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    सेमीकंडक्टर निर्माण के क्षेत्र में समर्थ भारत, चिप निर्माण से संबंधित चुनौतियों का समाधान; एक्सपर्ट व्यू

    By Jagran NewsEdited By: Sanjay Pokhriyal
    Updated: Mon, 10 Oct 2022 08:42 AM (IST)

    Semiconductor Technology पिछले माह ताइवान की फाक्सकान एवं भारत के वेदांत ग्रुप ने गुजरात में भारत की पहली सेमीकंडक्टर विनिर्माण इकाई के एमओयू पर हस्ताक्षर किए। देश में चिप बनने से जो लैपटाप आज एक लाख रुपये में मिलता है उसकी कीमत करीब आधी हो सकती है।

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    Semiconductor Technology: चिप निर्माण के जटिल इकोसिस्टम को समझना आवश्यक है

    शिवेश प्रताप। Semiconductor Technology अमेरिका की एक कंपनी फेयरचाइल्ड सेमीकंडक्टर ने पिछली सदी के छठे दशक में भारत में अपने निर्माण संयंत्र हेतु अनुमति मांगी थी, परंतु देश में उस समय की सरकारों के पास दूरदर्शिता का अभाव था, लिहाजा इस कंपनी को अपना कारोबार मलेशिया और फिलीपींस ले जाना पड़ा, अन्यथा आज भारत इस उद्योग की महाशक्ति होता। वर्ष 1984 में सरकार द्वारा मोहाली में सेमीकंडक्टर काम्प्लेक्स लिमिटेड बनाकर उसका संचालन प्रारंभ किया एवं अगले आधे दशक तक इसे कई विदेशी संस्थानों से काम भी मिला जिसमें बीबीसी द्वारा कंप्यूटर निर्माण के लिए मिला कान्ट्रैक्ट चर्चा में रहा था, परंतु अनुसंधान की कमी के कारण यह विनिर्माण संयंत्र अमेरिका पर निर्भर रहता था।

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    रहस्यमय तरीके से इस कंपनी में भीषण आग लगने से देश का सेमीकंडक्टर विनिर्माण लगभग एक दशक पिछड़ गया और इस तरह भारत इस क्षेत्र में प्रतिस्पर्धा से बाहर हो गया। आज स्थिति यह है कि वर्ष 2021 में भारत ने 21 अरब डालर के चिप का आयात किया एवं यह आयात हर वर्ष 15 प्रतिशत की गति से बढ़ रहा है। प्रतिवर्ष अकेले चीन से भारत ने सात अरब डालर का चिप आयात किया है। चीन के साथ तनाव के चलते भारत के लिए यह खर्च केवल आर्थिक न होकर रणनीतिक भी है, क्योंकि चीन के द्वारा इस कमजोरी का फायदा उठाया जा सकता है। स्मार्टफोन, कैमरा, लैपटाप या कोई भी इलेक्ट्रानिक गैजेट एक चिप के द्वारा संचालित होते हैं।

    औद्योगिक विकास का नेतृत्व

    इलेक्ट्रानिक सिलिकान चिप बनाने का वैश्विक उद्योग 2022 तक 600 अरब डालर का बड़ा कारोबार बन चुका है। यहां तक कि दुनिया के बड़े-बड़े देश भी इस इंडस्ट्री पर अपनी बादशाहत कायम करने के लिए प्रतिस्पर्धा में शामिल हो चुके हैं। सभी इलेक्ट्रानिक उपकरणों में लगने वाला चिप एक दिमाग के रूप में कार्य करता है एवं इसे इंटीग्रेटेड सर्किट या माइक्रोचिप या सेमीकंडक्टर चिप के नाम से भी पुकारा जाता है। आज के औद्योगिक विकास का नेतृत्व करने वाले सभी क्षेत्रों जैसे संचार, कंप्यूटिंग, चिकित्सा सेवा, सैन्य सेवाएं, यातायात एवं शुद्ध ऊर्जा जैसे क्षेत्रों में इन इलेक्ट्रानिक सेमीकंडक्टर चिप का दबदबा कायम हो चुका है।

    सेमीकंडक्टर का विकास आज के समय के औद्योगिक क्रांति का एक पैमाना बन चुका है, क्योंकि यह तकनीक आधारित विकास के नए युग का आधार बन चुका है। अमेरिका के द्वारा नियंत्रित: सेमीकंडक्टर उद्योग में मुख्यतः तीन स्तर होते हैं, डिजाइन, विनिर्माण एवं पैकेजिंग। वर्तमान में इस उद्योग का डिजाइन पूरी तरह से अमेरिका के द्वारा नियंत्रित होता है, परंतु विनिर्माण एवं असेंबली के लिए पूर्वी एशियाई देश ताइवान और दक्षिण कोरिया का दबदबा है जिसे समय के साथ चीन बड़े निवेश के दम पर लगातार हथियाने का प्रयास करता रहा है। पैकेजिंग पर चीन का लगभग एकाधिकार सा कायम है, यहां तक कि अमेरिका की बड़ी कंपनियां जैसे एप्पल भी अपने पैकेजिंग हेतु चीन पर निर्भर है।

    सेमीकंडक्टर उद्योग में स्वावलंबन की दिशा

    पैकेजिंग का अर्थ है इस चिप का प्रयोग कर उपयोगी उपकरण बनाना। आश्चर्य की बात यह है कि पूरी दुनिया इन देशों के एकाधिकार पर पूरी तरह से निर्भर रही, परंतु संभावित संकट तब समझ में आया जब कोरोना के कारण हाल में अमेरिका, चीन, दक्षिण कोरिया, जापान एवं ताइवान के चिप उद्योग पर संकट उत्पन्न हुआ एवं वैश्विक आपूर्ति शृंखला बड़े स्तर पर प्रभावित हो गई। दूसरी ओर दुनिया के 70 प्रतिशत चिप निर्माण पर ताइवान और दक्षिण कोरिया का कब्जा है।

    क्रमशः चीन व उत्तर कोरिया के संकट के बीच इन दोनों देशों की विनिर्माण प्रक्रिया प्रभावित होने का अर्थ है पूरे विश्व पर संकट उत्पन्न होना। सभी बड़े देशों को कोविड महामारी के बाद इलेक्ट्रानिक चिप उद्योग के अनुसंधान एवं विनिर्माण में स्वावलंबी बनने की आवश्यकता महसूस हो रही है, इसलिए इस क्षेत्र में कई अरब डालर का निवेश किया जा रहा है। इसी क्रम में सेमीकंडक्टर उद्योग में स्वावलंबन की दिशा में बढ़ते हुए अमेरिका, जापान, भारत एवं आस्ट्रेलिया के द्वारा क्वाड के अंतर्गत एक संयुक्त अनुसंधान एवं विनिर्माण की दिशा में सार्थक कदम उठाया गया है। इन चारों देशों ने अपने वर्क फोर्स की उपलब्धता एवं तकनीकी सहयोग के क्षेत्र में संयुक्त रूप से कार्य करते हुए इस क्षेत्र में चीन के बढ़ते प्रभुत्व को चुनौती देकर चिप उद्योग की प्रतिस्पर्धा में मिलकर बादशाहत कायम करने का लक्ष्य बनाया है।

    पांच अरब डालर की आर्थिकी

    वर्तमान सेमीकंडक्टर इंडस्ट्री भारत को पांच अरब डालर इकोनमी बनने के स्वप्न को पूर्ण करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभा सकती है। वर्ष 2020 में सेमीकंडक्टर इंडस्ट्री की वैश्विक बिक्री 439 अरब डालर थी। इस बेहद जटिल औद्योगिक संरचना वाले उद्योग में डिजाइन आधारित कार्यों को करने वालों को फैबलेस कंपनीज एवं विनिर्माण से जुड़े हुए कंपनियों को फाउंड्रीज कहा जाता है।

    दुनिया भर में केवल गिनी चुनी कंपनियां ही हैं जो इस इंडस्ट्री के डिजाइन से लेकर विनिर्माण एवं असेंबली तक सारे कार्यों को स्वयं करती हैं, ऐसी कंपनियों को इंटीग्रेटेड डिवाइस मैन्युफैक्चरर्स यानी आइडीएम कहा जाता है। इस सेमीकंडक्टर इंडस्ट्री को किफायती बनाने के लिए इसके पूरे वैल्यू चैन के अलग-अलग स्तरों को अलग-अलग कंपनियों के द्वारा किया जाता है एवं वर्तमान में दुनिया का कोई भी देश ऐसा नहीं है जो इस उद्योग के डिजाइन से लेकर असेंबली तक सारे कार्यों में स्वावलंबी बन चुका हो। जिन देशों के पास सेमीकंडक्टर उद्योग के शोध, उत्पादन एवं उपभोग तीनों की शक्ति होगी वही पूरी दुनिया में इस उद्योग का नेतृत्व करेगा।

    विनिर्माण की प्रक्रिया में व्यापक परिवर्तन

    वर्तमान में अमेरिका एवं उसके मित्र देश इसका खूब लाभ ले रहे हैं। वर्ष 2018 से चीन एवं अमेरिका के बीच शुरू हुए व्यापारिक युद्ध का लाभ भारत की मोदी सरकार बहुत ही अच्छे ढंग से उठा रही है। क्वाड जैसे सुरक्षा समूह बनाकर सप्लाई चेन के उच्च मानकों को सुनिश्चित करना इस समूह की एक बड़ी उपलब्धि है। मई 2022 में क्वाड के सम्मेलन में सेमीकंडक्टर सप्लाई चेन इनीशिएटिव एक अहम मुद्दा था जिसे सितंबर 2021 के क्वाड मीटिंग में प्रारंभ किया गया था। इसका लक्ष्य ग्लोबल सेमीकंडक्टर आपूर्ति शृंखला प्रबंधन को मजबूती देकर इस इंडस्ट्री को स्थायित्व प्रदान करना था।

    सेमीकंडक्टर उद्योग में आपूर्ति शृंखला को सुदृढ़ करना कितना महत्वपूर्ण है यह आप इस बात से समझ सकते हैं कि एक सेमीकंडक्टर उत्पादन की प्रक्रिया औसतन चार देशों के 25 हजार मील के तीन वैश्विक यात्राओं के साथ पूर्ण होता है। इस प्रक्रिया में एक चिप अपने निर्माण में 12 दिन केवल यात्राओं में लगा देता है। इन्हीं जटिलताओं के कारण किसी भी देश का आत्मनिर्भर बनना बहुत कठिन है। ऐसे में देशों का बेहतर सहयोग एवं सुरक्षा संगठन बनाकर हम आपूर्ति शृंखला को तीव्र कर सकते हैं जिससे विनिर्माण की प्रक्रिया में व्यापक परिवर्तन लाया जा सके।

    [तकनीकी-प्रबंध सलाहकार]