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    मिडिल क्लास के लिए RBI ने सुना दी गुड न्यूज, ऑटो और होम लोन होगा सस्ता, EMI भी होगी कम

    Updated: Wed, 09 Apr 2025 07:51 PM (IST)

    आरबीआइ गवर्नर संजय मल्होत्रा की अध्यक्षता में हुई मौद्रिक नीति समिति की समीक्षा बैठक में इस साल लगातार दूसरी बार रेपो रेट (बैंकों के ब्याज दरों को तय करने वाला मानक दर) में 25 आधार अंकों (0.25 प्रतिशत) की कटौती करने का फैसला किया गया। संजय मल्होत्रा ने मौद्रिक नीतियों को लेकर आरबीआइ के रुख को अर्थव्यवस्था के लिए उदारवादी बनाने की बात कही है।

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    ऑटो और होम लोन होगा सस्ता, EMI भी होगी कम: आरबीआई।(फोटो सोर्स: फाइल फोटो)

    जयप्रकाश रंजन, नई दिल्ली। ट्रंप प्रशासन की टैरिफ नीति से वैश्विक आर्थिकी में जिस तरह की अफरा-तफरी फैली है, उसे देखते हुए आरबीआई भारत की अर्थव्यवस्था की रफ्तार को तेज बनाए रखने के लिए ज्यादा सक्रिय भूमिका निभाएगा।

    यही वजह है कि बुधवार को आरबीआइ गवर्नर संजय मल्होत्रा की अध्यक्षता में हुई मौद्रिक नीति समिति की समीक्षा बैठक में इस साल लगातार दूसरी बार रेपो रेट (बैंकों के ब्याज दरों को तय करने वाला मानक दर) में 25 आधार अंकों (0.25 प्रतिशत) की कटौती करने का फैसला किया गया।

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    सस्ते हो सकते हैं ऑटो और होम लोन 

    फरवरी, 2025 में भी इतनी ही कटौती की गई थी। इस तरह से इस साल रेपो रेट 6.50 प्रतिशत से घटकर अब छह प्रतिशत पर आ चुकी है। इससे आने वाले दिनों में ऑटो और होम लोन सस्ते हो सकते हैं। वहीं, आपकी ईएमआइ भी घटेगी। इससे आम जनता को मासिक किस्त में राहत मिलने की उम्मीद बढ़ गई है।

    संजय मल्होत्रा ने मौद्रिक नीतियों को लेकर आरबीआइ के रुख को अर्थव्यवस्था के लिए उदारवादी बनाने की बात कही है। यानी आर्थिक विकास को बढ़ावा देने के लिए आगे भी ब्याज दरों में कटौती की संभावना है। अभी तक आरबाआइ का रुख तटस्थ था।

    मैं संजय हूं, महाभारत का संजय नहीं: संजय मल्होत्रा

    मल्होत्रा से जब आरबीआऊ के नए रुख के बारे में पूछा गया तो उनका जवाब था कि केंद्रीय बैंक आने वाली समीक्षा नीतियों के जरिये या तो ब्याज दरों को इसी स्तर पर रखेगा या फिर इनमें कटौती करेगा। आगे नीतियों की दिशा ब्याज दरों को लेकर नीचे की तरफ (घटाने की तरफ संकेत) रहेगा। यह कहां जाकर रुकेगा, अभी नहीं कहा जा सकता। मैं संजय हूं, महाभारत का संजय नहीं हूं जो बहुत दूर की देख सके।

    आरबीआई के इस बदले रुख के बारे में विशेषज्ञ अमेरिका की नई शुल्क नीति की वजह से वैश्विक स्तर पर छाई अनिश्चितता को मान रहे हैं। आरबीआइ अभी भारत की विकास दर की रफ्तार को बनाए रखना जरूरी मान रहा है। मल्होत्रा भी मान रहे हैं कि मौजूदा माहौल में विकास दर के मोर्चे पर वैश्विक कारोबार घटने और नीतिगत अनिश्चितता से कई चुनौतियां पैदा हो सकती हैं।

    लिहाजा उन्होंने वर्ष 2025-26 के लिए भारत के आर्थिक विकास दर लक्ष्य को पहले से घोषित 6.7 प्रतिशत से घटाकर 6.5 प्रतिशत कर दिया है। रिजर्व बैंक ने चालू वित्त वर्ष के लिए महंगाई के अनुमान को 4.2 प्रतिशत से घटाकर चार प्रतिशत कर दिया है।

    इसमें अच्छी कृषि और कच्चे तेल की कीमतों में गिरावट को ध्यान में रखा गया है। हालांकि, जिस तरह से हालात बन रहे हैं, उससे आरबीआइ ने सचेत व चौकस रहने की बात भी कही है।रेपो रेट में लगातार दो बार कटौती और एसडीएफ (स्टैंडिंग डिपोजिट फैसिलिटी-वह दर जिस पर आरबीआइ बैंकों की तरफ से अतिरिक्त फंड जमा करने पर ब्याज देता है) को घटाकर आरबीआइ ने 5.75 प्रतिशत कर दिया है।

    इन दोनों फैसलों से बैंक अपने फंड का इस्तेमाल कर्ज वितरण में करने के लिए लगाएंगे। फरवरी, 2025 में जब तकरीबन पांच वर्षों में रेपो रेट घटाकर 6.25 प्रतिशत किया गया था, उसका अभी तक असर खुदरा कर्ज की दरों पर नहीं दिखा है। एचडीएफसी बैंक की रिपोर्ट के मुताबिक भारत के बैंकिंग सिस्टम में अभी 1.33 लाख करोड़ रुपये का अतिरिक्त फंड है, जिसे कर्ज के तौर पर वितरित किया जा सकता है।

    बैंक ऑफ इंडिया और यूको बैंक ने आरबीआइ द्वारा नीतिगत दर में कटौती के निर्णय के कुछ ही घंटों के भीतर ऋण दर में 25 आधार अंकों की कटौती की घोषणा की है। अन्य बैंकों द्वारा भी जल्द ही इसी तरह की घोषणा किए जाने की उम्मीद है। दोनों बैंकों ने कहा कि आरबीआइ द्वारा रेपो रेट में कटौती के बाद दरों में संशोधन किया गया है।

    रेपो रेट का इस तरह पड़ता है असर

    रेपो रेट वह ब्याज दर होती है, जिस पर देश का केंद्रीय बैंक यानी आरबीआइ वाणिज्यिक बैंकों को अल्पकालिक कर्ज देता है। जब आरबीआइ इस ब्याज दर में कटौती करता है, तो बैंकों को सस्ता कर्ज मिलता है। इसके बाद बैंक भी सस्ते ब्याज दर पर लोन देने लगते हैं। आम भाषा में कहें तो रेपो रेट कम होने पर होम लोन, कार लोन, कमर्शियल लोन या पर्सनल लोन की ईएमआइ में राहत मिल सकती है।

    इसका सीधा-सीधा असर मध्य वर्ग परिवारों की जेब पर पड़ता है। आरबीआइ रेपो रेट में बदलाव करके नकदी के प्रवाह पर नियंत्रण करने की कोशिश करता है। यह फैसला महंगाई और अन्य कई चीजों को ध्यान में रखकर लिया जाता है।

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