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    अब वकीलों के दलील रखने की तय होगी समयसीमा, नए साल से सुप्रीम कोर्ट करने जा रहा बड़ा बदलाव

    By MALA DIXITEdited By: Swaraj Srivastava
    Updated: Tue, 30 Dec 2025 11:30 PM (IST)

    सुप्रीम कोर्ट नए साल से वकीलों की मौखिक दलीलों के लिए समय सीमा लागू करेगा। इसका उद्देश्य त्वरित न्याय और प्रभावी कोर्ट प्रबंधन है। वकीलों को सुनवाई से ...और पढ़ें

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    समय सीमा का यह नियम और एसओपी तत्काल प्रभाव से लागू

    माला दीक्षित, नई दिल्ली। नए वर्ष में सुप्रीम कोर्ट में एक बड़ा बदलाव होने जा रहा है। अब सुप्रीम कोर्ट के वकील तय समय सीमा के भीतर अपनी मौखिक दलीलें रखेंगे। उन्हें समय सीमा का कड़ाई से पालन करना होगा। सुप्रीम कोर्ट ने पहली बार वकीलों की मौखिक बहस के लिए समय सीमा का नियम लागू किया है। कोर्ट ने त्वरित न्याय और प्रभावी कोर्ट प्रबंधन के उद्देश्य से वकीलों की मौखिक बहस के बारे में समय सीमा पालन करने का नियम लागू किया है।

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    सुप्रीम कोर्ट द्वारा जारी सर्कुलर के मुताबिक किसी भी मामले में कोर्ट से नोटिस जारी होने के बाद नियमित सुनवाइयों में मौखिक दलीलों के लिए तय समय सीमा का यह नियम और एसओपी तत्काल प्रभाव से लागू हो गई है। सुप्रीम कोर्ट के इस कदम को शीघ्र न्याय की दिशा में महत्वपूर्ण माना जा रहा है, क्योंकि इससे मौखिक दलीलों में लगने वाले समय की अनिश्चितता समाप्त होगी और केस का जल्दी निस्तारण होगा।

    सुप्रीम कोर्ट ने जारी किया सर्कुलर

    सुप्रीम कोर्ट द्वारा जारी सर्कुलर में कहा गया है कि मौखिक बहस के लिए टाइमलाइन की एसओपी (मानक संचालन प्रक्रिया) जारी करने का उद्देश्य प्रभावी कोर्ट प्रबंधन, न्यायालय के कार्य घंटों का समान वितरण और न्याय का त्वरित एवं उचित प्रशासन सुनिश्चित करना है। एसओपी के अनुसार, किसी मामले में नोटिस जारी होने के बाद होने वाली नियमित सुनवाई में वरिष्ठ वकील, बहस करने वाले वकील या एडवोकेट ऑन रिकार्ड (एओआर), सुनवाई शुरू होने से कम से कम एक दिन पहले मौखिक बहस की टाइमलाइन कोर्ट में दाखिल कर देंगे।

    यह समय सीमा वकीलों को मामले में पेश होने की पर्ची (एपियरेंस स्लिप) देने वाले आनलाइन पोर्टल पर देनी होगी। बहस करने वाले वकील या वरिष्ठ वकील अपने एओआर के जरिये या कोर्ट द्वारा नामित नोडल वकील के जरिए सुनवाई की तारीख से कम से कम तीन दिन पहले संक्षिप्त नोट या लिखित दलीलें दाखिल करेंगे, ताकि समय सीमा का पालन सुनिश्चित किया जा सके। लिखित दलीलें भी पांच पेज से ज्यादा की नहीं होनी चाहिए और लिखित दलीलों की प्रति दूसरे पक्ष को दी जाएगी। सर्कुलर में कहा गया है कि सभी वकील मौखिक बहस समाप्त करने में तय समय सीमा का कड़ाई से पालन करेंगे।

    लंबित मामलों के शीघ्र निपटारे की कोशिश

    प्रधान न्यायाधीश जस्टिस सूर्यकांत ने पद संभालते ही कहा था कि लंबित मामलों का शीघ्र निपटारा उनकी प्राथमिकता है। उन्होंने यह भी कहा था कि जल्दी ही आपको बदलाव दिखेगा। उन्होंने संविधान पीठों में लंबित मामलों के जल्द निपटारे की बात भी कही थी, ताकि सिर्फ सुप्रीम कोर्ट ही नहीं बल्कि देश भर की अदालतों में लंबित मुकदमों के निपटारे में तेजी आए। ऐसा इसलिए होगा क्योंकि संविधान पीठों मे लंबित कानूनी मुद्दों के सैकड़ों मामले निचली अदालतों और उच्च न्यायालयों में लंबित होते हैं जो कि सुप्रीम कोर्ट की संविधान पीठ का फैसला आने के बाद जल्दी ही निस्तारित हो सकते हैं।

    चीफ जस्टिस ने पद संभालते समय कहा था कि वह विभिन्न उच्च न्यायालयों से ऐसे केसों की सूची मंगाएंगे, जिनके मामलों में कानूनी मुद्दे सुप्रीम कोर्ट की संविधान पीठों में लंबित केस में विचाराधीन हैं। सुप्रीम कोर्ट में इस समय लंबित हैं 92 हजार केससुप्रीम कोर्ट में इस समय 92,010 केस लंबित हैं। इनमें से 72,658 दीवानी और 19,352 क्रिमनल केस हैं। इनमें 219 केसों की सुनवाई तीन जजों की पीठ, 27 मामलों की सुनवाई पांच जजों की पीठ, छह मामलों की सुनवाई सात जजों और चार केसों की सुनवाई नौ जजों की पीठ में होनी है। सुप्रीम कोर्ट में इस वर्ष मुकदमों के निस्तारण की दर 87 प्रतिशत रही।

    अब जो नियम सुप्रीम कोर्ट ने लागू किया है, उससे केस निपटारे की दर में तेजी आने की उम्मीद है। केशवानंद भारती मामले में चली थी सबसे लंबी बहसअभी तक केशवानंद भारती का केस था, जिसमें सुप्रीम कोर्ट में सबसे अधिक 68 दिनों तक सुनवाई चली थी। यानी वकीलों ने मौखिक दलीलें 68 दिनों तक रखी थीं। दूसरे नंबर पर राम जन्मभूमि का केस आता है, जिसकी सुनवाई 40 दिनों तक चली थी। लेकिन शायद अब कभी ये रिकार्ड न टूटे, क्योंकि कोर्ट ने वकीलों की मौखिक दलीलों के लिए जो टाइमलाइन के पालन का नियम लागू किया है, उसमें भविष्य में कभी ऐसी नौबत आने की संभावना नहीं दिखती।