पंचेश्वर बांध के अस्तित्व में आने पर सवाल
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की नेपाल यात्रा के बाद एक बार फिर 6840 मेगावट क्षमता की पंचेश्वर बांध परियोजना चर्चा में है। मोदी ने रविवार को नेपाली संसद में अपने संबोधन में इसका जिक्र किया था। यदि पंचेश्वर बांध बना तो देश को बिजली मिलेगी, जबकि उत्तराखंड, उत्तर प्रदेश, हरियाणा सहित नेपाल के दो अंचलों के खेतों को भी पानी मिलेगा।
पिथौरागढ़। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की नेपाल यात्रा के बाद एक बार फिर 6840 मेगावट क्षमता की पंचेश्वर बांध परियोजना चर्चा में है। मोदी ने रविवार को नेपाली संसद में अपने संबोधन में इसका जिक्र किया था। यदि पंचेश्वर बांध बना तो देश को बिजली मिलेगी, जबकि उत्तराखंड, उत्तर प्रदेश, हरियाणा सहित नेपाल के दो अंचलों के खेतों को भी पानी मिलेगा।
भारत-नेपाल सीमा पर बहने वाली महाकाली नदी पर बहुप्रतीक्षित बांध की स्वीकृति के बाद एक बार फिर तमाम आशाएं जगने लगी हैं। पंचेश्वर बांध की स्वीकृति वित्तीय वर्ष 1970-71 में मिली थी। स्वीकृति के बाद बांध निर्माण शुरू होता तो यह वर्ष 1990 तक आस्तित्व में आ जाता। जब भी दोनों देशों के नेता एक-दूसरे की भूमि पर पहुंचे तो पंचेश्वर का मुद्दा उठा। जब कभी बांध शुरू होने की पहल हुई तो नेपाल सरकार की शर्ते निर्माण में आड़े आ गई। पिछले वर्षो में नेपाल में माओवाद के कारण पंचेश्वर का मुद्दा ठंडे बस्ते में चला गया था। पंचेश्वर बांध निर्माण से प्रभावित होने वाले दोनों देशों के 214 गांवों का विस्थापन सबसे बड़ी समस्या है। विस्थापन को लेकर ही सबसे अधिक भ्रम बना रहता है। विस्थापन को लेकर नेपाल का रवैया साफ नहीं रहा है। हालांकि बांध से होने वाले विस्थापन में भारत के 114 गांव और नेपाल के 100 गांव शामिल हैं। भारत में तहसील पिथौरागढ़, डीडीहाट, धारचूला के गांव डूब क्षेत्र में आएंगे। इसके अलावा लगभग दो दर्जन गांव तहसील गंगोलीहाट के भी रहेंगे। 235 वर्ग किलोमीटर क्षेत्रफल में बनने वाले इस बांध से भारत-नेपाल सीमा पर बसे कई कस्बे, बाजार भी नक्शे से गायब होंगे। जिस महाकाली नदी में बांध बनने जा रहा है, उसकी सहायक नदियों के किनारे स्थित गांव डूब क्षेत्र में आ रहे हैं। पंचेश्वर में महाकाली नदी में सरयू नदी मिलती है। इस स्थान से मात्र 26 किमी दूर रामेश्वर घाट नामक स्थान पर सरयू और रामगंगा नदी का संगम है।
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