Trending

    Move to Jagran APP
    pixelcheck
    विज्ञापन हटाएं सिर्फ खबर पढ़ें

    'ऐसी पढ़ाई भी क्या काम की, जिससे परिवार ही टूट जाए?', लिव-इन रिलेशनशिप पर बोले हाईकोर्ट के जस्टिस मनोज गर्ग

    Updated: Mon, 21 Jul 2025 06:34 PM (IST)

    जोधपुर हाईकोर्ट के न्यायाधीश मनोज कुमार गर्ग ने लिव-इन रिलेशनशिप पर चिंता व्यक्त करते हुए कहा कि यह भारतीय पारिवारिक व्यवस्था के लिए गंभीर विषय है। अजमेर में एक कार्यक्रम में उन्होंने कहा कि जोधपुर बेंच में प्रतिदिन 15 मामले लिव-इन से जुड़े आते हैं जिसमें युवा परिजनो से सुरक्षा मांगते है। उन्होंने उच्च शिक्षा और शहरी जीवन को इसका कारण बताया जिससे पारिवारिक ताना-बाना कमजोर हो रहा है।

    Hero Image
    अजमेर में कार्यक्रम में शामिल होने पहुंच जस्टिस मनोज गर्ग।

    जेएनएन, अजमेर। राजस्थान हाईकोर्ट जोधपुर के न्यायाधीश मनोज कुमार गर्ग ने लिव-इन रिलेशनशिप जैसे सामाजिक मुद्दे पर खुलकर चिंता जताई है। उन्होंने कहा कि बिना विवाह के युवक-युवतियों का साथ रहना भारतीय पारिवारिक व्यवस्था के लिए गहन चिंता का विषय बनता जा रहा है।

    विज्ञापन हटाएं सिर्फ खबर पढ़ें

    न्यायाधीश गर्ग ने यह विचार अजमेर प्रवास के दौरान अग्रवाल समाज की ओर से आयोजित अभिनंदन समारोह में व्यक्त किए। उन्होंने मंच से स्पष्ट कहा कि हर दिन जोधपुर बेंच में लगभग 15 मामले ऐसे आते हैं, जिनमें युवक-युवती बिना विवाह साथ रहने की जानकारी देते हुए अपने ही परिजनों से सुरक्षा की गुहार लगाते हैं।

    'पारिवारिक ताने-बाने को कर रहा कमजोर'

    गौरतलब है कि राजस्थान में हाईकोर्ट की दो बेंच- जयपुर और जोधपुर हैं। अगर सिर्फ जोधपुर में प्रतिदिन इतने मामले आ रहे हैं, तो पूरे देश की स्थिति सहज ही अनुमानित की जा सकती है।

    न्यायमूर्ति गर्ग ने कहा, “यह सोचने का विषय है कि आखिर आज का युवा वर्ग विवाह के पवित्र बंधन से पहले ही साथ क्यों रहना चाहता है? यह हमारे पारिवारिक ताने-बाने को कमजोर कर रहा है।”

    'उच्च शिक्षा और शहरी जीवन की वजह से हो रहा ऐसा'

    उन्होंने इस प्रवृत्ति का एक बड़ा कारण उच्च शिक्षा और शहरी जीवन की दौड़ को माना। अक्सर माता-पिता अपने बच्चों को बेहतर शिक्षा और करियर के लिए बड़े शहरों में भेजते हैं। दसवीं-बारहवीं के बाद ही बच्चे घर से दूर हो जाते हैं, और वहीं से स्वतंत्र जीवन और संबंधों की नई अवधारणाएं जन्म लेने लगती हैं।

    न्यायाधीश गर्ग ने कहा, “पढ़ाई जरूरी है, लेकिन ऐसी पढ़ाई किस काम की जिससे बच्चे परिवार की मर्यादा, रिश्तों की गरिमा और सामाजिक मूल्यों को ही भूल जाएं?” उन्होंने यह भी जोड़ा कि अब लड़कियों की शादी 28-30 की उम्र में हो रही है और वही हाल लड़कों का भी है। देर से विवाह होने पर वैवाहिक जीवन में सामंजस्य बिठा पाना भी कठिन हो जाता है।

    आज की वास्तविकता यह है कि माता-पिता की सबसे बड़ी चिंता बच्चों के वैवाहिक जीवन में आ रहे तनाव और टूटते रिश्ते हैं। और जब युवक-युवतियां लिव-इन रिलेशन जैसे विकल्पों के लिए अदालत का सहारा लेने लगें, तो यह पारंपरिक भारतीय समाज के लिए गहरे आत्ममंथन का विषय है।

    ये भी पढ़ें: 'बनके कृष्ण किसी को आना होगा... बिगड़ते रिश्तों को बचाना होगा', मिल्कियत-ए-जंग कविता सुनाकर जज ने दिया फैसला

    comedy show banner
    comedy show banner