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    राज्यों को देना होगा पाई-पाई का हिसाब... 2027 तक का मिला समय, CAG ने क्या-क्या फैसले लिए?

    By JAIPRAKASH RANJANEdited By: Abhishek Pratap Singh
    Updated: Tue, 25 Nov 2025 08:30 PM (IST)

    भारत के नियंत्रक एवं महालेखापरीक्षक (CAG) ने राज्यों में वित्तीय पारदर्शिता लाने हेतु दो कदम उठाए हैं। अब राज्यों को आय-व्यय का ब्यौरा डिजिटल रूप से देना होगा। वर्ष 2027-28 से व्यय के वर्गीकरण का एक समान मानक लागू होगा। देरी होने पर आर्थिक दंड लगेगा। CAG का मानना है कि इससे आर्थिक समानता और सुशासन बढ़ेगा, साथ ही राज्यों के व्यय का तुलनात्मक अध्ययन आसान होगा।

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    सीएजी ने राज्यों की दी डेडलाइन।

    जयप्रकाश रंजन, नई दिल्ली। भारत के नियंत्रक एवं महालेखापरीक्षक (सीएजी) ने राज्यों में वित्तीय पारदर्शिता लाने और इनके आय-व्यय के तौर-तरीकों में बेहतरी लाने के लिए दो अहम कदम उठाने का फैसला किया है। अब सभी राज्य सरकारें अपने आय-व्यय का ब्यौरा पूरी तरह डिजिटल तरीके से और निर्धारित समय-सीमा में सीएजी को सौंपने के लिए बाध्य होंगी। साथ ही वर्ष 2027-28 से पूरे देश में व्यय के वर्गीकरण का एक समान मानक लागू होगा।

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    सीएजी का मानना है कि इन कदमों से दीर्घावधि में पूरे देश में आर्थिक समानता बढ़ेगी, साथ ही सुशासन की गुणवत्ता बढ़ेगी। इससे उन राज्यों को खासा फायदा हो सकता है कि जहां खनिज संपदाओं की भरमार है जबकि यह भी संभव है कि आर्थिक तौर पर पिछड़े राज्यों को केंद्र से ज्यादा मदद मिलने की राह आसान हो।

    सीएजी के डिप्टी कंट्रोलर ने क्या बताया?

    सीएजी के डिप्टी कंट्रोलर जनरल जयंत सिन्हा ने पिछले दिनों एक अनौपचारिक परिचर्चा में बताया कि अभी अलग-अलग राज्य खर्च और राजस्व को अपने-अपने तरीके से वर्गीकृत करते हैं, जिससे एक राज्य की वित्तीय स्थिति को दूसरे राज्य या केंद्र से तुलना करना बहुत मुश्किल हो जाता है। इस कमी को दूर करने के लिए 11 नवंबर 2025 को जारी अधिसूचना में सभी 28 राज्यों और विधानसभा वाले केंद्रशासित प्रदेशों को वित्तीय वर्ष 2027-28 से एकसमान “ऑब्जेक्ट हेड्स'' (विस्तृत व्यय वर्गीकरण) अपनाने का निर्देश दिया गया है। इससे शिक्षा, स्वास्थ्य, पूंजीगत परियोजनाओं आदि पर होने वाले खर्च की सीधी तुलना संभव हो सकेगी।

    देरी करने पर कटेगा फंड

    दूसरी बड़ी व्यवस्था डिजिटल और समयबद्ध लेखा-जमा करने की है। अब सभी राज्य मासिक सिविल अकाउंट्स हर महीने की 10 तारीख तक, वार्षिक वित्त लेखा एवं विनियोग लेखा 30 सितंबर तक डिजिटल हस्ताक्षर के साथ संबंधित पोर्टल (पीएफएमएस-सार्वजनिक वित्त प्रबंधन सिस्टमम) पर अपलोड करेंगे। इस बारे में कागजी प्रति भेजने की दशकों पुरानी व्यवस्था बंद की जा रही है। यही नहीं देरी होने पर राज्य के कंसोलिडेटेड फंड से 50 लाख प्रति माह तक की कटौती का प्रावधान भी लागू कर दिया गया है। कुछ राज्यों पर हाल ही में यह आर्थिक दंड लगाया भी जा चुका है।

    सीएजी अधिकारियों का कहना है कि ये दोनों सुधार मिलकर देश के सार्वजनिक वित्तीय प्रबंधन में क्रांति लाएंगे। सीएजी के अधिकारियों का कहना है कि उक्त दोनों का देश के सार्वजनिक वित्त की समूची व्यवस्था अगले दो वित्त वर्षों के भीतर पूरी तरह से चाक-चौबंद हो जाएगी। 2028-29 तक देश के सभी राज्यों के कुल व्यय डाटा के 98 फीसद हिस्से का तुलनात्मक अध्ययन होने लगेगा। यह राज्यों के बीच आर्थिक व समाजिक विकास की खाई को तेजी से पाटने में मदद देगा।

    एक राज्य का व्यय दूसरे राज्य से कैसे अलग, पता चलेगा

    अभी सिर्फ राज्यों की तरफ से व्यय की गई कुल राशि का 40-45 फीसद हिस्से का ही तुलनात्मक अध्ययन हो पाता है। सभी राज्यों के व्यय के मुख्य मद जैसे वेतन, सामग्री सेवाएं, अनुदान, पूंजीगत व्यय को एकसमान बनाने से शिक्षा, स्वास्थ्य या बुनियादी ढांचे पर खर्च की तुलना आसान हो जाएगी। उदाहरण के तौर पर उत्तर प्रदेश का शिक्षा व्यय बिहार से कैसे भिन्न है, यह स्पष्ट दिखेगा।

    साथ ही कौन राज्य अपने खर्चे का बेहतर इस्तेमाल कर रहा है, यह भी पता चलेगा। इससे दूसरे राज्यों के बजट को बेहतर बनाने में मदद मिलेगी। राज्यों को अपनी कमजोरियों का आकलन करने में मदद। साथ ही केंद्र सरकार के लिए अपने फंड के वितरण को ज्यादा निष्पक्ष बनाना संभव होगा।

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