Supreme Court: नबम रेबिया फैसला पुनर्विचार के लिए बड़ी पीठ को भेजने से सुप्रीम कोर्ट का इनकार
प्रधान न्यायाधीश डीवाई चंद्रचूड़ की अध्यक्षता वाली पांच सदस्यीय संविधान पीठ ने कहा कि नबम रेबिया फैसले को पुनर्विचार के लिए सात सदस्यीय पीठ को भेजा जा ...और पढ़ें

नई दिल्ली, पीटीआई। शिवसेना में विभाजन से जून, 2022 में उत्पन्न महाराष्ट्र के राजनीतिक संकट से जुड़े मामले में सुप्रीम कोर्ट ने शुक्रवार को अपना नबम रेबिया फैसला पुनर्विचार के लिए सात सदस्यीय पीठ को भेजने से इन्कार कर दिया।
2016 में अरुणाचल प्रदेश के नबम रेबिया मामले में फैसला सुनाते हुए पांच सदस्यीय संविधान पीठ ने कहा था कि विधानसभा स्पीकर सदन में अपने विरुद्ध रिमूवल का पूर्व नोटिस लंबित रहते हुए विधायकों की अयोग्यता याचिका पर फैसला नहीं कर सकता। नबम रेबिया फैसला एकनाथ शिंदे (महाराष्ट्र के वर्तमान मुख्यमंत्री) के नेतृत्व में शिवसेना के विद्रोही विधायकों के लिए रक्षा कवच साबित हुआ।
पार्टी के उद्धव ठाकरे गुट ने विद्रोही गुट के विधायकों को अयोग्य ठहराने की मांग की थी, जबकि शिंदे गुट पहले ही उद्धव के प्रति निष्ठावान विधानसभा के डिप्टी स्पीकर नरहरि सीताराम जिरवाल को हटाने का नोटिस दे चुका था और वह सदन के समक्ष लंबित था।
प्रधान न्यायाधीश डीवाई चंद्रचूड़ की अध्यक्षता वाली पांच सदस्यीय संविधान पीठ ने कहा कि नबम रेबिया फैसले को पुनर्विचार के लिए सात सदस्यीय पीठ को भेजा जाए या नहीं, इस पर अलग से विचार नहीं किया जा सकता। इस पर 21 फरवरी को मामले की मेरिट के साथ विचार किया जाएगा। पीठ में जस्टिस एमआर शाह, जस्टिस कृष्ण मुरारी, जस्टिस हिमा कोहली और जस्टिस पीएस नरसिम्हा भी शामिल हैं।
उद्धव गुट ने की थी बड़ी पीठ के समक्ष मामले को भेजने की मांग
उद्धव गुट की ओर से पेश वरिष्ठ वकीलों कपिल सिब्बल और एएम सिंघवी ने नबम रेबिया मामले को बड़ी पीठ को भेजने की मांग की थी। शिंदे गुट की ओर से पेश वरिष्ठ वकीलों हरीश साल्वे और एनके कौल ने इस मांग का विरोध किया था।
महाराष्ट्र के राज्यपाल की ओर से पेश सालिसिटर जनरल तुषार मेहता ने भी फैसले को पुनर्विचार के लिए बड़ी पीठ को भेजने का विरोध किया था। शिवसेना में खुली बगावत के बाद महाराष्ट्र में राजनीतिक संकट पैदा हो गया था और सुप्रीम कोर्ट ने 29 जून, 2022 को राज्यपाल के उस निर्देश पर रोक लगाने से इन्कार कर दिया था, जिसमें 31 माह पुरानी एमवीए सरकार को विधानसभा में बहुमत सिद्ध करने के लिए कहा गया था। बहुमत परीक्षण से पहले ही मुख्यमंत्री उद्धव ठाकरे ने इस्तीफा दे दिया था।
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23 अगस्त, 2022 को तत्कालीन प्रधान न्यायाधीश एनवी रमणा की अध्यक्षता वाली तीन सदस्यीय पीठ ने कानून के कई सवाल तैयार किए थे और शिवसेना के दोनों गुटों की ओर से दाखिल याचिकाएं पांच सदस्यीय संविधान पीठ को संदर्भित कर दी थीं। इन याचिकाओं में दलबदल, विलय और अयोग्यता से जुड़े कई संवैधानिक सवाल उठाए गए थे।
पीठ का कहना था कि याचिकाओं में अयोग्यता, स्पीकर व राज्यपाल के अधिकार और न्यायिक समीक्षा से संबंधित संविधान के 10वें शेड्यूल से जुड़े महत्वपूर्ण संवैधानिक मुद्दे उठाए गए हैं। यह शेड्यूल राजनीतिक दल के निर्वाचित व नामित सदस्यों के दलबदल को रोकने से संबंधित है और इसमें इसके विरुद्ध कड़े प्रविधान हैं।

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