ड्राइवर की झपकी ले रही लाखों जान, आखिर बढ़ते सड़क हादसों का जिम्मेदान कौन?
Road Accidents India सड़क दुर्घटनाओं का एक मुख्य कारण चालकों की थकान है जो बिना आराम किए अत्यधिक काम करने और वाहन चलाते समय झपकी आने के कारण होती है। मोटर ट्रांसपोर्ट वर्कर्स एक्ट में प्रावधान है कि चालक एक दिन में आठ घंटे और सप्ताह में अधिकतम 45 घंटे से अधिक वाहन नहीं चला सकता लेकिन इस कानून का पालन नहीं हो रहा है।
जेएनएन, नई दिल्ली। लगभग प्रत्येक दिन ऐसे सड़क हादसे के बारे में सुनने को मिल ही जाता है कि ड्राइवर को झपकी आने से हादसा हुआ और इतने यात्रियों की मौत हो गई। सिर्फ बस और ट्रक ही नहीं, बल्कि कैब चालकों की भी ऐसी लापरवाही सामने आ रही है।
मगर, विडंबना है कि केंद्रीय सड़क परिवहन एवं राजमार्ग मंत्रालय के पास भी इसके पुष्ट आंकड़े नहीं हैं कि ड्राइवर को नींद आने की वजह से कितने एक्सीडेंट हर साल होते हैं।
8 घंटे की ड्यूटी का नियम सिर्फ कागजों पर
दरअसल, केंद्र सरकार हो राज्य सरकारें, सभी जगह जिम्मेदार गहरी नींद में हैं। उन्हें न तो इससे संबंधित आंकड़े जुटाने की सुध है और न ही एक दिन में अधिकतम आठ घंटे ड्यूटी का नियम पालन कराने को लेकर गंभीरता। ट्रक, बस और कैब जैसे व्यावसायिक वाहन तो खतरा बनकर सड़कों पर दौड़ ही रहे हैं, साथ ही राज्यों के परिवहन निगम भी बेखौफ होकर नियमों को रौंदे जा रहे हैं और सड़कों पर यात्रियों का लहू बहा रहे हैं।
सड़क हादसों की वजह
केंद्रीय सड़क परिवहन एवं राजमार्ग मंत्री नितिन गडकरी इस पर अक्सर चिंता जताते हैं कि देश में सड़क हादसे तमाम प्रयासों के बावजूद बढ़ते जा रहे हैं। सरकार अपने प्रयासों को लेकर तमाम दावे करती है, लेकिन धरातल पर कुछ भी दिखाई नहीं देता। सड़क हादसों का एक प्रमुख कारण है ड्राइवरों की थकान, बिना आराम अत्यधिक काम और उसके कारण से वाहन चलाते समय आने वाली झपकी।
क्या है नियम?
मगर, इस समस्या का समाधान कभी हो पाएगा, इसकी उम्मीद बहुत कम नजर आती है, क्योंकि नियमों का पालन विभिन्न कारणों से न तो ड्राइवर करना चाहते हैं और पालन कराने को लेकर सरकारों की भी इच्छाशक्ति या इरादा नहीं है। दरअसल, मोटर ट्रांसपोर्ट वर्कर्स एक्ट में प्रविधान है कि वाहन चालक एक दिन में आठ घंटे और सप्ताह में अधिकतम 45 घंटे से अधिक वाहन नहीं चला सकता, लेकिन इस कानून का पालन किसी राज्य में नहीं किया जा रहा।
यूपी में 220 KM बस चलवाने का नियम
निजी व्यावसायिक वाहनों से पहले सरकारी महकमे का ही रुख उदाहरण के तौर पर देख सकते हैं। उत्तर प्रदेश राज्य सड़क परिवहन निगम ने घंटे की बजाए इस नियम को किलोमीटर में परिवर्तित कर दिया है। नियम है कि एक चालक से एक दिन में लगभग 220 किलोमीटर बस ही चलवाई जाए। मगर, नियमित कर्मचारियों की कमी है और संविदा चालकों का वेतन किलोमीटर के हिसाब से तय होता है, इसलिए वह अधिक पैसा कमाने की चाहत में अधिक बस चलाना चाहते हैं।
प्राइवेट गाड़ियों से होते हैं अधिक हादसे
परिवहन निगम के ही एक अधिकारी ने स्वीकारा कि 220 किलोमीटर प्रतिदिन का नियम सिर्फ कागजों में है। इसी तरह व्यावसायिक वाहनों का हाल है। केंद्र सरकार के भारतीय सड़क सुरक्षा परिषद के सदस्य व सड़क सुरक्षा विशेषज्ञ डा. कमल सोई के मुताबिक, देश में 40-45 प्रतिशत सड़क हादसे व्यावसायिक वाहनों के कारण होते हैं, क्योंकि इन वाहनों को चलाने वाले ड्राइवर पेशेवर नहीं हैं। वह प्रशिक्षित भी नहीं हैं। इसके अलावा इन चालकों को वेतन इतना कम मिलता है कि वह लगातार गाड़ी चलाकर अधिक पैसा कमाना चाहते हैं। उन्हें न अपनी जान की चिंता और न ही अन्य यात्रियों की।
27% हिंट एंट रन केस
डा. सोई का दावा है कि लाजिस्टिक सेक्टर 85 प्रतिशत अनियोजित है, इसलिए अंदाजा लगा सकते हैं कि कैसे बेलगाम वाहन खतरा बनकर दौड़ रहे हैं। उन्होंने बताया कि करीब 27 प्रतिशत मामले हिट एंड रन के होते हैं। इसे रोकने के लिए सरकार सिर्फ यही कानून लाई थी कि घायल यात्री की मदद हो जाए तो ट्रांसपोर्टरों ने ही विरोध कर दिया और मामला जस का तस रह गया। हाल ही में सुप्रीम कोर्ट ने भी सरकार से मोटर ट्रांसपोर्ट वर्कर्स एक्ट के इस प्रविधान का पालन कराने के तरीके के बारे में पूछा है।
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