नोटबंदी: ट्रांसपोर्टरों के जरिए काली कमाई को सफेद कर रहे आरटीओ
केंद्रीय सड़क परिवहन एवं राजमार्ग मंत्री नितिन गडकरी आरटीओ को सबसे भ्रष्ट महकमा बता चुके हैं।
संजय सिंह, नई दिल्ली। नोटबंदी से भ्रष्ट सरकारी अफसरों की काली कमाई को भी करारा झटका लगा है। लेकिन मोटी चमड़ी वाले विभागों के अफसरों ने इसका भी काफी हद तक रास्ता निकाल लिया है। इनमें आरटीओ के अफसर सबसे आगे हैं।
आरटीओ यानी रीजनल ट्रांसपोर्ट आफिस और उनके मुखिया अफसर। जिनके हाथ में किसी भी प्रदेश के किसी जिले के पूरे ट्रांसपोर्ट महकमे की नकेल होती है। वाहन के रजिस्ट्रेशन सर्टिफिकेट और ड्राइविंग लाइसेंस से लेकर फिटनेस जांच और सर्टिफिकेट जारी करने तक यातायात जगत के समस्त नियमन की जिम्मेदारी इन्हीं कार्यालयों और अफसरों के कंधों पर होती है। इनकी मर्जी के बगैर न तो कोई वाहन सड़क पर आ सकता है और न ही कोई व्यक्ति वाहन चला सकता है।
अपने इलाके की ट्रांसपोर्ट सल्तनत के ये बेताज बादशाह हैं ये। ऐसे में इलाके के घाघ ट्रांसपोर्टरों के साथ इनका रिश्ता कुछ वैसा ही होता है जैसा कि थानेदार का अपने इलाके के माफिया सरगनाओं के साथ। केंद्रीय सड़क परिवहन एवं राजमार्ग मंत्री नितिन गडकरी आरटीओ को सबसे भ्रष्ट महकमा बता चुके हैं।
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जाहिर है कि जब नोटबंदी में ट्रांसपोर्टर चांदी कूट रहे हैं तो फिर उनके संरक्षणदाता आरटीओ को भला कौन सी दिक्कत हो सकती है। इसलिए भ्रष्ट आरटीओ अफसरों के काले धन को भी ट्रांसपोर्टर ही सफेद बना रहे हैं। जिस तरह आरटीओ साधारण ट्रक वालों का शोषण कर रसूख वाले बड़े ट्रांसपोर्टरों के गैरकानूनी धंधों को संरक्षण देते हैं। उसी तरह बड़े ट्रांसपोर्टर संकट के समय आरटीओ अफसरों की मदद करने में देर नहीं लगाते। स्थानीय नेता, विधायक और संबंधित मंत्रियों के संरक्षण में यह अन्योन्याश्रित नापाक गठबंधन यूं ही फलता-फूलता रहता है। भ्रष्टाचार की इस थैली के ये सारे चट्टे-बट्टे काले धन को मिलकर बनाते ही नहीं, बल्कि जरूरत पड़ने पर उसे ठिकाने भी लगाते हैं।
इंडियन फाउंडेशन आफ ट्रांसपोर्ट ट्रेनिंग एंड रिसर्च के विशेषज्ञ एसपी सिंह के मुताबिक आरटीओ और ट्रांसपोर्टर का संबंध रहस्यमय है। इसमें परस्पर फायदे के लिए शोषित (ट्रांसपोर्टर) शोषक (आरटीओ) से स्वयं अपना शोषण करवाता है। चूंकि आधे से ज्यादा ट्रांसपोर्ट व्यवसाय गैरकानूनी ढंग से होता है, लिहाजा ट्रांसपोर्ट संगठनों के दबंग नेता अपनी व अपने चहेते ट्रांसपोर्टरों की गैरकानूनी गतिविधियों को बचाने के लिए बाकी समुदाय को आरटीओ के रहमोकरम पर छोड़ देते हैं।
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इस तरह ट्रांसपोर्टर नेता और आरटीओ अफसर मिलकर काला धन कमाते हैं। अब जबकि नोटबंदी के कारण दोनों की काली कमाई पर संकट के बादल छाए हुए हैं तो उसे सफेद करने में भी यह दोस्ती समान रूप से काम आ रही है। ट्रांसपोर्टर पेट्रोल पंपों का उधार चुकाकर, कर्मचारियों को दो-दो माह का वेतन देकर तथा दूसरे ट्रांसपोर्टरों और व्यापारियों के साथ सौदों का समायोजन कर अपने पुराने नोटों के सााथ-साथ आरटीओ अफसरों के काले धन को भी सफेद कर रहे हैं।
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