'जज से भी गलती हो सकती है...', कुलदीप सेंगर की जमानत पर सु्प्रीम कोर्ट सख्त; आदेश पर लगी रोक
सुप्रीम कोर्ट ने उन्नाव दुष्कर्म मामले में दोषी पूर्व विधायक कुलदीप सिंह सेंगर को दिल्ली हाई कोर्ट द्वारा दी गई जमानत पर अंतरिम रोक लगा दी है। अब सेंग ...और पढ़ें

सोमवार को सेंगर की सजा निलंबित कर दी गई
जागरण ब्यूरो, नई दिल्ली। उन्नाव दुष्कर्म कांड में दोषी पूर्व विधायक कुलदीप सिंह सेंगर फिलहाल जेल में ही रहेगा। उसके बाहर आने की उम्मीद खत्म हो गई है। सुप्रीम कोर्ट ने सोमवार को सेंगर की सजा निलंबित कर उसे जमानत देने के दिल्ली हाई कोर्ट के आदेश पर अंतरिम रोक लगा दी है। शीर्ष अदालत ने हाई कोर्ट के आदेश पर रोक लगाते हुए स्पष्ट किया कि सेंगर रिहा नहीं किया जाएगा।
इसके साथ ही कोर्ट ने सीबीआई की याचिका पर सेंगर को नोटिस जारी करते हुए मामले को 20 जनवरी को फिर सुनवाई पर लगाने का आदेश दिया है। सोमवार को मामले पर सुनवाई के दौरान कोर्ट ने कई तीखी टिप्पणियां भी कीं। ये आदेश प्रधान न्यायाधीश सूर्यकांत, जेके महेश्वरी और आगस्टीन जार्ज मसीह की पीठ ने कुलदीप सेंगर की सजा निलंबित कर उसे जमानत देने के दिल्ली हाई कोर्ट के आदेश को चुनौती देने वाली सीबीआई की याचिका पर सुनवाई के बाद सोमवार को जारी किये।
23 दिसंबर को मिली थी जमानत
दिल्ली हाई कोर्ट ने उन्नाव में 2017 में नाबालिग से दुष्कर्म के जुर्म में पूर्व विधायक कुलदीप सिंह सेंगर को निचली अदालत द्वारा दी गई आजीवन कारावास की सजा निलंबित करते हुए 23 दिसंबर को उसे जमानत दे दी थी। दिल्ली की एक निचली अदालत ने 2019 में सेंगर को नाबालिग से दुष्कर्म के जुर्म में आईपीसी और बच्चों को यौन अपराधों से संरक्षण देने वाले कानून में दोषी ठहराते हुए आजीवन कारावास की सजा सुनाई थी।
सेंगर ने इस सजा के खिलाफ दिल्ली हाई कोर्ट में अपील दाखिल कर रखी है। सोमवार को सीबीआई की ओर से पेश सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता ने हाई कोर्ट के आदेश पर रोक लगाने की मांग करते हुए कहा कि यह एक बच्चे के साथ दुष्कर्म का भयावह मामला है। इसमें सेंगर पर आईपीसी की धारा 376 और पोक्सो कानून की धारा पांच और छह के तहत आरोप तय किए गए थे। दोनों कानूनों में उसे दोषी ठहराया गया है। दोषसिद्दि के खिलाफ इसकी अपील हाई कोर्ट में लंबित है। मेहता ने कहा कि इस मामले में पीड़िता 16 वर्ष से कम आयु की थी। उसकी आयु 15 वर्ष 10 माह थी।
पीड़िता 16 वर्ष से कम आयु की नाबालिग थी
मेहता ने कहा कि दुष्कर्म से संबंधी कानून में संशोधन के बाद सेंगर द्वारा किये गए अपराध की न्यूनतम सजा 20 वर्ष का कारावास है। हालांकि पीठ ने कहा कि संशोधन मौजूदा मामले में अपराध घटित होने के बाद प्रभावी हुआ है। मेहता ने कहा कि सेंगर के लोकसेवक न होने के संबंध में हाई कोर्ट का निष्कर्ष अप्रासांगिक है क्योंकि पीड़िता 16 वर्ष से कम आयु की नाबालिग थी। मेहता ने यह भी कहा कि आईपीसी में लोकसेवक द्वारा किया गया दुष्कर्म का अपराध ज्यादा गंभीर माना गया है। यानी जो व्यक्ति प्रभुत्व में अपराध करता है वह ज्यादा गंभीर अपराध होता है।
उन्होंने कहा कि लोकसेवक के बारे में जो परिभाषा आइपीसी में दी गई है वही पोक्सो कानून में भी मानी जानी चाहिए। हालांकि सेंगर के वकील ने इसका विरोध किया। इस विरोध पर कोर्ट ने टिप्पणी करते हुए कहा कि उनकी चिंता सिर्फ ये है कि एक सिपाही या पटवारी अगर ऐसा अपराध करता है तो वह लोकसेवक होगा लेकिन अगर आपकी दलील माने तो एक सांसद या विधायक होगा तो उसे छूट मिल जाएगी। कोर्ट ने संक्षिप्त दलीलें सुनने के बाद याचिका पर नोटिस जारी किया और हाई कोर्ट के आदेश पर अंतरिम रोक लगाते हुए कहा कि इस मामले में कानून के महत्वपूर्ण प्रश्नों पर विचार करने की आवश्यकता है।
23 दिसंबर के आदेश पर रोक
कोर्ट ने कहा कि सामान्य तौर पर निचली अदालत या हाई कोर्ट के आदेश पर किसी दोषी या विचाराधीन कैदी को रिहा किया जाता है तो सुप्रीम कोर्ट उसका पक्ष सुने बगैर उस आदेश पर रोक नहीं लगाता। हालांकि यह एक विशिष्ट मामला है। कोर्ट को बताया गया है कि दोषी अभियुक्त आईपीसी की धारा 304 भाग दो में अलग से एक अन्य मामले में दोषी ठहराया जा चुका है और उस मामले में हिरासत में है। उस मामले में भी उसने जमानत के लिए आवेदन किया है जिस पर सुनवाई करके संबंधित अदालत ने फैसला सुरक्षित रखा हुआ है। पीठ ने कहा कि इन विशिष्ट परिस्थितियों को देखते हुए वह दिल्ली हाई कोर्ट के 23 दिसंबर के आदेश पर रोक लगा रहे हैं।
सुनवाई के दौरान पीड़िता की ओर से भी एक वकील पेश हुआ जिसने मामले में हस्तक्षेप अर्जी देने की छूट मांगी। कोर्ट ने कहा कि उसे किसी तरह की छूट मांगने की जरूरत नहीं है उसके पास अलग से विधायी याचिका दाखिल करने का अधिकार है। पीठ ने कहा कि अगर वह चाहे तो मुफ्त कानूनी सहायता प्राप्त कर सकती है और सुप्रीम कोर्ट लीगल सर्विस अथॉरिटी उसे यह सेवा प्रदान करेगी। हालांकि वह अपनी पसंद के वकील के जरिए भी याचिका दाखिल कर सकती है। सुनवाई के दौरान फैसला सुनाने वाले हाई कोर्ट के जजों की आलोचना का मुद्दा उठा जिस पर पीठ ने कहा कि हमारे जज सर्वश्रेष्ठ हैं। कोर्ट ने आलोचना की निंदा की। हालांकि साथ ही कहा कि हम से भी गलती हो सकती है।

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