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    458 मीटर लंबा, 6 लाख टन से अधिक क्षमता... जब युद्ध में फंस गया था दुनिया का सबसे बड़ा जहाज; पढ़िए कैसा रहा इसका सफर

    Updated: Sun, 04 May 2025 07:10 PM (IST)

    दुनिया के अब तक के सबसे बड़े जहाज सीवाइज जायंट की यात्रा इसके आकार की तरह ही विशाल थी। करीब तीन दशकों में यह सेवा में रहा। इसके कई नाम बदले गए और कई मालिक बने। यह जहाज एक युद्ध में क्षतिग्रस्त होने के बाद भी बच गया और फिर से समुद्र में सेवा करने लगा। अपने अंतिम दिनों में यह भारत आया।

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    ईरान-इराक के युद्ध में फंसे इस जहाज को काफी क्षति पहुंची थी (फोटो: मेटा एआई)

    डिजिटल डेस्क, नई दिल्ली। दुनिया के सबसे बड़े जहाज का जिक्र जब भी होता है, लोगों के मन में टाइटैनिक की तस्वीर उभरने लगती है। लेकिन टाइटैनिक से भी कई गुना बड़ा एक जहाज, जिसने करीब 3 दशक तक समुद्र में अपनी सेवा दी और आखिर में भारत में आकर अपनी यात्रा का अंत कर दिया।

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    इस जहाज का नाम सीवाइज जायंट था। हालांकि समय के साथ जहाज के मालिक बदलते गए और इसके साथ-साथ ही इसका नाम भी बदलता गया। कभी ईरान-इराक के युद्ध में फंसे इस जहाज को काफी क्षति पहुंची थी, लेकिन फिर भी इसने वापसी की और दुनिया में अपनी छाप छोड़ गया।

    1979 तक तैयार हुआ जहाज

    इस कहानी की शुरुआत 1979 से होती है। एक ग्रीक बिजनेसमैन ने जापानी शिप निर्माता कंपनी सुमितोमो हेवी इंडस्ट्रीज को शिप के निर्माण का ऑर्डर दिया था। कंपनी के 1979 तक जहाज तैयार भी कर लिया, लेकिन बाद में बिजनेसमैन ने इस डील को तोड़ दिया।

    बाद में इसे हांगकांग स्थित शिपिंग मैग्नेट सीवाई तुंग को बेच दिया गया। तुंग ने जहाज में कई आवश्यक बदलाव किए और इसकी 140,000 टन से अधिक बढ़ा दी। नीदरलैंड स्थित समुद्री जहाज सर्वेक्षण और समुद्री परामर्श फर्म वर्चु मरीन के अनुसार, शिप करीब 458 मीटर लंबा और 600,000 टन से अधिक वहन क्षमता वाला था।

    जहाज का बड़ा आकार बना परेशानी

    • इस जहाज को मुड़ने के लिए ही दो मील से अधिक के दायरे की जरूरत थी। अपनी फुल स्पीड से रुकने के लिए इस 5 मील की जरूरत पड़ती थी। इसका आकार इतना बड़ा था कि स्वेज या पनामा नहर के पोर्ट पर इसकी एंट्री तक नहीं हो पाती थी। बड़े आकार के कारण इसे कई बार परेशानियों का सामना करना पड़ता था।
    • 1988 में जहाज ईराक-इराक के युद्ध में फंस गया था। इराकी एयरफोर्स ने जहाज पर मिसाइल दाग कर इसे काफी क्षतिग्रस्त कर दिया था। हालांकि युद्ध खत्म होने के बाद सिंगापुर ले जाकर जहाज की मरम्मत की गई। नॉर्मन इंटरनेशनल नामक एक नॉर्वेजियन फर्म ने इसे खरीदकर जहाज का नाम हैप्पी जायंट कर दिया।
    • कुछ साल बाद नॉर्वे के जोर्गेन जाहरे ने 30 मिलियन पाउंड में इसे खरीद लिया और इसका नाम बदलकर फिर से जाहरे वाइकिंग कर दिया। करीब 10 साल तक जहाज इस नाम से सेवा देता रहा। लेकिन जहाज का बड़ा आकार ही इसके लिए चुनौती बनने लगा।

    फ्यूल की होती थी काफी खपत

    जहाज के फ्यूल की खपत और इसके ऑपरेशन में आने वाली चुनौतियों की वजह से इसे कई बंदरगाहों पर जाने में परेशानी होती थी। 2004 तक जहाज ने समुद्र में अपनी सेवा दी और फिर नॉर्वे के फर्स्ट ऑलसेन टैंकर्स ने खरीद लिया। एक बार फिर इसका नाम बदलकर नॉक नेविस कर दिया गया।

    अब इसकी जिम्मेदारी कतर के अल शाहीन ऑयल फील्ड में एक फ्लोटिंग स्थिर भंडारण सुविधा के रूप में सेवा देने का काम सौंपा गया। कुछ साल बाद इसे एम्बर डेवलपमेंट कॉरपोरेशन ने खरीद लिया और 2009 में नाम मोंट कर दिया गया। अंतिम दिनों में इसे भारत लाया गया और एक साल तक स्क्रैप किया गया। 2010 में जहाज का सफर हमेशा के लिए खत्म हो गया।

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