सड़क सुरक्षा को लेकर लापरवाही बरत रहीं राज्य सरकारें, बजट अलॉट होने के बावजूद नहीं लगे व्हीकल लोकेशन ट्रैकिंग डिवाइस
सड़क सुरक्षा को लेकर राज्य सरकारों की उदासीनता पर चिंता जताई गई है। केंद्रीय सड़क परिवहन मंत्रालय ने निर्भया फंड से व्हीकल लोकेशन ट्रैकिंग डिवाइस लगाने के लिए बजट दिया लेकिन राज्यों ने रुचि नहीं दिखाई। हर साल लाखों मौतें सड़क हादसों में होती हैं जिसका मुख्य कारण यातायात नियमों का उल्लंघन है।

जितेंद्र शर्मा, नई दिल्ली। तमाम राजनीतिक मुद्दों के लिए संघवाद पर हायतौबा करने वाली अधिकतर राज्य सरकारों का सच यह है कि जन सुरक्षा से सीधे-सीधे जुड़े काम से उनका कोई सरोकार नहीं है। जो सड़क सुरक्षा हर घर-परिवार से प्रत्यक्ष जुड़ी है, बढ़ते सड़क हादसे चिंता का कारण बने हुए हैं, उनकी रोकथाम को लेकर जितने उदासीन खुद वाहन चालक या संचालक हैं, उतनी ही बेपरवाह राज्य सरकारें भी हैं।
यही वजह है कि जब विशेषज्ञों की सलाह पर केंद्रीय सड़क परिवहन एवं राजमार्ग मंत्रालय ने सड़क सुरक्षा के लिए वाहनों को व्हीकल लोकेशन ट्रैकिंग डिवाइस से लैस करते हुए कंट्रोल एंड कमांड सेंटर स्थापित करने के लिए निर्भया फंड से बजट भी निर्धारित कर दिया, तब भी राज्य सरकारों ने इसे लागू करने में कोई रुचि नहीं ली।
हर साल लाखों मौतें सड़क हादसे में
सड़क सुरक्षा जैसे मुद्दे की गंभीरता को समझाने के लिए यह आंकड़ा दोहराना आवश्यक है कि देश में हर साल एक लाख 70 हजार से लेकर एक लाख 80 हजार तक यात्रियों की मृत्यु सड़क हादसों में हो जाती है। इसमें कोई संदेह नहीं कि यातायात नियमों का पालन करने की सबसे पहली जिम्मेदारी खुद वाहन चालकों की ही है।
देश की विडंबना यह है कि अधिकतर आमजन यातायात नियमों का पालन नहीं करना चाहते और सरकारें पालन करवाने में असहाय हैं या फिर बिल्कुल बेपरवाह हैं। यूं तो बहुत सारे नियम और योजनाएं हैं, जो कागज से सड़क पर उतर ही नहीं पाई हैं, लेकिन इस बीच एक महत्वपूर्ण योजना की चर्चा की जा सकती है, जिसके अमल से न सिर्फ यात्रा के दौरान महिलाओं की सुरक्षा सुनिश्चित होती, बल्कि विशेषज्ञ मानते हैं कि इससे गलत लेन ड्राइविंग, ओवरस्पीड, सिग्नल जंप से लेकर मोटर ट्रांसपोर्ट वर्कर्स एक्ट के प्रविधान के अनुरूप चालकों के एक दिन में अधिकतम आठ घंटे ड्यूटी की भी निगरानी की जा सकती है।
पब्लिक ट्रांसपोर्ट में लगाने का था सुझाव
- सड़क परिवहन एवं राजमार्ग मंत्रालय की राष्ट्रीय सड़क सुरक्षा परिषद के सदस्य डॉ. कमल सोई का कहना है कि दिल्ली के निर्भया कांड के बाद महिला सुरक्षा बड़ा मुद्दा था। यात्रा के दौरान महिलाओं की सुरक्षा सुनिश्चित करने के उद्देश्य से परिवहन मंत्रालय में भी निर्भया फंड बनाया गया। विशेषज्ञों ने सुझाव दिया कि व्हीकल लोकेशन ट्रैकिंग डिवाइस सभी पब्लिक ट्रांसपोर्ट में लगा दिए जाएं तो महिला सुरक्षा के साथ ही यातायात नियमों का पालन कराने से लेकर चालकों की निगरानी भी की जा सकती है।
- इस पर मंत्रालय ने 463 करोड़ रुपये बजट निर्धारित करते हुए योजना शुरू कर दी। इसमें केंद्रांश के साथ राज्य सरकारों को भी वित्तीय भागीदारी करनी थी। डॉ. सोई का कहना है कि कुछ राज्यों ने रुचि जरूर दिखाई, लेकिन इसे पूरी तरह अभी तक किसी भी राज्य ने लागू नहीं किया है। वह दावा करते हैं कि कई पश्चिमी देशों में इसी तकनीक से सड़क सुरक्षा को बेहतर बनाया गया है। वह मानते हैं कि यातायात नियमों का पालन कराने में गृह मंत्रालय की भूमिका बढ़ानी चाहिए, क्योंकि उसके पास परिवहन मंत्रालय की तुलना में अधिक मैनपावर है।
- वहीं, मंत्रालय के सूत्रों ने बताया कि 15 जनवरी, 2020 से चल रही इस योजना में तीस राज्यों ने प्रस्ताव जरूर दिए थे, लेकिन फिर उसे लागू करने में रुचि सिर्फ बिहार, हिमाचल प्रदेश और पुदुचेरी ने दिखाई। हालांकि, धरातल में इस पर कहीं भी काम नहीं हो सका है। इसके अलावा चालक को झपकी के कारण होने वाली मौतों के आंकड़े दर्ज करने और चालकों के आठ घंटे ड्यूटी के नियम का पालन कराने से संबंधित अंतरिम याचिका वरिष्ठ अधिवक्त केसी जैन ने भी सुप्रीम कोर्ट में लगाई है।
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