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    सेवानिवृत्त जिला जजों को मिल रही है मात्र 19-20 हजार रुपये पेंशन! सु्प्रीम कोर्ट ने पूछा- कैसे करते हैं गुजारा?

    By Agency Edited By: Nidhi Avinash
    Updated: Mon, 26 Feb 2024 10:40 PM (IST)

    सेवानिवृत्त जिला न्यायिक अधिकारियों ( Retired District Judges ) को कम पेंशन मिलने पर सुप्रीम कोर्ट ने चिंता जताई है। प्रधान न्यायाधीश डीवाई चंद्रचूड़ न्यायमूर्ति जेबी पार्डीवाला और न्यायमूर्ति मनोज मिश्रा की पीठ ने इस मामले में अटार्नी जनरल आर. वेंकटरमणी की सहायता मांगी। इससे पहले सुप्रीम कोर्ट ( Supreme Court ) को बताया गया कि सेवानिवृत्त जिला न्यायिक अधिकारियों को 19000 से 20000 रुपये की पेंशन मिल रही है।

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    सेवानिवृत्त जिला न्यायिक अधिकारियों को मिल रही कम पेंशन (Image:ANI)

    पीटीआई, नई दिल्ली। सुप्रीम कोर्ट ने सेवानिवृत्त जिला न्यायिक अधिकारियों को कम पेंशन मिलने पर चिंता जताई है। उसने केंद्र से इस मुद्दे का न्यायसंगत समाधान तलाशने को कहा। प्रधान न्यायाधीश डीवाई चंद्रचूड़, न्यायमूर्ति जेबी पार्डीवाला और न्यायमूर्ति मनोज मिश्रा की पीठ ने इस मामले में अटार्नी जनरल आर. वेंकटरमणी की सहायता मांगी।

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    इससे पहले, सुप्रीम कोर्ट को बताया गया कि सेवानिवृत्त जिला न्यायिक अधिकारियों को 19,000 से 20,000 रुपये की पेंशन मिल रही है।पीठ ने कहा कि सेवानिवृत्त न्यायाधीशों को लंबी सेवा के बाद 19,000 से 20,000 रुपये की पेंशन मिल रही है, उनका गुजारा कैसे होगा। यह ऐसा पद है जहां आप कुछ कर पाने की स्थिति में नहीं हैं।

    आप अचानक वकालत के पेशे में नहीं जा सकते

    आप अचानक वकालत के पेशे में नहीं जा सकते और 61-62 साल की उम्र में हाई कोर्ट जाकर वकालत नहीं शुरू कर सकते हैं। न्याय मित्र नियुक्त किये गए वकील के. परमेश्वर ने सुनवाई के दौरान कहा कि न्यायाधीशों की न्यायिक स्वतंत्रता सुनिश्चित करने के लिए पर्याप्त पेंशन आवश्यक है।

    देशभर में न्यायिक अधिकारियों की सेवा शर्तों में एकरूपता बनाए रखने की आवश्यकता को स्वीकार करते हुए सुप्रीम कोर्ट ने इससे पहले न्यायिक अधिकारियों के लिए दूसरे राष्ट्रीय न्यायिक वेतन आयोग के अनुरूप वेतन, पेंशन और अन्य सेवानिवृत्ति लाभों से जड़े आदेशों के क्रियान्वयन की निगरानी के लिए दो न्यायाधीशों की एक समिति गठित करने का निर्देश दिया था।

    वित्तीय गरिमा की भावना के साथ अपना जीवन-यापन कर सकते हों

    सुप्रीम कोर्ट ने कहा था कि कानून के शासन में आम लोगों के विश्वास को बनाए रखने के लिए आवश्यक न्यायिक स्वतंत्रता को तभी सुनिश्चित किया जा सकता है, जब न्यायाधीश वित्तीय गरिमा की भावना के साथ अपना जीवन-यापन कर सकते हों।

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