औपचारिक शिक्षा भी नहीं, मिली है डॉक्टरेट की उपाधि, पढ़ें पद्म विभूषण तीजन बाई की कहानी
पंडवानी गायिकाएं पहले केवल बैठकर गाती थीं जिसे वेदमती शैली कहा जाता है। तीजनबाई वे पहली महिला थीं जो जिन्होंने कापालिक शैली में पंडवानी का प्रदर्शन किया।
रायपुर, हिमांशु शर्मा। छत्तीसगढ़ की मशहूर लोक गायिका डॉ तीजन बाई को पद्म विभूषण पुरस्कार से सम्मानित किया गया। एक छोटे गांव से लेकर पद्म विभूषण से सम्मानित तीजन बाई की एक लंबी कहानी है। छत्तीसगढ़ की प्राचीन पंडवानी कला को बढ़ाने में तीजन बाई का विशेष स्थान है।
तीजन बाई छत्तीसगढ़ राज्य के पंडवानी लोक गीत-नाट्य की पहली महिला कलाकार हैं। उन्होंने कोई औपचारिक शिक्षा नहीं ली है, लेकिन उनकी उपलब्धि को देखते हुए बिलासपुर केंद्रीय विश्वविद्यालय द्वारा उन्हें डी. लिट की मानद उपाधि से सम्मानित किया जा चुका है। देश-विदेश में अपनी कला का प्रदर्शन करने वाली तीजन बाई ने छत्तीसगढ़ की प्राचीनतम पंडवानी गायन कला को जीवित रखा है और अब वे उसे अगली पीढ़ी तक पहुंचा रही हैं।
13 साल की उम्र में किया था पहला मंच प्रदर्शन
छत्तीसगढ़ के भिलाई के गांव गनियारी में तीजन बाई का जन्म हुआ था और इनके नाना ब्रजलाल ने इन्हें प्राचीन पंडवानी कला को आगे बढ़ाने के लिए प्रेरित किया। वे उन्हें महाभारत की कहानियां गाते सुनाते और धीरे-धीरे उन्हें यह कहानियां याद हो गई। उनकी लगन और प्रतिभा को देखकर उमेद सिंह देशमुख ने उन्हें पंडवानी का अनौपचारिक प्रशिक्षण दिया। 13 वर्ष की उम्र में उन्होंने अपना पहला मंच प्रदर्शन किया। उस समय में महिला पंडवानी गायिकाएं केवल बैठकर गा सकती थीं जिसे वेदमती शैली कहा जाता है। पुरुष खड़े होकर कापालिक शैली में गाते थे।
तीजन बाई वे पहली महिला थीं जो जिन्होंने कापालिक शैली में पंडवानी का प्रदर्शन किया। एक दिन ऐसा भी आया जब प्रसिद्ध रंगकर्मी हबीब तनवीर ने उन्हें सुना और तबसे तीजन बाई का जीवन बदल गया। तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी से लेकर अनेक अतिविशिष्ट लोगों के सामने देश-विदेश में उन्होंने अपनी कला का प्रदर्शन किया।
अद्भुत होता है पंडवानी का प्रदर्शन
प्रदेश और देश की सरकारी व गैरसरकारी अनेक संस्थाओं द्वारा पुरस्कृत तीजन बाई मंच पर सम्मोहित कर देने वाले अद्भुत पंडवानी नृत्य नाट्य का प्रदर्शन करती हैं। ज्यों ही कार्यक्रम आरंभ होता है, उनका रंगीन फुंदनों वाला तानपूरा अभिव्यक्ति के अलग-अलग रूप ले लेता है। कभी दु:शासन की बांह, कभी अर्जुन का रथ, कभी भीम की गदा तो कभी द्रौपदी के बाल में बदलकर यह तानपूरा श्रोताओं को इतिहास के उस समय में पहुंचा देता है। जहां वे तीजन के साथ-साथ जोश, होश, क्रोध, दर्द, उत्साह, उमंग और छल-कपट की ऐतिहासिक संवेदना को महसूस करते हैं। उनकी ठोस लोकनाट्य वाली आवाज और अभिनय, नृत्य और संवाद उनकी कला के विशेष अंग हैं।
अब नई पीढ़ी को सौंप रहीं प्राचीन कला की धरोहर
डॉ तीजन को उनकी कला के लिए सन् 1988 में भारत सरकार द्वारा पद्मश्री और 2003 में पद्म भूषण से अलंकृत किया गया। उन्हें 1995 में संगीत नाटक अकादमी पुरस्कार और 2007 में नृत्य शिरोमणि से भी सम्मानित किया जा चुका है। उनकी कला को भिलाई इस्पात संयंत्र द्वारा काफी संरक्षण मिला। अब वे अपनी इस कला को नई पीढ़ी को सौंप रही हैं। भिलाई में रहते हुए तीजन कई बालिकाओं को पंडवानी का प्रशिक्षण दे रही हैं।