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    कर्ज लेकर घाटे की भरपाई कर रहे राज्य, वित्तीय स्थिति खराब होने पर बैंकों की सेहत पर असर पड़ने की आशंका

    By Jagran News Edited By: Abhinav Atrey
    Updated: Wed, 17 Jan 2024 10:19 PM (IST)

    कोविड महामारी के बाद के दो वित्तीय वर्षों में राज्यों की वित्तीय स्थिति पहले से ठीक हुई है। उनका राजस्व बढ़ा है। केंद्रीय राजस्व में इन राज्यों की हिस्सेदारी का भुगतान भी सुचारू तौर पर हो रहा है लेकिन कोविड महामारी के दौरान बढ़े वित्तीय घाटे के प्रबंधन के मोर्चे पर कुछ चिंताजनक तस्वीरें सामने आ रही हैं। यह तस्वीर है वित्तीय घाटे की भरपाई के प्रबंधन को लेकर।

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    आरबीआई की रिपोर्ट में सामने आई राज्यों के वित्तीय घाटे के प्रबंधन की तस्वीर (फाइल फोटो)

    जयप्रकाश रंजन, नई दिल्ली। कोविड महामारी के बाद के दो वित्तीय वर्षों में राज्यों की वित्तीय स्थिति पहले से ठीक हुई है। उनका राजस्व बढ़ा है। केंद्रीय राजस्व में इन राज्यों की हिस्सेदारी का भुगतान भी सुचारू तौर पर हो रहा है, लेकिन कोविड महामारी के दौरान बढ़े वित्तीय घाटे के प्रबंधन के मोर्चे पर कुछ चिंताजनक तस्वीरें सामने आ रही हैं।

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    यह तस्वीर है वित्तीय घाटे की भरपाई के प्रबंधन को लेकर। राज्यों की तरफ से वर्ष 2022-23 में कुल राजकोषीय घाटे का 78.6 फीसद बाहरी स्त्रोतों से उधारी ले कर भरपाई की गई है, जबकि एक दशक पहले तक वित्तीय घाटे को पाटने के लिए बाहरी कर्ज को वित्त प्रबंधन का सबसे खराब तरीका माना जाता था। वर्ष 2005-06 में तो सिर्फ 17 फीसद घाटा ही कर्ज से भरा जाता था।

    कुल वित्तीय घाटा 9.48 लाख करोड़ रहने की संभावना

    वर्ष 2023-24 में राज्यों का कुल वित्तीय घाटा 9.48 लाख करोड़ रुपये (राज्यों के सकल घरेलू उत्पाद का 3.1 फीसद) रहने की संभावना है। राज्यों की तरफ से दी जाने वाली गारंटी पर आरबीआई की तरफ से गठित कार्य समूह की रिपोर्ट में इस बात की तरफ ध्यान आकर्षित कराया गया है।

    राज्य एनएसएसएफ से उधारी लेते रहे हैं

    इसमें बताया गया है कि पहले राज्य वित्तीय घाटे की भरपाई के लिए सबसे ज्यादा एनएसएसएफ (नेशनल सोशल सिक्यूरिटी फंड) से उधारी लेते रहे हैं। जैसे वर्ष 2005-06 में 81 फीसद तक घाटे की भरपाई का जरिया एनएसएसएफ ही होता था जिसका अनुपात अब घट कर सिर्फ 3.6 फीसद रह गया है। एक वजह यह भी है कि वित्तीय संस्थान अब राज्यों की वित्तीय स्थिति को लेकर ज्यादा आश्वस्त हैं जिसके उन्हें ज्यादा कर्ज मिलने लगा है।

    राज्यों का कर्ज लेना चिंता का कारण

    पिछले कुछ वर्षों से जिस रफ्तार से राज्यों ने कर्ज लिया है, वह चिंता का कारण है। हाल ही में अंतरराष्ट्रीय मुद्रा कोष (आईएमएफ) ने भी भारत सरकार और यहां के राज्यों पर बढ़ते कर्ज को चिंताजनक बताया था। हालांकि वित्त मंत्रालय आईएमएफ की रिपोर्ट को खारिज कर चुकी है। राज्यों की उधारी की स्थिति को देखें तो साफ हो जाता है कि कोरोना के बाद उनकी तरफ से कर्ज लेने में कुछ ज्यादा ही उदारता दिखाई जा रही है। साथ ही कर्ज लेने और पुराने कर्ज की अदायगी का अंतर लगातार बढ़ रहा है।

    यूपी ने तीन सालों में 1.72 लाख करोड़ का नया कर्ज लिया

    उत्तर प्रदेश को देखा जाए तो वर्ष 2019-20 से वर्ष 2021-22 के दौरान (वर्ष 2021-22 का बजटीय आकलन आंकड़ा) इसने कुल 1,72,703 करोड़ रुपये का नया कर्ज लिया है, जबकि इस दौरान सिर्फ 42,120 करोड़ रुपये के पुराने कर्ज को चुकाया है। पंजाब ने इस अवधि में 71,430 करोड़ रुपये का कर्ज लिया और 27,363 करोड़ रुपये का कर्ज चुकाया। उत्तराखंड ने 12,500 करोड़ रुपये का कर्ज लिया और 2,441 करोड़ रुपये चुकाये।

    यूपी को कुल बकाये कर्ज का 48 फीसद भुगतान करना होगा

    साफ है कि राज्य सरकारें जो अभी कर्ज ले रही हैं, उसका भुगतान भाव सरकारों को करना होगा। उदाहरण के तौर पर आरबीआई का आकलन यह भी कहता है कि मार्च, 2021 की स्थिति के मुताबिक उत्तर प्रदेश को कुल बकाये कर्ज का तकरीबन 48 फीसद राशि का भुगतान अगले सात वर्षों के भीतर करना होगा जबकि उत्तराखंड सरकार को इस अवधि में बकाये कर्ज का 57.8 फीसद हिस्से की अदाएगी करनी होगी। पंजाब को इन वर्षों में 43 फीसद, गोवा को 58 फीसद और मणिपुर को 43 फीसद अदा करना होगा।

    राज्यों के कर्ज की गारंटी

    राज्य जो उधारी ले रहे हैं, उसके एक बड़े हिस्से को उनकी सरकारों की तरफ से गारंटी दी जाती है। आरबीआई की कार्य समूह की रिपोर्ट में राज्य सरकारों की तरफ से गारंटी देने की आदत पर अंकुश लगाने की सिफारिश है। इसमें एक सुझाव यह है कि राज्यों को एक वर्ष में कुल राजस्व संग्रह के पांच फीसद या इनके कुल सकल घरेलू उत्पाद का 0.5 फीसद से ज्यादा राशि से ज्यादा की गारंटी नहीं देनी चाहिए।

    आरबीआई ने परोक्ष तौर पर राज्यों के नगर निकायों, सहकारी संस्थानों, राज्यों के उपक्रमों को बैंकों व दूसरे वित्तीय संस्थानों की तरफ से दिये जाने वाले कर्जे को गारंटी देने की आदत पर लगाम लगाने को कहा है। राज्यों की वित्तीय स्थिति खराब होने पर इसका बैंकों की सेहत पर भी असर पड़ने की आशंका जताई है।

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