'घटिया जांच का उत्कृष्ट उदाहरण', नाबालिग से दुष्कर्म और हत्या के दो आरोपियों को बरी करते हुए SC की टिप्पणी
सुप्रीम कोर्ट ने नाबालिग लड़की से दुष्कर्म और हत्या के मामले में दो दोषियों को बरी कर दिया। अदालत ने जांच और सुनवाई प्रक्रिया में कमियों को उजागर किया। डीएनए रिपोर्ट को रद्दी करार दिया गया क्योंकि रक्त के नमूने लेने के सबूत पेश नहीं किए गए। अदालत ने कहा कि अभियोजन पक्ष अपराध साबित करने में विफल रहा इसलिए आरोपियों को संदेह का लाभ दिया गया।
डिजिटल डेस्क, नई दिल्ली। सुप्रीम कोर्ट ने मंगलवार को एक नाबालिग लड़की से दुष्कर्म और हत्या के मामले में मौत की सजा पाए एक दोषी समेत दो लोगों को बरी कर दिया। शीर्ष कोर्ट ने इसे निरर्थक व घटिया जांच और लचर सुनवाई प्रक्रिया का उत्कृष्ट उदाहरण बताया और कहा कि दोनों के रक्त के नमूने एकत्र करने संबंधी कोई भी दस्तावेज सुबूत के तौर पर पेश नहीं किया गया। इससे डीएनए रिपोर्ट रद्दी कागज बनकर रह गई।
जस्टिस विक्रम नाथ, जस्टिस संजय करोल और जस्टिस संदीप मेहता की पीठ ने कहा कि अभियोजन पक्ष दोनों अपीलकर्ताओं का अपराध साबित करने में बिल्कुल असफल रहा क्योंकि उसने ऐसे सुबूत पेश नहीं किए जिन्हें मामले को संदेह से परे साबित करने वाला कहा जा सके। पीठ ने कहा कि घटिया जांच के कारण एक मासूम बच्ची के साथ दुष्कर्म और हत्या से जुड़े मामले की सुनवाई विफल हो गई।
अपीलकर्ताओं को संदेह का लाभ
शीर्ष अदालत का यह फैसला इलाहाबाद हाई कोर्ट के अक्टूबर, 2018 के फैसले के विरुद्ध दायर अपीलों पर आया है। हाई कोर्ट ने निचली अदालत द्वारा दोषी पुतई को सुनाई गई मौत की सजा बरकरार रखी थी।
निचली अदालत ने एक अन्य आरोपित दिलीप को आजीवन कारावास की सजा सुनाई थी। शीर्ष अदालत ने कहा, उसे अहसास है कि यह मामला 12 वर्षीय बच्ची से दुष्कर्म और उसकी नृशंस हत्या के जघन्य कृत्य से जुड़ा है। लेकिन उसके पास अपीलकर्ताओं को संदेह का लाभ देकर बरी करने के अलावा कोई विकल्प नहीं बचा।
विश्वसनीय सुबूत पेश करने में विफल
अदालत ने कहा, जांच अधिकारियों ने आस-पास के खेतों में किसी से पूछताछ करने की जहमत नहीं उठाई, जहां नाबालिग का शव मिला था। अभियोजन एकत्रित फोरेंसिक नमूनों की कस्टडी चेन साबित करने के लिए विश्वसनीय सुबूत पेश करने में विफल रहा, सिर्फ इसी आधार पर डीएनए रिपोर्ट महत्वहीन हो गई।
अभियोजन पक्ष ने दावा किया कि खोजी कुत्ते ने अपराध स्थल पर मिले पुरुष के छोटे कंघे को सूंघा, जो दिलीप के घर तक ले गया। लेकिन शीर्ष अदालत ने कंघे के रंग को लेकर विरोधाभासों को रेखांकित किया। कहा कि घटनास्थल से दिलीप के घर तक खोजी कुत्ते की प्रक्रिया का दस्तावेजीकरण नहीं किया गया जो प्रक्रिया को संदिग्ध बनाता है।
खेत में मिला था नाबालिग का शव
पीठ ने जनवरी, 2014 की पहली डीएनए जांच रिपोर्ट को भी निष्कर्ष विहीन पाया, जिसके बाद अभियोजन ने हाई कोर्ट में अपीलें लंबित रहने के दौरान दो दिसंबर, 2014 की एक पूरक डीएनए रिपोर्ट पेश की। लेकिन अदालत ने इनमें विरोधाभास इंगित किया। पीठ ने कहा कि अभियोजन पक्ष डीएनए की तुलना के लिए अभियुक्तों के रक्त के नमूने लेने की प्रक्रिया, तिथि या समय को साबित करने वाला सुबूत पेश करने में विफल रहा।
अभियोजन ने जब्त नमूनों को सुरक्षित रखने की पूरी श्रृंखला स्थापित करने के लिए किसी गवाह से पूछताछ नहीं की। नाबालिग बच्ची चार सितंबर, 2012 को लापता हुई थी। उसका शव एक खेत में मिला था। इसके बाद सितंबर, 2012 में अपीलकर्ताओं को गिरफ्तार किया गया था।
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