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    नाबालिग से शारीरिक संबंध का मामला SC ने महिला एवं बाल विकास मंत्रालय भेजा

    By Rajesh KumarEdited By:
    Updated: Thu, 05 Jan 2017 09:55 PM (IST)

    कोर्ट ने मंत्रालय से मामले पर चार महीने में विचार करके रिपोर्ट देने को कहा है।

    जागरण ब्यूरो, नई दिल्ली। नाबालिग विवाहिता लड़कियों से शारीरिक संबंध बनाने को लेकर कानूनों के बीच विरोधाभास का मामला सुप्रीमकोर्ट ने विचार के लिए महिला एवं बाल विकास मंत्रालय को भेजा है। कोर्ट ने मंत्रालय से मामले पर चार महीने में विचार करके रिपोर्ट देने को कहा है। मुख्य न्यायाधीश जेएस खेहर की अध्यक्षता वाली पीठ ने ये आदेश गैर सरकारी संगठन बचपन बचाओ आंदोलन की याचिका का निपटारा करते हुए दिये।

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    गुरुवार को याचिका पर सुनवाई के दौरान मुख्य न्यायाधीश जेएस खेहर की पीठ ने कहा कि यह मामला गंभीर है इसलिए वे याचिका को एक ज्ञापन के तौर पर महिला एवं बाल विकास मंत्रालय को भेज रहे हैं। मंत्रालय याचिका में की गई मांग पर विचार कर चार महीने में अपनी रिपोर्ट दे। रिपोर्ट कोर्ट को भी दी जाएगी और याचिकाकर्ता को भी। पीठ ने कहा कि यदि याचिकाकर्ता मंत्रालय की कार्यवाही से संतुष्ट नहीं होता है तो वह फिर कोर्ट आ सकता है। यह कहते हुए कोर्ट ने याचिका निपटा दी।

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    बचपन बचाओ आंदोलन ने अपनी याचिका में नाबालिग युवतियों से संबंध बनाने को लेकर विभिन्न कानूनों में अंतर का मुद्दा उठाते हुए सभी मामलों में पोस्को (प्रोटक्शन आफ चिल्ड्रन फ्राम सेक्सुअल अफेन्स) कानून लागू करने की मांग की थी। याचिकाकर्ता का कहना था कि पोस्को बच्चों को यौन शोषण से बचाने का विशेष कानून है और वो सब कानूनों से ऊपर माना जाएगा।

    पोस्को कानून के मुताबिक 18 साल से कम आयु की लड़की बच्चा मानी जाती है और उससे उसकी मर्जी में शारीरिक संबंध बनाना भी यौन अपराध माना जाता है जबकि आईपीसी की धारा 375 का अपवाद 2 कहता है कि अगर कोई व्यक्ति अपनी 15 वर्षीय पत्नी से शारीरिक संबंध बनाता है तो वह बलात्कार का अपराध नहीं माना जाएगा। इसी तरह बाल विवाह रोक कानून में नाबालिग लड़की जिसका बाल विवाह हुआ है वो सिर्फ तभी संबंध से छुटकारा पा सकती है जबकि वह अपने संरक्षक के जरिये जिला अदालत में इसके लिए याचिका दाखिल करती है। याचिकाकर्ता कहना है कि सभी मामलों में पोस्को ही लागू होना चाहिए।

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