने की मांग स्वीकार करने के बारे तय मानदंड बताए हैं।
कोर्ट ने कहा कि मामला रद करते समय यह देखा जाता है कि अगर एफआईआर और शिकायत में लगाए गए आरोप प्रथम दृष्टया सही भी माने जाएं तो भी उसमें कोई अपराध न बनता हो और ऐसे में मामला रद करना न्यायोचित है। अस्पष्ट और सामान्य आरोपों से प्रथम दृष्टया अपराध नहीं बनता।
कोर्ट ने कहा कि अगर आईपीसी की धारा 498-ए के दंडनीय अपराध के तत्व को देखा जाए तो इसमें जरूरी है कि पीड़िता पर क्रूरता हुई हो। पति और उसके परिवार के सदस्यों द्वारा की गई क्रूरता ऐसी प्रकृति की होनी चाहिए कि वह गंभीर चोट पहुंचाने या पीड़िता को आत्महत्या के लिए प्रेरित करने या खुद को गंभीर चोट पहुंचाने के लिए प्रेरित करने के इरादे से की गई हो। यह क्रूरता किसी संपत्ति या मूल्यवान चीज की अवैध मांग के लिए पति या उसके रिश्तेदारों द्वारा की गई हो।
पीठ ने कहा कि इन पहलुओं पर सुप्रीम कोर्ट के पूर्व फैसले दिगंबर एवं अन्य में विस्तार से विचार किया गया है। कोर्ट ने कहा कि मौजूदा मामले में एफआईआर को अगर देखा जाए तो सास, ससुर और ननद पर लगाए गए आरोप सामान्य प्रकृति के हैं। धारा 498-ए के तहत याचिकाकर्ताओं के खिलाफ प्रथम दृष्टया मामला नहीं बनता।
कोर्ट ने कहा कि धारा 377 और 506 के बारे में सिर्फ पति पर ही आरोप लगाए गए हैं।इस केस में शादी जुलाई 2021 में हुई थी।
क्या है मामला?
पत्नी ने आरोप लगाया था कि शादी के बाद से ही पैसे और उपहारों की मांग की जाने लगी। कई बार वह मायके से उपहार लाई लेकिन ससुराल वाले संतुष्ट नहीं हुए। पीड़िता ने पति पर आप्राकृतिक यौनाचार का भी आरोप लगाया था।
फरवरी 2022 नागपुर के बजाज नगर थाने में पति, सास, ससुर और ननद के खिलाफ एफआइआर दर्ज कराई। जिसे रद करने की मांग याचिका में की गई थी।
यह भी पढ़ें- 'मुठभेड़ में मारे गए नक्सली कमांडर के शव का न हो अंतिम संस्कार', सुप्रीम कोर्ट ने क्यों कही ये बात?
कमेंट्स
सभी कमेंट्स (0)
बातचीत में शामिल हों
कृपया धैर्य रखें।