निष्पक्षता, काम की गरिमा के सम्मान के साथ दी जानी चाहिए सरकारी नौकरी, अस्थायी नियुक्तियों पर SC ने जताई नाराजगी
सुप्रीम कोर्ट ने सरकारी नौकरियों में अस्थायी नियुक्तियों पर नाराजगी जताई है। पीठ ने कहा कि इससे लोक प्रशासन में भरोसा कम होता है। अदालत ने उत्तर प्रदेश उच्च शिक्षा सेवा आयोग के कुछ कर्मचारियों की सेवाओं को नियमित करते हुए कहा कि सरकार संवैधानिक नियोक्ता है। अदालत ने यह भी कहा कि सरकारी नौकरी निष्पक्षता और सम्मान के साथ दी जानी चाहिए।

डिजिटल डेस्क, नई दिल्ली। सुप्रीम कोर्ट ने सरकारी नौकरियों में ''तदर्थवाद'' या अस्थायी तौर पर नियुक्तियों को लेकर मंगलवार को नाराजगी जताई। जस्टिस विक्रम नाथ और जस्टिस संदीप मेहता की पीठ ने कहा कि अस्थायी लेबल या पदनाम से लंबे समय तक नियमित काम करवाने से लोक प्रशासन में भरोसा कम होता है। शीर्ष अदालत 1989 और 1992 के बीच आयोग द्वारा नियुक्त कुछ कर्मचारियों की अपील पर सुनवाई कर रही थी। इसमें इलाहाबाद हाई कोर्ट के आदेश को चुनौती दी गई थी।
हाई कोर्ट ने उनकी अपील को यह कहते हुए खारिज कर दिया था कि उनकी नियुक्ति दैनिक वेतनभोगी के रूप में की गई थी। नियमितीकरण के लिए उत्तर प्रदेश उच्चतर शिक्षा सेवा आयोग में कोई नियम नहीं है।
सर्वोच्च न्यायालय ने 24 फरवरी, 2002 से सभी आवेदकों को नियमित कर दिया। इसके लिए राज्य और प्रतिष्ठान (यूपी शिक्षा सेवा चयन आयोग) बिना किसी चेतावनी या पूर्व शर्त के संबंधित संवर्गों, श्रेणी-IV(ड्राइवर या समकक्ष) और श्रेणी- V (चपरासी/अटेंडेंट/गार्ड या समकक्ष) में अतिरिक्त पद सृजित करेंगे।
अस्थायी पदनामों से कम होता है विश्वास- SC
पीठ ने उत्तर प्रदेश उच्च शिक्षा सेवा आयोग में कुछ कर्मचारियों की सेवाओं को नियमित करते हुए कहा, राज्य (यहां केंद्र और राज्य सरकारों दोनों का उल्लेख है) संवैधानिक नियोक्ता है। जहां काम दिन-प्रतिदिन और साल-दर-साल किया जाता है, वहां संस्थान की स्वीकृत संख्या और नियुक्ति की प्रक्रियाओं में इस वास्तविकता की झलक होनी चाहिए। अस्थायी पदनामों से लंबे समय तक नियमित काम लेने पर न केवल सार्वजनिक प्रशासन में विश्वास कम होता है, बल्कि समान संरक्षण का भी उल्लंघन होता है।
अस्थायी नियुक्ति को प्राथमिकता क्यों - SC
पीठ ने कहा, आर्थिक तंगी निस्संदेह लोक नीति में स्थान रखती है, लेकिन यह कोई ऐसा चमत्कारी उपाय नहीं है जो निष्पक्षता, तर्क और विधिसम्मत ढंग से कार्य करने की जिम्मेदारी को समाप्त कर दे। यह विशेष रूप से ध्यान देने योग्य है कि जहां प्रशासनिक पारदर्शिता नहीं होती, वहां 'तदर्थवाद' फलता-फूलता है।
पीठ ने कहा कि सरकारी विभागों को सटीक रजिस्टर और आउटसोर्सिंग व्यवस्थाएं रखनी चाहिए। साक्ष्य के साथ यह स्पष्ट करना चाहिए कि जहां काम स्थायी है, वहां वे अधिकृत पदों के बजाय अस्थायी नियुक्ति को प्राथमिकता क्यों देते हैं।
अदालत ने कहा कि यदि सरकार द्वारा किसी ''बाध्यता'' का हवाला दिया गया हो, तो यह स्पष्ट रूप से दर्शाया जाना चाहिए कि किन विकल्पों पर विचार किया गया, समान रूप से तैनात कर्मचारियों के साथ अलग व्यवहार क्यों किया गया, और चुना गया रास्ता किस प्रकार भारत के संविधान के अनुच्छेद 14, 16 और 21 के अनुरूप है।
सरकारी नौकरी सम्मान के साथ दी जानी चाहिए- SC
शीर्ष अदालत ने कहा कि सरकारी नौकरी निष्पक्षता, तर्कसंगत निर्णय लेने और काम की गरिमा के सम्मान के साथ दी जानी चाहिए। हालांकि पदों का सृजन मुख्य रूप से कार्यपालिका का कार्य है, लेकिन मनमाने तरीके से पदों को मंजूरी देने से इन्कार करने पर न्यायिक समीक्षा से छूट नहीं दी जा सकती।
पीठ ने कहा कि वित्तीय बाधाओं की सामान्य दलील पर अस्वीकृति देना, कार्यात्मक आवश्यकता की अनदेखी करना तथा नियोक्ता द्वारा नियमित कर्तव्यों के निर्वहन के लिए दैनिक वेतनभोगियों पर लंबे समय से निर्भरता को नजरअंदाज करना आदर्श लोक संस्थान से अपेक्षित तर्कसंगतता के मानक को पूरा नहीं करता है।
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