क्या विधानसभा से पास बिल पर राष्ट्रपति या राज्यपाल की सहमति के लिए समयसीमा तय की जा सकती है? SC करने जा रहा सुनवाई
सुप्रीम कोर्ट ने राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू की राय पर सुनवाई के लिए 19 अगस्त से 10 सितंबर की तारीख तय की है जिसमें पूछा गया है कि क्या विधानसभाओं से पारित विधेयकों पर राष्ट्रपति या राज्यपाल की सहमति के लिए कोई समयसीमा तय की जा सकती है। अदालत ने समर्थन और विरोध करने वाले पक्षों के लिए सुनवाई का कार्यक्रम तय किया है।

डिजिटल डेस्क, नई दिल्ली। सुप्रीम कोर्ट ने मंगलवार (29 जुलाई, 2025) को राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू की उस राय पर सुनवाई की तारीख निर्धारित कर दी है, जिसमें यह पूछा गया था कि क्या विधानसभाओं से पारित विधेयकों पर राष्ट्रपति या राज्यपाल की सहमति के लिए कोई समयसीमा तय की जा सकती है। अदालत ने 19 अगस्त से 10 सितंबर के बीच की तारीख तय की है।
इसका समर्थन और विरोध करने वाले पक्षों के लिए सुनवाई का कार्यक्रम तय करते हुए सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि किसी भी परिस्थिति में सुनवाई के कार्यक्रम में बदलाव में नहीं किया जाएगा। सुप्रीम कोर्ट ने अधिवक्ता अमन मेहता और निशा रोहतगी को केंद्र सरकार और राष्ट्रपति के संदर्भ का विरोध करने वाले पक्षों की ओर से नोडल वकील नियुक्त किया और उनसे इस मुद्दे पर अपने संकलन तैयार करने के लिए कहा।
सीजेआई की अध्यक्षता वाली पीठ ने क्या कहा?
भारत के मुख्य न्यायाधीश (सीजेआई) बीआर गवई की अध्यक्षता वाली पांच जजों की संविधान पीठ ने पक्षकारों से 12 अगस्त तक अपना-अपना लिखित पक्ष दाखिल करने को कहा। पीठ में जस्टिस सूर्यकांत, जस्टिस विक्रम नाथ, जस्टिस पी एस नरसिम्हा और जस्टिस ए एस चंदुरकर शामिल हैं।
सुप्रीम कोर्ट ने क्या कहा?
अदालत ने केरल और तमिलनाडु राज्यों को मामले की स्वीकार्यता पर अपना पक्ष रखने के लिए पहला एक घंटा भी दिया है। उनकी प्रस्तुतीकरण के बाद अदालत 19, 20, 21 और 26 अगस्त को इसका समर्थन करने वाले अटॉर्नी जनरल और केंद्र सरकार की सुनवाई करेगी। राष्ट्रपति के संदर्भ का विरोध करने वाले बाकी पक्षों की सुनवाई 28 अगस्त और 2, 3 और 9 सितंबर को होगी। अदालत ने कहा कि अगर को प्रत्युत्तर दाखिल करना है तो उस पर 10 सितंबर को सुनवाई होगी।
राष्ट्रपति मुर्मू ने मांगी थी राय
राष्ट्रपति मुर्मू ने दुर्लभ रूप से प्रयुक्त अनुच्छेद 143 (1) के तहत अपनी शक्ति का प्रयोग करते हुए सर्वोच्च न्यायालय का रुख किया और कहा कि वर्तमान परिस्थितियों में ऐसा प्रतीत होता है कि कानून के 14 प्रश्न उठे हैं और वे ऐसी प्रकृति और सार्वजनिक महत्व के हैं कि सर्वोच्च न्यायालय की राय प्राप्त करना जरूरी है।
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