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    New Motor Vehicle Act: कागजों से सड़क पर नहीं पहुंच पाया संशोधित मोटर वाहन कानून, सिर्फ बदला संदेश

    By Jagran NewsEdited By: Sonu Gupta
    Updated: Thu, 20 Oct 2022 10:55 PM (IST)

    पिछले दिनों ही एनएचएआइ ने कहा है कि बिना पूरी पड़ताल के एनओसी जारी किया तो अधिकारी जिम्मेदार होंगे। सच्चाई यह है कि 2019 क संशोधित मोटर वाहन अधिनियम में भी ऐसे प्रविधान थे लेकिन सड़कों की खामी के कारण दुर्घटनाओं के लिए कभी किसी अधिकारी पर गाज नहीं गिरी।

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    हाईवे और एक्सप्रेसवे पर लगातार हो रहीं भीषण दुर्घटनाएं दे रहीं गवाही। (फाइल फोटो)

    जितेंद्र शर्मा, नई दिल्ली। मुंबई-अहमदाबाद हाईवे पर पिछले माह टाटा समूह के पूर्व अध्यक्ष साइरस पी. मिस्त्री और एक अन्य कार सवार की मौत हो गई। दो अक्टूबर को उत्तर प्रदेश में ट्राली और ट्रक की टक्कर हुई और कई लोगों की जान चली गई। 14 अक्टूबर को उत्तर प्रदेश के पूर्वांचल एक्सप्रेसवे पर लग्जरी कार सामने से आ रहे कंटेनर से टकरा गई, जिसमें चार व्यक्तियों की जान चली गई। ये कुछ ऐसी दुर्घटनाएं हैं जो चर्चा में आईं, वरना तो देश की सड़कों पर हर चार मिनट पर हादसे हो रहे हैं। हमेशा की तरह इन हादसों का भी 'पोस्टमार्टम' हुआ और रिपोर्ट में 'अनियंत्रित वाहन' लिखकर फाइल बंद कर दी गई।

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    वाहन की रफ्तार ही दुर्घटना का कारण

    यह सच है कि बड़ी संख्या में वाहन की रफ्तार ही दुर्घटनाओं का कारण होती हैं। यानी सुरक्षित रहना है तो खुद को नियंत्रित करना सीखना होगा। लेकिन यह सवाल भी खड़ा होने लगा है कि 2019 के संशोधित मोटर वाहन अधिनियम के जरिये सुरक्षित सड़क की जो मंशा जताई गई थी उसका क्रियान्वयन क्यों नहीं हो पा रहा है। यह मुख्य रूप से राज्यों की जिम्मेदारी है लेकिन जिस तरह सड़कों की डिजाइन से लेकर सुरक्षा मानकों में कोताही होती है उसके लिए राष्ट्रीय राजमार्ग प्राधिकरण भी कम जिम्मेदार नहीं है।

    सड़क दुर्घटना के अधिकारियों पर नहीं गिरी गाज

    पिछले दिनों ही राष्ट्रीय राजमार्ग प्राधिकरण (एनएचएआइ) ने कहा है कि बिना पूरी पड़ताल के एनओसी जारी किया तो अधिकारी जिम्मेदार होंगे। सच्चाई यह है कि 2019 के संशोधित मोटर वाहन अधिनियम में भी ऐसे प्रविधान थे, लेकिन सड़कों की खामी के कारण दुर्घटनाओं के लिए कभी किसी अधिकारी पर गाज नहीं गिरी। ठीकरा हमेशा ड्राइवरों के सिर फूटा, जबकि बार-बार यह बात सामने आ रही है कि डाइवर्जन की स्थिति में भी सड़कों पर पूर्व और पर्याप्त चेतावनी नहीं होती।

    इंटरनेशनल रोड फेडरेशन के अध्यक्ष ने लिखि पत्र

    फर्राटे वाली सड़कों पर सही आकार में साइनेज नहीं होते। कई दुर्घटनाएं इसलिए होती हैं क्योंकि तेज गति में वाहन चालकों को एकाएक रुकने या मुड़ने के लिए मजबूर होना पड़ता है। एनएचएआइ के पास ऐसी कोई सूची नहीं है कि कितने अधिकारी इन मामलों में दोषी पाए गए हैं। दूसरा पहलू देखिए, इंटरनेशनल रोड फेडरेशन के अध्यक्ष केके कपिला ने छह-सात महीने पहले केंद्र सरकार के आधा दर्जन संबंधित सचिवों को पत्र लिखकर सुधार की जरूरत बताई।

    रोड सेफ्टी एक्शन प्लान तैयार करने पर जोर

    उनसे आग्रह किया कि रोड डिजाइनिंग और जागरूकता, सड़क नियमों के पालन, आपातकालीन स्वास्थ्य सुविधाओं आदि के लिए रोड सेफ्टी एक्शन प्लान तैयार करना चाहिए। अंतरराष्ट्रीय स्तर पर वेबिनार के बाद कुछ बिंदु सुझाए भी गए, लेकिन अब तक किसी की ओर से कोई प्रतिक्रिया नहीं आई है। कपिला को आशा है कि जल्द प्रतिक्रिया आएगी और चीजें आगे बढ़ेंगी। लेकिन यह तो स्पष्ट है कि सुस्ती हर स्तर पर है। नींद तभी टूटती है जब कोई बड़ी घटना हो।

    राज्यों को जनाधार खिसकने का डर

    सड़क सुरक्षा का असली मानक है- क्रियान्वयन। जब संशोधित मोटर वाहन अधिनियम आया था तो अधिकतर राज्यों ने हाथ खड़े कर दिए थे। इसमें कई भाजपा शासित राज्य भी थे क्योंकि नियम उल्लंघन करने वालों पर भारी जुर्माने का प्रविधान था। डर था कि जनता का समर्थन खत्म न हो जाए। राजनीति के आगे सुरक्षा नजरअंदाज हो गई। धीरे-धीरे राज्यों ने उसे थोड़ा-बहुत लागू तो किया, लेकिन लगातार होती दुर्घटनाएं सुबूत हैं कि क्रियान्यवन कहीं नहीं हो रहा है। वरना हाईवे और एक्सप्रेसवे पर ट्राली-टैक्टर नहीं होते।

    उपयोग करने वालों को होना पड़ेगा जागरूक

    तेज भागती कारें बार-बार सामने दिखने वाले कैमरे से थमतीं। किसी भी डाइवर्जन से पहले सुरक्षा गार्ड मौजूद होते और इंजीनियर ब्लैक स्पाट का हल निकालने में जुटते। ब्लैक स्पाट यानी जहां बार-बार दुर्घटनाएं हो रही हैं, उनकी संख्या कम होती। कपिला कहते हैं, 'कोई भी सड़क हर मानक पर सौ प्रतिशत दुरुस्त नहीं हो सकती। सड़क डिजाइनिंग में कुछ खामी हो सकती है, लेकिन लगातार सुधारा भी जाता है। उपयोग करने वालों को भी जागरूक होना पड़ेगा।'

    कमी आने के बाद 2021 में फिर बढ़ी दुर्घटनाएं

    भारत में विश्व के एक प्रतिशत वाहन हैं, लेकिन दुर्घटनाएं 10 प्रतिशत से ज्यादा होती हैं। वर्ष 2017 में भारत ने सड़क दुर्घटनाओं में मृत्यु 50 प्रतिशत तक कम करने की प्रतिबद्धता जताई थी, लेकिन यह कानून बनाने भर से नहीं हो सकता। संशोधित मोटर वाहन अधिनियम आने के बाद दुर्घटनाएं कुछ कम हुई थीं, लेकिन 2021 में संख्या फिर बढ़ गई और पिछले साल डेढ़ लाख से ज्यादा लोगों की सड़क दुर्घटनाओं में मौत हुई।

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