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    अयोध्या कांड में आडवाणी समेत बीस को नोटिस

    By Shashi BhushanEdited By:
    Updated: Tue, 31 Mar 2015 09:22 PM (IST)

    अयोध्या में विवादित ढांचा ढहाने की साजिश के आरोप से पांच साल पहले मुक्त हो चुके भाजपा और विहिप के वरिष्ठ नेताओं की मुसीबतें बढ़ती नजर आ रही हैं। मंगल ...और पढ़ें

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    नई दिल्ली जागरण ब्यूरो। अयोध्या में विवादित ढांचा ढहाने की साजिश के आरोप से पांच साल पहले मुक्त हो चुके भाजपा और विहिप के वरिष्ठ नेताओं की मुसीबतें बढ़ती नजर आ रही हैं। मंगलवार को सुप्रीमकोर्ट ने ढांचा ढहाने के मामले में आपराधिक साजिश का मुकदमा चलाए जाने की मांग पर भाजपा के वरिष्ठ नेता लालकृष्ण आडवाणी, मुरली मनोहर जोशी व उमा भारती सहित 20 लोगों को नोटिस जारी किया।

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    कोर्ट ने ये नोटिस अयोध्या निवासी हाजी महबूब अहमद की याचिका पर जारी किया है। हाजी महबूब ने अपनी विशेष अनुमति याचिका में इलाहाबाद हाईकोर्ट के 20 मई 2010 के फैसले को चुनौती दी है। इसमें हाईकोर्ट ने आडवाणी व जोशी सहित 21 लोगों के खिलाफ आरोप निरस्त करने के विशेष जज के फैसले को सही ठहराया था।

    हालांकि इस बारे में सीबीआइ की विशेष अनुमति याचिका पहले से ही सुप्रीमकोर्ट में लंबित है। लेकिन हाजी ने अलग से नई याचिका दाखिल कर सीबीआइ पर नरम रुख अख्तियार करने का दोषारोपण किया है। वैसे आडवाणी और अन्य लोगों के खिलाफ रायबरेली की अदालत में भड़काऊ भाषण देने का मुकदमा चल रहा है लेकिन उन पर ढांचा ढहाने की साजिश के आरोप नहीं हैं।

    मंगलवार को हाजी महबूब की ओर से पेश वकील और कांग्रेस नेता कपिल सिब्बल ने कोर्ट से नोटिस जारी करने और मामले को सीबीआइ की याचिका के साथ सुनवाई के लिए संलग्न करने का आग्रह किया। उनकी दलीलें सुनने के बाद मुख्य न्यायाधीश एचएल दत्तू की अध्यक्षता वाली पीठ ने याचिका में पक्षकार बनाए गए सभी 20 नेताओं को नोटिस जारी कर चार सप्ताह में जवाब मांगा है।

    इस बीच सीबीआइ की ओर से पेश एडीशनल सॉलिसीटर जनरल ने कोर्ट से कुछ समय देने का अनुरोध कर कहा कि सीबीआइ एक नया हलफनामा दाखिल करेगी जिसमें विशेष अनुमति याचिका दाखिल करने में हुई देरी और मामले की मेरिट पर जवाब दिया जाएगा। पीठ ने उन्हें हलफनामा दाखिल करने के लिए समय देते हुए सुनवाई चार सप्ताह के लिए टाल दी।

    केंद्र में भाजपा नीत सरकार अलग याचिका का आधार : हाजी महबूब

    हाजी महबूब ने अलग से विशेष अनुमति याचिका दाखिल करने का आधार बताते हुए कहा है कि जब 2001 में हाईकोर्ट ने तकनीकी आधार पर अधिसूचना रद की थी और जिसके कारण सभी 21 अभियुक्त आरोपमुक्त हो गए थे, उस समय उत्तर प्रदेश में भाजपा की सरकार थी और राजनाथ सिंह मुख्यमंत्री थे।

    हाईकोर्ट ने कहा था कि राज्य सरकार तकनीकी खामी दूर कर नई अधिसूचना जारी कर सकती है लेकिन ऐसा नहीं किया गया। 2011 में सीबीआइ ने सुप्रीमकोर्ट में विशेष अनुमति याचिका दाखिल की जो कि अभी लंबित है। लेकिन इस बीच हालात बदल गए।

    केंद्र में भाजपा की अगुवाई वाली सरकार सत्ता में आ गई है। जिन्होंने उस समय मुख्यमंत्री होते हुए तकनीकी खामी दूर कर नई अधिसूचना जारी नहीं की थी वे इस समय केंद्र में महत्वपूर्ण विभाग के (राजनाथ सिंह) मंत्री हैं। एक दूसरी अभियुक्त (उमा भारती) भी कैबिनेट मंत्री हैं जबकि एक अन्य अभियुक्त (कल्याण सिंह) राज्यपाल हैं।

    कहा गया है कि बदली राजनीतिक परिस्थितियों में हो सकता है कि सीबीआइ सुप्रीमकोर्ट में लंबित अपनी अपील पर जोर न दे। ऐसे में जरूरी हो जाता है कि जन भावनाओं को समझने वाला कोई व्यक्ति इस मुद्दे पर याचिका दाखिल कर हाईकोर्ट के फैसले को चुनौती दे।