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UP Election: राजनीति में भी नई रवायत का गवाह बन रहा शाहजहांपुर

उत्तर प्रदेश विधानसभा चुनाव में इस बार शाहजहांपुर चुनावी राजनीति की कुछ नई रवायत कायम कर रहा है।

By Kishor JoshiEdited By: Published: Sun, 12 Feb 2017 10:12 PM (IST)Updated: Mon, 13 Feb 2017 05:39 AM (IST)
UP Election: राजनीति में भी नई रवायत का गवाह बन रहा शाहजहांपुर
UP Election: राजनीति में भी नई रवायत का गवाह बन रहा शाहजहांपुर

संजय मिश्र, शाहजहांपुर। स्वाधीनता आंदोलन के इतिहास में अपनी जांबाजी से लेकर मुगल काल की दिलेरी की बड़ी विरासत का गवाह रहा शाहजहांपुर उत्तरप्रदेश के इस चुनाव में राजनीति की कुछ नई रवायत कायम कर रहा है। राष्ट्रीय राजनीति से आगाज करने के बाद पूर्व केन्द्रीय राज्यमंत्री जितिन प्रसाद इस चुनाव के जरिए उप्र की युवा राजनीतिज्ञों के चेहरों में अपना नाम भी शामिल कराने की होड़ में दिखाई दे रहे हैं।

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शाहजहांपुर लोकसभा सीट से दो बार सांसद रहे जितिन प्रसाद पहली बार यहां की तिलहर सीट से अपने लिए विधानसभा का दरवाजा खोलने को चुनावी मैदान में हैं।

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उप्र के पुराने सियासी दिग्गज के पुत्र होने के साथ केन्द्र में मंत्री रहने के बाद विधानसभा चुनाव लडऩे के जितिन के इस कदम को थामने के लिए जाहिर तौर पर चुनावी मैदान में उनके प्रतिद्वंदी इसे कांग्रेस के राजनीतिक बैक गियर के दौर के रुप में पेश करने की कोशिश कर रहे हैं। मगर दैनिक जागरण से बातचीत में जितिन विरोधियों की बात को तवज्जो न देते हुए कहते हैं कि विधानसभा चुनाव लडऩा उनके लिए घर लौटने जैसा है।

वे कहते हैं कि केन्द्र की राजनीति में सक्ति्रयता की वजह से उनका घर छूट गया था और इस चुनाव में कांग्रेस नेतृत्व ने उन्हें तिलहर से टिकट देकर वापस अपने लोगों के बीच आने का बड़ा मौका दिया है। दो बार सांसद और केन्द्र में मंत्री रहने के बाद विधानसभा का चुनाव लडऩा क्या सियासी डिमोशन नहीं माना जाएगा? जितिन इस पर छूटते ही कहते हैं कि अपने लोगों और परिवार के बीच लौटना कोई डिमोशन नहीं होता।

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जितिन के विधानसभा चुनाव लडऩे में कांग्रेस उपाध्यक्ष राहुल गांधी की भी रूचि बताई जाती है। पार्टी को उप्र में अधिक सीटें जिताने की रणनीति के तहत राहुल ने कुछ ऐसे चेहरों पर दांव लगाया जो उनकी युवा ब्रिगेड के हिस्सा रहे हैं और जितिन उनमें एक माने जाते हैं। दरअसल लोकसभा चुनाव की भारी शिकस्त के बाद कांग्रेस को राज्यों में अगले बीस-पच्चीस साल तक सियासत करने वाले चेहरों की सख्त जरूरत महसूस हो रही है। ताकि पार्टी को मौजूदा संक्त्रमण के दौर से निकाला जाए और इसी रणनीति के तहत सचिन पायलट को राजस्थान में उतारा गया है। जितिन प्रसाद को यूपी में पार्टी का एक प्रमुख चेहरा बनाने की रणनीति भी उनके विधानसभा चुनाव में उतरने की वजह मानी जा रही है।

हालांकि यह शहर ऐतिहासिक शिखर की जैसी विरासत का गवाह रहा है उस हिसाब से इसकी मौजूदा हालत संतोषजनक तो कतई नहीं मानी जा सकती। युवा तबके रोजगार के अभाव में या तो घर बैठे हैं या फिर पलायन करते हैं। ग्रामीण इलाकों में बिजली की समस्या है तो किसानों की बेहाली भी किसी से छुपी नहीं। कानून व्यवस्था भी बड़ा मसला है। शायद इसीलिए सपा-कांग्रेस गठबंधन के खिलाफ यहां के भाजपा और बसपा उम्मीदवार इसके सहारे सियासी वार करने का मौका नहीं छोड़ रहे।

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तिलहर से भाजपा के रोशनलाल वर्मा चुनाव मैदान में जितिन के मुकाबले हैं तो बसपा प्रत्याशी अवधेश कुमार वर्मा मुकाबले को त्रिकोणीय बना रहे हैं। हालांकि जितिन अपना मुकाबला भाजपा से होने का इशारों में संकेत देते हुए कहते हैं कि यहां पीएम नरेंद्र मोदी का चेहरा नहीं बल्कि उत्तरप्रदेश की नई युवा सियासी जोड़ी राहुल गांधी और अखिलेश यादव के नए जोश की सियासत आगे बढ़ेगी। वे दावा करते हैं कि उप्र का यह चुनाव केवल प्रदेश नहीं बल्कि देश की राजनीति के लिए टर्निंग प्वाइंट होगा। मगर यह चुनाव जितिन प्रसाद की प्रदेश की सियासत में उतरने का टर्निंग प्वाइंट होगा या नहीं इसका फैसला तो 15 फरवरी को तिलहर की जनता ही करेगी।


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