'जल्द होगा हर आपदा से जुड़ा 20 साल का डाटा बैंक', खास बातचीत में बोले कोस्ट गार्ड के पूर्व डीजी राजेंद्र सिंह
झालावाड़ में स्कूल भवन गिरने से हुई छात्रों की मृत्यु के बाद शिक्षा मंत्रालय ने राष्ट्रीय आपदा प्रबंधन प्राधिकरण (NDMA) के साथ मिलकर देशभर के स्कूलों का ऑडिट करने का निर्णय लिया है। NDMA पहले से ही स्कूलों के लिए दिशानिर्देश जारी कर चुका है लेकिन मानवीय चूक के कारण आपदाओं से निपटने में कमियाँ हैं।

रुमनी घोष, नई दिल्ली। राजस्थान के झालावाड़ जिले में जर्जर स्कूल भवन के गिरने से सात विद्यार्थियों की मौत के बाद शिक्षा मंत्रालय ने देशभर के सभी स्कूलों का आडिट करवाने के निर्देश दिए हैं। यह आडिट राष्ट्रीय आपदा प्रबंधन प्राधिकरण यानी नेशनल डिजास्टर मैनेजमेंट अथारिटी (एनडीएमए) के स्थानीय निकायों के सहयोग से किया जाएगा।
तमिलनाडु के कुंभकोणम और हरियाणा के स्कूल में हुई घटना के बाद एनडीएमए ने वर्ष 2016 में ही स्कूलों के लिए पहली गाइडलाइन जारी कर दी थी। वर्ष 2023 में इसे अपडेट भी किया गया, लेकिन यह घटना इशारा करती है कि मानवीय चूक से होने वाली आपदाओं से निपटने की तैयारी में अभी कमी है।
एनडीएमए के विभाग प्रमुख और भारतीय तटरक्षक बल के पूर्व महानिदेशक राजेंद्र सिंह ने बताया कि इस दिशा में काम करते हुए एनडीएमए एक डिजिटल डैशबोर्ड विकसित कर रहा है। इसके जरिये जल्द ही हमारे पास देशभर के स्कूल भवनों सहित बाढ़, चक्रवात, सूखा, भूकंप, सुनामी, तूफान, भूस्खलन, जंगलों में आग, औद्योगिक दुर्घटनाएं, रासायनिक रिसाव जैसे आपदा की श्रेणी में आने वाली हर आपदा से जुड़ा 20 साल का एक बड़ा डाटा बैंक होगा।
अगले छह महीने में यह योजना 'रोल आउट' हो जाएगी। राष्ट्रपति तटरक्षक मेडल और तटरक्षक मेडल से सम्मानित राजेंद्र सिंह प्राकृतिक आपदाओं को नियंत्रित कर जान-माल की क्षति को नगण्य तक पहुंचाने में माहिर माने जाते हैं। भारतीय तटरक्षक बल के महानिदेशक रहते हुए उन्होंने भारत के पूर्व और पश्चिम तट पर सुनामी, बाढ़ और कई चक्रवातों के दौरान संपत्ति व जीवन के नुकसान को कम किया, जिनमें ओखी, हुडहुद, वायु, फनी, बिपरजय शामिल हैं।
राष्ट्रीय समुद्री खोज और बचाव बोर्ड के अध्यक्ष, राष्ट्रीय तेल रिसाव आपदा योजना के अध्यक्ष के रूप में पाकिस्तान, बांग्लादेश, श्रीलंका और मालदीव के जल क्षेत्र में होने वाले तेल रिसाव से होने वाली क्षति को नियंत्रित करने, लक्षद्वीप और मिनिकाय द्वीपों के आसपास फैली समुद्री डकैती की समस्याओं को खत्म करने और गुजरात तट पर 6400 करोड़ रुपए कीमत की 1500 किलोग्राम हेरोइन की सबसे बड़ी जब्ती में भी उन्होंने अहम भूमिका निभाई है।
दैनिक जागरण की समाचार संपादक रुमनी घोष ने आपदा प्रबंधन से जुड़े हर पहलुओं पर विस्तार से चर्चा की। प्रस्तुत हैं बातचीत के प्रमुख अंश:
राजस्थान में स्कूल की छत गिरने से बच्चों की मौत की घटना को आप आपदा की किस श्रेणी में रखते हैं?
– आपदा को हम दो श्रेणी में बांटते हैं। प्राकृतिक आपदा, जिसमें बाढ़, चक्रवात, सूखा, भूकंप, सुनामी, तूफान, भूस्खलन, ज्वालामुखी विस्फोट जैसी घटनाएं होती हैं। अर्बन फ्लड और अर्बन हीट को भी हम आपदा की श्रेणी में रखकर इससे निपटने की योजना बना रहे हैं। दूसरी मानव निर्मित आपदा, जिसमें औद्योगिक दुर्घटनाएं, रासायनिक रिसाव, जर्जर भवनों के गिरने से जानमाल का नुकसान आदि। झालावाड़ स्कूल के भवन से गिरने वाली घटना मानव निर्मित आपदा है।
क्या एनडीएमए ने झालावाड़ से जो रिपोर्ट मांगी है, वह कब तक आ जाएगी?
– झालावाड़ जिला प्रशासन अगस्त 2025 के प्रथम सप्ताह तक स्कूल भवन गिरने की रिपोर्ट प्रस्तुत कर देगा। हम त्वरित कार्रवाई की अपेक्षा कर रहे हैं क्योंकि यह बच्चों की सुरक्षा का मामला है। इस घटना की अलग से रिपोर्ट इसलिए मंगवाई है, ताकि विश्लेषण कर यह पता किया जा सके कि मानवीय चूकों को रोकने के लिए गाइडलाइन में कुछ और मानदंड जोड़े जा सकते हैं या नहीं।
शिक्षा मंत्रालय एनडीएमए के सहयोग से देशभर के स्कूलों का आडिट करने जा रहा है। क्या कार्ययोजना है?
– एनडीएमए राज्यों के साथ मिलकर एक समयबद्ध योजना के तहत यह आडिट करवाने पर काम कर रहा है, जिसमें प्राथमिकता उन क्षेत्रों को दी जा रही है, जो भूकंप, बाढ़ या चक्रवात जैसी आपदाओं के लिए अधिक संवेदनशील हैं। सभी राज्यों और केंद्र शासित प्रदेशों को स्कूल सुरक्षा आडिट सुनिश्चित करने के लिए विस्तृत दिशा-निर्देश जारी कर दिया गया है। इसमें राज्य स्तर पर एक नोडल एजेंसी का नामांकन, प्रशिक्षण प्राप्त तकनीकी टीमों द्वारा संरचनात्मक और गैर-संरचनात्मक आडिट और उस पर आधारित जोखिम न्यूनीकरण योजना का निर्माण मुख्य है।
क्या राज्यों या स्थानीय निकायों को आडिट के लिए कोई समयावधि दी गई है?
– हां। राज्यों से कहा है कि सभी सरकारी स्कूल और अस्पताल भवनों का प्राथमिक आडिट दिसंबर 2025 तक पूर्ण कर लिया जाए। उच्च जोखिम वाले जिलों में यह कार्य प्राथमिकता के आधार पर तीन महीने के भीतर पूरा किया जाना है। इसके लिए हम तकनीकी संस्थानों और विशेषज्ञ एजेंसियों से सहयोग ले रहे हैं।
क्या आकलन किया जा सकता है कि कितने स्कूल या अस्पताल भवन जर्जर हैं?
– भारत में लाखों स्कूल व अस्पताल भवन हैं। प्रारंभिक आंकलन व राज्यों से मिली सूचनाओं के अनुसार, अनुमानतः 10–15 प्रतिशत भवन ऐसे हो सकते हैं, जिन्हें संरचनात्मक सुदृढ़ीकरण या पुनर्निर्माण की आवश्यकता है। सटीक संख्या आडिट के बाद ही सामने आएगी।
शिक्षा मंत्रालय या राज्य सरकारों को कितनी राशि जर्जर स्कूलों के मेंटेनेंस के लिए रखने का सुझाव देंगे आप?
– एनडीएमए सीधे बजट निर्धारण नहीं करता, लेकिन हम यह सुझाव जरूर देते हैं कि शिक्षा और स्वास्थ्य क्षेत्र की संरचनात्मक सुरक्षा को 'जीवन रक्षक निवेश' की दृष्टि से देखा जाए। प्रत्येक राज्य को स्कूल सुरक्षा हेतु वार्षिक बजट में न्यूनतम दो प्रतिशत राशि को विशेष रूप से संरचनात्मक सुदृढ़ीकरण व सुरक्षा आडिट आधारित मरम्मत कार्यों के लिए आरक्षित करने का सुझाव दिया गया है।
गाइडलाइन के बावजूद लापरवाही क्यों? क्या समन्वय की कमी है? सुधार कैसे हो?
– एनडीएमए ने वर्ष 2016 में और फिर 2023 में स्कूलों और अस्पतालों के लिए सुरक्षा दिशानिर्देश जारी किए। इन दिशा-निर्देशों में सभी हितधारकों की जिम्मेदारियां स्पष्ट रूप से तय की गई हैं। फिर भी जमीनी स्तर पर समन्वय, अनुपालन और निगरानी की कमी के कारण दुर्घटनाएं हो रही हैं। इस कमी को दूर करने के लिए जिला प्रशासन स्तर पर स्कूल सुरक्षा निगरानी समिति का गठन, शिक्षा व लोक निर्माण विभाग के बीच समन्वित पोर्टल के जरिए रियल टाइम रिपोर्टिंग, स्कूल प्रबंधन समितियों को प्रशिक्षित करना और सामाजिक आडिट को बढ़ावा देना जैसे उपायों पर गंभीरता से विचार करना जरूरी है। हाल ही में जो डीएम एक्ट लागू हुआ है, उसमें निर्देश दिया गया है कि हर जिले में कम से कम तीन महीने में एक बैठक हो, जिसमें उस जिले से जुड़ी आपदाओं पर चर्चा हो। यदि इस तरह की व्यवस्था होती तो झालावाड़ में संभवतः स्कूल भवन गिरने की घटना नहीं होती। रिस्क असेसमेंट के बाद मैपिंग करना पड़ता है। इसके जरिए नुकसान यानी हैजार्ड वनरेवलिटी रिस्क असेसमेंट (एचवीआरए) का आकलन किया जाता है। उत्तराखंड, ओडिशा जैसे कई राज्यों ने एचवीआरए किया है। जैसे ओडिशा के पास मैपिंग है कि चक्रवात आया तो कितनी दूरी तक आ सकता है, कितने जिले प्रभावित होंगे, कितने लोगों को विस्थापित करना पड़ेगा, उन्हें ठहराने की क्या व्यवस्था है।
सेटेलाइट के युग में धरती के एक-एक इंच की जानकारी उपलब्ध है। क्या आपदा प्रबंधन के लिए इस पर विचार हो रहा है?
– एनडीएमए के चेयरपर्सन प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी हैं। पिछली गवर्निंग काउंसिल की बैठक में उन्होंने कहा था कि अब समय आ गया है कि हम आपदा नियंत्रण के क्षेत्र में आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस और इंटरनेट आफ थिंग्स जैसी तकनीक का उपयोग करें। उनके निर्देश पर ही एनडीएमए एक डिजिटल डैशबोर्ड भी विकसित कर रहा है। इसमें प्राकृतिक व मानव निर्मित आपदाओं की आशंकाओं के मद्देनजर सभी तरह के डाटा को एकत्रित किया जाएगा। जल्दी ही हमारे पास देशभर के स्कूल, अस्पताल भवनों सहित बाढ़, चक्रवात, सूखा, भूकंप, सुनामी, तूफान, भूस्खलन, जंगलों में आग, लाइटनिंग (बिजली गिरना), औद्योगिक दुर्घटनाएं, रासायनिक रिसाव जैसे आपदा की श्रेणी में आने वाली हर आपदा से जुड़ा 20 साल का डाटा बैंक होगा। अगले छह महीने में योजना शुरू हो जाएगी। सेटेलाइट इमेजरी व रिमोट सेंसिंग डाटा से संवेदनशील क्षेत्रों की पहचान आसान होगी और बचाव की पूर्व तैयारी में आसानी होगी।
क्या यह सिस्टम जर्जर भवनों को पहचानकर अलर्ट करेगा?
– एनडीएमए भविष्य में आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस (एआइ) और इंटरनेट आफ थिंग्स (आइओटी) आधारित एक 'स्मार्ट स्ट्रक्चरल हेल्थ मानिटरिंग सिस्टम' विकसित करने की योजना बना रहा है, जो भवनों की कंपन, झुकाव, नमी और अन्य संकेतों से यह पहचान सके कि कोई संरचना असुरक्षित हो सकती है। यह प्रणाली विशेषकर अस्पतालों, स्कूलों और भीड़-भाड़ वाले सार्वजनिक भवनों के लिए अत्यंत उपयोगी सिद्ध हो सकती है।
आपदा में मौतों की संख्या को शून्य करने के लक्ष्य पर क्या विचार किया जा रहा है?
– जी हां। भारत ने 2047 तक विकसित देश बनने का लक्ष्य रखा है। इसके हिसाब से हमारे पास 22 साल हैं। इसे तीन हिस्सों में बांटा गया है। पहले आठ साल में आपदा में मौत की संख्या को शून्य करने का लक्ष्य रखा गया है। अगले सात साल में यह सुनिश्चित किया जाए कि आपदा से रोजगार पर कोई असर नहीं पड़े। उसके अगले सात सालों में फोकस किया जाएगा कि इंफ्रास्ट्रक्चर (बांध, ब्रिज, मकान, दफ्तर, ऐतिहासिक इमारत, अस्पताल, स्कूल) को नुकसान न हो।
प्राकृतिक आपदाओं के दौरान जीवन के नुकसान को आपने कैसे कम किया? और मानवीय लापरवाहियों से होने वाली आपदाओं को रोकने की क्या तैयारी है?
– पहले चक्रवात या बाढ़ से हर साल हजारों की संख्या में मौतें होती थीं। इसे नियंत्रित करने के लिए नेशनल साइक्लोन रिस्क मिटिगेशन प्रोजेक्ट (एनसीआरएमपी) शुरू किया गया। पहला चरण आंध्र व ओडिशा में किया गया। दूसरे चरण में छह तटीय राज्यों गोवा, गुजरात, कर्नाटक, केरल, महाराष्ट्र और बंगाल को शामिल किया गया। 800 साइक्लोन सेंटर बनाए गए। इन तीन मंजिला सेंटरों में 3000 लोगों को रहने की व्यवस्था है। इसमें कम्यूनिटी किचन, बाथरूम और जरूरी दवाएं जैसी व्यवस्थाएं हैं। 1400 किमी की रोड बनाई गई। अंडर ग्राउंड केबलें डाली गईं, ताकि बिजली अवाध रूप से पहुंचती रहे। अर्ली वार्निंग सेंटर के जरिये चक्रवात के दो दिन पहले हमने 10 लाख लोगों को गांवों से निकाल दूसरी जगह स्थानांतरित कर दिया। मारीशस जैसे देश की आबादी 10 लाख है। यानी हमने एक पूरे देश को शिफ्ट कर दिया। बीते कुछ सालों में चक्रवातों में मानवीय जीवन तो दूर मवेशियों के जान का भी नुकसान नहीं हुआ है। समुदायों को जोड़कर एक लाख आपदा मित्र बनाए गए हैं, जो मौके पर पहुंचकर सबसे पहले आपदा प्रभावितों को बचाते हैं। पीएम के निर्देश पर अब ढाई लाख युवा आपदा मित्र तैयार किए जा रहे हैं, जिनमें एनसीसी, एनएसएस सहित संगठनों को भी जोड़ा जा रहा है। मानवीय लापरवाहियों को नियंत्रित करने के लिए ब्लाक और गांव स्तर पर लोगों को जागरूक करने की तैयारी है।
ब्रह्मपुत्र के बाढ़ के पानी से झील और कंटेनर स्कूल जैसे नवाचारों पर क्या राय है?
– ब्रह्मपुत्र में बाढ़ के पानी से हर साल हजारों घर प्रभावित होते हैं। इससे निजात पाने के लिए ब्रह्मपुत्र के बाढ़ के पानी को छह जिलों में डायवर्ट करने की योजना है। इन झीलों के आसपास वेटलैंड विकसित किया जाएगा। आपदा नियंत्रण के साथ-साथ धीरे-धीरे झील पर्यटन स्थल के रूप में भी विकसित हो जाएंगे। कंटेनर स्कूल (लोहे के बड़े-बड़े बाक्स, जिसके जरिये जहाजों में सामान भेजा जाता है) जैसे समाधान आपातकालीन स्थितियों में कारगर हो सकते हैं। तकनीकी विशेषज्ञों के साथ विचार-विमर्श किया जा रहा है कि कैसे ऐसे नवाचारों को सुरक्षा मानकों के अनुरूप विकसित किया जाए।
आपदा प्रबंधन को लेकर दुनियाभर में भारत की रैंकिंग को आप कैसे परिभाषित करेंगे? हम कितने सुरक्षित हो पाए हैं?
- दुनियाभर में जिन देशों (जापान, ब्राजील, चिली, फिलिपींस और आस्ट्रेलिया) ने अच्छा काम किया है, भारत भी उनमें से एक हैं। दूसरे देशों को एक या दो आपदाओं का सामना करना पड़ता है, लेकिन भारत को हर तरह की आपदा से जूझना पड़ता है। बावजूद इसके हमने अलर्ट सिस्टम के जरिये प्राकृतिक आपदाओं में जानमाल की क्षति को लगभग नगण्य कर दिया है। अब हम खुद को काफी सुरक्षित महसूस करते हैं।
1999 में ओडिशा में आए सुपर स्लाइक्लोन में 10 हजार से ज्यादा, भुज भूकंप में लगभग 10 हजार और 2004 के सुनामी में भी लगभग इतने ही लोगों की जान गई थी। इसके बाद वर्ष 2005 में भारत सरकार ने एनडीएमए का गठन किया। उसके बाद से अब तक बीते 20 सालों में हमने 38 गाइडलाइन जारी की हैं। इसमें सभी प्राकृतिक आपदा के साथ स्कूल, सुरक्षा, चारधाम- अमरनाथ यात्रा में सुरक्षा। 2007 में हमने नेशनल डिजास्टर रिस्पांस फोर्स (एनडीआरएफ) का गठन किया। उस समय आठ बटालियन थीं, आज 16 हैं, जिसमें लगभग 18000 प्रशिक्षित कर्मी हैं। 2008 में हमने अपनी नीति बनाई है।
इसमें हमने समुदायों, सिविल सोसायटी, एनजीओ को जोड़ने और सक्रिय करने में जोर दिया है, क्योंकि वे 'फर्स्ट रिस्पांडर' (घटना स्थल पर पहुंचने वाले) हैं। 140 करोड़ के देश में हर कोने पर टीम का तत्काल पहुंचना मुश्किल है। ऐसे में यही लोग मौके पर पहुंचकर राहत कार्य शुरू करें। वर्ष 2015 में जापान के सेंडई में डिजास्टर मैनेजमेंट प्लान का फ्रेमवर्क तैयार करने के लिए 187 देशों ने हस्ताक्षर किए थे। इसमें सात लक्ष्य तय किए गए थे। इसमें आपदा स्थल तक तत्काल पहुंचाना, मृतकों की संख्या, आर्थिक व इंफ्रास्ट्रक्चर नुकसान में कमी मुख्य रूप से है।
2030 तक इन लक्ष्यों को पूरा करना है। भारत उन देशों में शामिल हो गया, जिन्होंने 2015 में ही अपना नेशनल डिजास्टर मैनेजमेंट प्लान (एनडीएमपी) बनाया है। इसके आधार पर आज हमारे पास सभी 28 राज्यों व आठ केंद्रशासित प्रदेशों का स्टेट डिजास्टर प्लान है। राज्य के डिजास्टर प्लान को आधार मानकर 712 से अधिक जिलों का डिजास्टर मास्टर प्लान तैयार कर लिया गया है। अगले तीन-चार महीने में शेष जिलों का भी प्लान तैयार हो जाएगा। यही नहीं अब हर मिनिस्ट्री अपना डिजास्टर प्लान बना रही है।
भारत के आपदा प्रबंधन के पड़ावों को कुछ इस तरह समझा जा सकता है...
1999 से पहले स्थिति कुछ इस तरह थी
आते हैं आने दो, कश्ती का खुदा खुद हाफिज
मुमकिन है उठती लहरों में साहिल आ जाए।
(यानी सबकुछ ऊपरवाले या किस्मत के भरोसे था)
2005 के बाद एनडीएमए का गठन हुआ। इसके लिए राहत इंदौर का एक शेर याद आता है...
तूफानों से हाथ मिला लो, सैलाबों पर वार करो,
मल्लाहों का चक्कर छोड़ो, तैर के दरिया पार करो।
और 2025 में आज हम जहां खड़े हैं... वहां वसीम बरेलवी का यह शेर मौजूं है ...
आते हैं आने दो, यह तूफान क्या ले जाएंगे,
मैं तो तब डरता, अगर मेरा हौसला ले जाते।
हौसला हमारी गाइडलाइन, हौसला हमारी माकड्रिल, हौसला समुदायों से संवाद...और लोगों को आपदा से निपटने की तैयारी है।
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