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    11 साल बाद मौत की सजा से बरी हुआ शख्स, सुप्रीम कोर्ट ने सुनाया अहम फैसला; पीठ ने कहा- अगर कीमत खून हो तो...

    Updated: Wed, 16 Jul 2025 09:48 PM (IST)

    सुप्रीम कोर्ट ने 2013 में परिवार की हत्या के दोषी बलजिंदर को बरी कर दिया। अदालत ने पंजाब एवं हरियाणा हाई कोर्ट के फैसले को रद्द करते हुए अभियोजन पक्ष के गवाहों के बयानों में विरोधाभास पाया। कोर्ट ने कहा कि जब मानव जीवन खतरे में हो तो मामले को पूरी ईमानदारी से निपटाना चाहिए।

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    तीन सदस्यीय पीठ ने दोषी की मौत की सजा से बरी किया (फोटो: पीटीआई)

    पीटीआई, नई दिल्ली। सुप्रीम कोर्ट ने बुधवार को कहा कि जब मानव जीवन दांव पर हो और उसकी कीमत खून हो तो मामले में बेहद ईमानदारी की जरूरत होती है। इसके साथ ही शीर्ष अदालत ने 2013 में अपने परिवार की हत्या के जुर्म में मौत की सजा पाए बलजिंदर नामक व्यक्ति को बरी कर दिया।

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    जस्टिस विक्रम नाथ, जस्टिस संजय करोल और जस्टिस संदीप मेहता की तीन सदस्यीय पीठ ने दोषी की मौत की सजा बरकरार रखने वाले पंजाब एवं हरियाणा हाई कोर्ट के आदेश को रद कर दिया। शीर्ष अदालत ने अभियोजन पक्ष के प्रमुख गवाहों की गवाही में बड़े विरोधाभासों को रेखांकित किया और कहा कि यह नहीं कहा जा सकता कि अभियोजन पक्ष ने अपने मामले को संदेह से परे साबित कर दिया है।

    जान से मारने की दी थी धमकी

    साथ ही कहा, 'दोहराव की कीमत पर हमें यह कहना होगा कि सुबूत के मानक बिल्कुल सख्त हैं और इससे कोई समझौता नहीं किया जा सकता। जब मानव जीवन दांव पर हो और उसकी कीमत खून हो, तो मामले को पूरी ईमानदारी से निपटाया जाना चाहिए।'

    अभियोजन पक्ष ने आरोप लगाया था कि बलजिंदर ने 29 नवंबर, 2013 को पंजाब के एक गांव में अपनी पत्नी, अपने बच्चों एवं साली की हत्या कर दी थी और दो अन्य को घायल कर दिया था। हत्याओं से कुछ दिन पहले दोषी अपनी सास से मिलने गया था और उसने अपनी पत्नी व बच्चों को जान से मारने की धमकी दी थी, जो पैसों के विवाद में उसे छोड़कर चले गए थे।

    कोर्ट ने सुनाया अहम फैसला

    तलाक के समझौते के तहत बलजिंदर और उसकी बहन को उसके पूर्व पति द्वारा 35,000 रुपये दिए जाने थे। बलजिंदर की सास इस रकम के लिए उसकी बहन के पूर्व पति की गारंटर बनी थी। जब यह रकम नहीं चुकाई गई, तो बलजिंदर और उसकी पत्नी के बीच लगातार झगड़े होने लगे। झगड़ा इतना बढ़ गया था कि बलजिंदर ने पैसे नहीं देने पर अपनी पत्नी और बच्चों को जान से मारने की धमकी दी थी।

    शीर्ष अदालत ने अपने फैसले में गवाहों द्वारा अलग-अलग समय पर एक ही घटना के अलग-अलग वर्णन और सुविधानुसार अपने बयानों से मुकरने पर प्रकाश डाला। पीठ ने कहा, 'अभियोजन पक्ष की टाइमलाइन और उसके दो प्रमुख गवाहों के बीच घटना के बारे में मूलभूत विवरण बिल्कुल भी मेल नहीं खाते। इसलिए अभियोजन पक्ष के गवाहों की गवाही में बड़े विरोधाभास हैं और अभियोजन पक्ष की कहानी में बड़ी विसंगति पैदा करते हैं।'

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