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    सुप्रीम कोर्ट ने की सतलुज यमुना लिंक नहर विवाद सुलझाने की वकालत, केंद्र से अहम भूमिका निभाने की अपील

    By AgencyEdited By: Devshanker Chovdhary
    Updated: Thu, 23 Mar 2023 09:54 PM (IST)

    सुप्रीम कोर्ट ने केंद्र सरकार से कहा कि वह पंजाब और हरियाणा के बीच चले आ रहे दो दशक से भी पुराने सतलुज-यमुना लिंक नहर विवाद का समाधान निकालने के लिए मुख्य मध्यस्थ की भूमिका निभाते हुए मूक दर्शक बने रहने के बजाय और सक्रियता दिखाए। File Photo

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    सुप्रीम कोर्ट ने की सतलुज यमुना लिंक नहर विवाद सुलझाने की वकालत।

    नई दिल्ली, पीटीआई। सुप्रीम कोर्ट ने केंद्र सरकार से कहा कि वह पंजाब और हरियाणा के बीच चले आ रहे दो दशक से भी पुराने सतलुज-यमुना लिंक नहर विवाद का समाधान निकालने के लिए मुख्य मध्यस्थ की भूमिका निभाते हुए मूक दर्शक बने रहने के बजाय और सक्रियता दिखाए।

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    सुप्रीम कोर्ट ने की वकालत

    शीर्ष अदालत ने साथ ही पंजाब और हरियाणा की सरकारों से भी कहा कि वह इस नदी जल बंटवारे के विवाद को सुलझाने के लिए आपस में चर्चा करें। संजय किशन कौल, अहसानुद्दीन अमानुल्लाह और अरविंद कुमार की पीठ ने गुरुवार को पंजाब और हरियाणा सरकार की दलीलें सुनने के बाद कहा कि वह दोनों राज्यों से उम्मीद करते हैं कि वह मिलजुलकर इसका हल निकालेंगे। प्राकृतिक संसाधनों को आपस में साझा किया जाना चाहिए।

    उन्होंने कहा कि केंद्र सरकार को दोनों राज्यों के बीच खाई को पाटने के लिए अहम भूमिका निभाने की उम्मीद करते हैं। इससे पहले, पंजाब सरकार ने सुनवाई के दौरान सर्वोच्च अदालत को बताया कि राज्य में भीषण जल संकट है और नदी का पानी सूखते हुए तलछट की ओर बढ़ता जा रहा है। ऐसे में ताजमहल जैसी नहर बनवाने का कोई मतलब ही नहीं है जब उसमें पानी का प्रवाह ही नहीं होगा।

    दोनों राज्यों की सरकारों से चर्चा करने की अपील

    दूसरी ओर, हरियाणा सरकार ने सुप्रीम कोर्ट से कहा कि उनके राज्य के लोगों को पानी की जरूरत है जो पंजाब से आता है। इसलिए उसे कोर्ट के आदेश का पालन करते हुए अपने क्षेत्र में नहर का निर्माण कराना होगा। उल्लेखनीय है कि इस मामले में सुप्रीम कोर्ट ने वर्ष 2002 में हरियाणा के पक्ष में फैसला सुनाया था और पंजाब एसवाइएल कनाल को एक साल के अंदर बनाने का आदेश दिया था।

    वहीं, वर्ष 2004 में पांच नदियों वाले पंजाब की याचिका के बाद सुप्रीम कोर्ट ने अपने पुराने फैसले को कायम रखा और याचिका खारिज कर दी। इसके बाद पंजाब ने कानून पास करके हरियाणा के साथ एसवाइएल नगर परियोजना के समझौते को रद कर दिया था।

    जस्टिस अमानुल्लाह ने केंद्र सरकार की ओर से पेश अटर्नी जनरल आर. वेंकटरमानी से कहा कि कई राज्यों के जल बंटवारे के विवाद में केंद्र ही मुख्य मध्यस्थ होता है। आखिर केंद्र मूक दर्शक बने रहने के बजाय कोई सक्रिय भूमिका क्यों नहीं निभाता है।

    विवाद सुलझाने की हो रही कोशिश

    इस पर वेंकटरमानी ने कहा कि कोर्ट के दिशा-निर्देश के अनुसार केंद्र ने हर तरह के प्रयास करके देख लिए हैं। पंजाब और हरियाणा सरकारों ने बैठकें भी कीं लेकिन दोनों के बीच नहर के निर्माण को लेकर कोई सहमति नहीं बनी। हमारे विचार से कुछ और बैठकें किए जाने की जरूरत है। एक संपूर्ण समाधान के लिए जलशक्ति मंत्रालय सभी प्रयास कर रहा है।

    ध्यान रहे कि एसवाईएल कनाल की अवधारणा के लिए रावी और व्यास नदियों के जल का सदुपयोग करने का निर्देश दिया गया था। इस परियोजना के तहत 214 किमी लंबी नहर बननी है, जिसमें से 122 किमी हिस्सा पंजाब में और 92 किमी हिस्सा हरियाणा में आएगा। हरियाणा ने अपने क्षेत्र में परियोजना को पूरा कर लिया है। पंजाब ने वर्ष 1982 में इसका काम शुरू करके इस योजना को ही ठप कर दिया।