प्रशिक्षु डॉक्टरों को मानदेय के भुगतान में विफलता के लिए NMC को SC की फटकार; कोर्ट ने की ये टिप्पणी
सुप्रीम कोर्ट ने प्रशिक्षु डॉक्टरों को मानदेय भुगतान में विफलता पर नेशनल मेडिकल कमीशन (एनएमसी) को फटकार लगाई। अदालत ने एनएमसी की निष्क्रियता पर नाराजगी जताई, क्योंकि डॉक्टर अक्सर 18 घंटे से अधिक काम करते हैं। कोर्ट ने कहा कि प्रशिक्षु डॉक्टरों को न्यूनतम मानदेय मिलना चाहिए। याचिकाकर्ताओं ने मानदेय में देरी का मुद्दा उठाया, जिस पर कोर्ट ने जल्द समाधान का आग्रह किया।
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प्रशिक्षु डॉक्टरों को मानदेय के भुगतान में विफलता के लिए NMC को SC की फटकार (फाइल फोटो)
डिजिटल डेस्क, नई दिल्ली। देशभर में प्रशिक्षु डाक्टरों को मानदेय का भुगतान सुनिश्चित करने में विफल रहने के लिए सुप्रीम कोर्ट ने मंगलवार को नेशनल मेडिकल कमीशन (एनएमसी) को फटकार लगाई। शीर्ष अदालत ने युवा डाक्टरों द्वारा किए जाने वाले लंबे काम के घंटों के मद्देनजर इस चूक को बेहद चिंताजनक और अनुचित बताया।
साथ ही निर्देशों के लगातार गैर-अनुपालन के मद्देनजर एनएमसी को दो सप्ताह में हलफनामा दायर अनुपालन सुनिश्चित करने का निर्देश दिया।जस्टिस अरविंद कुमार और जस्टिस एनवी अंजारिया की पीठ ने एनएमसी की निष्क्रियता पर कड़ी नाराजगी व्यक्त करते हुए कहा कि प्रशिक्षु डाक्टर अक्सर दिन में 18 घंटे से ज्यादा काम करते हैं और कम से कम वे न्यूनतम मानदेय के हकदार हैं।
क्यों की टिप्पणी?
पीठ ने कहा, ''एनएमसी का यह रवैया निंदनीय है क्योंकि प्रशिक्षु डाक्टरों को मानदेय के भुगतान का मामला इस अदालत के सामने लंबे समय से लंबित है, फिर भी एनएमसी गंभीरता से विचार किए बिना टालमटोल कर रहा है। इसलिए हमें यह टिप्पणी करने के लिए मजबूर होना पड़ा।''
पीठ भारतीय एवं विदेशी चिकित्सा स्नातकों द्वारा कई मेडिकल कालेजों द्वारा प्रशिक्षु मानदेय के भुगतान में देरी या भुगतान नहीं करने को चुनौती देने वाली याचिकाओं पर सुनवाई कर रही थी। पीठ ने पूछा कि क्या एनएमसी ने पिछले निर्देशों के अनुसार अनुपालन रिपोर्ट दायर की है।
याचिकाकर्ता की वकील ने क्या कहा?
एनएमसी के वकील ने 11 जुलाई, 2025 का एक नोटिस रिकार्ड पर रखा, जो कथित तौर पर मेडिकल कालेजों को जारी किया गया था। लेकिन कोर्ट ने कहा कि उस नोटिस में दिए गए निर्देशों का भी पालन नहीं किया गया है।
याचिकाकर्ताओं की वकील तन्वी दुबे ने कहा कि प्रशिक्षु डाक्टरों को बार-बार आश्वासन के बावजूद अनुचित तरीके से मानदेय से वंचित किया गया है। कई याचिकाकर्ता पहले ही स्नातक कर चुके हैं, फिर भी अधिकारियों ने कोई ठोस कदम नहीं उठाया। उन्होंने पीठ से इस मुद्दे का जल्द और अंतिम समाधान करने का आग्रह किया।

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