अभी नहीं घटेंगे पेट्रोल-डीजल के दाम, ये है असली वजह
क्रूड के महंगा होने से सबसे ज्यादा असर देश में चालू खाते (आयात व निर्यात का अंतर) में घाटे पर पड़ने की आशंका जताई जाने लगी है।
जागरण ब्यूरो, नई दिल्ली। घरेलू बाजार में पेट्रोल और डीजल की खुदरा कीमतें फिर से आसमान पर पहुंच गई है, लेकिन इससे भी ज्यादा चिंताजनक बात यह है कि आने वाले दिनों में इसकी रफ्तार यूं ही बनी रह सकती है। क्योंकि एक तरफ जहां तमाम जानकार रूपये के कमजोर होने के कयास लगा रहे हैं वही प्रमुख तेल उत्पादक देशों (वेनेजुएला और इरान) में कच्चे तेल का उत्पादन और घट सकता है।
सरकारी तेल कंपनियों की तरफ से दी गई जानकारी के मुताबिक मंगलवार को दिल्ली में पेट्रोल 79.31 रुपये प्रति लीटर के रिकार्ड स्तर और डीजल 71.34 रुपये प्रति लीटर के रिकार्ड स्तर पर पहुंच गया है। अगर पिछले एक पखवाड़े का हिसाब देखें तो पेट्रोल और डीजल के दाम में दो-दो रुपये से ज्यादा की बढ़ोतरी हुई है। देश के दूसरे सभी मेट्रो शहरों में उक्त दोनो उत्पादों की कीमतें दिल्ली से ज्यादा है।
राज्यों की तरफ से लगाये जाने वाले कर की वजह से पेट्रोल व डीजल की कीमत देश के अलग-अलग हिस्सों में अलग-अलग है। सरकार की तरफ से इन्हें वैट के तहत लाने की बात की गई थी, लेकिन कई राज्यों के विरोध की वजह से ऐसा नहीं हो पा रहा है। इन दोनों उत्पादों से राज्य काफी शुल्क वसूलते हैं। केंद्र की ओर से भी शुल्क में कोई रियायत देने का संकेत नहीं है।
निश्चित तौर पर पेट्रोल व डीजल की इस महंगाई के लिए अंतरराष्ट्रीय बाजार में क्रूड की कीमतें हैं, लेकिन रुपये की कीमत में आ रही गिरावट का भी इस पर असर होता है। इसी एक पखवाड़े में रुपया भी 85 पैसे कमजोर हुआ है। 16 अगस्त, 2018 के बाद से 3 सितंबर, 2018 के बीच क्रूड की कीमतों में 7 डॉलर प्रति बैरल की वृद्धि हो चुकी है। इसके लिए ईरान और वेनेजुएला को लेकर जारी अस्थिरता है।
ईरान के हर तरह के कारोबार पर प्रतिबंध लगाने को अमेरिका आमादा है जबकि आंतरिक अस्थिरता की वजह से वेनेजुएला का तेल उत्पादन घट कर एक तिहाई रह गया है। तेल आपूर्ति घटने की आशंका से कीमतों में इजाफा हो रहा है। साथ ही अमेरिका और चीन के बीच जारी प्रतिस्पर्धा भी एक अन्य वजह है जिसके बारे में जानकारों का कहना है कि यह वैश्विक अर्थव्यवस्था पर दुष्प्रभाव डालेगा। इस आशंका से भी क्रूड महंगा हो रहा है।
क्रूड के महंगा होने से सबसे ज्यादा असर देश में चालू खाते (आयात व निर्यात का अंतर) में घाटे पर पड़ने की आशंका जताई जाने लगी है। भारत अपनी जरुरत का 80 फीसद से ज्यादा क्रूड आयात करता है। इस वजह से उसे काफी मात्रा में विदेशी मुद्रा इस मद में खर्च करना पड़ता है। जब क्रूड महंगा होता है तो यह खर्च बढ़ृ जाता है। साथ ही जब डॉलर के सापेक्ष रूपया कमजोर होता है तब भी भारत पर ज्यादा दबाव पड़ता है। अभी क्रूड भी महंगा हो रहा है और रुपया भी कमजोर हो रहा है।