राष्ट्रपति ने केरल लोकायुक्त विधेयक को दी मंजूरी, Kerala विश्वविद्यालय कानून विधेयक को लेकर राजभवन ने क्या कहा?
राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मु ने राज्य विधानसभा द्वारा पारित केरल लोकायुक्त विधेयक को मंजूरी दे दी है। उन्होंने तीन विश्वविद्यालय कानून विधेयकों पर अपनी स ...और पढ़ें

पीटीआई, तिरुअनंतपुरम। राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मु ने राज्य विधानसभा द्वारा पारित केरल लोकायुक्त विधेयक को मंजूरी दे दी है। उन्होंने तीन विश्वविद्यालय कानून विधेयकों पर अपनी स्वीकृति अभी नहीं दी है। राज्यपाल आरिफ मोहम्मद खान ने राष्ट्रपति को ये विधेयक उनकी स्वीकृति के लिए भेजे थे।
इस विधेयक को राष्ट्रपति से नहीं मिली स्वीकृति
राजभवन ने गुरुवार को कहा कि राष्ट्रपति ने केरल विश्वविद्यालय कानून विधेयक 2022 पर अभी अपनी स्वीकृति नहीं दी है। बयान के अनुसार इसके अलावा विश्वविद्यालय कानून संशोधन विधेयक, 2022 और विश्वविद्यालय कानून संशोधन विधेयक, 2021 को भी राष्ट्रपति की मंजूरी नहीं मिली है। बयान में कहा गया है कि राज्यपाल द्वारा राष्ट्रपति को भेजे गए सात विधेयकों में से केवल एक विधेयक केरल लोकायुक्त संशोधन विधेयक 2022 को सहमति दी गई है।
30 अगस्त 2022 को विधानसभा से हुआ था पारित
केरल विधानसभा ने 30 अगस्त 2022 को लोकायुक्त (संशोधन) विधेयक पारित किया था। इस विधेयक के तहत भ्रष्टाचार विरोधी निगरानी संस्था की सिफारिशों और रिपोर्टों को लेकर कार्यपालिका को अपीलीय प्राधिकारी बनाने का प्रविधान किया गया है। खान ने पिछले साल नवंबर में विवादास्पद विश्वविद्यालय संशोधन विधेयक और केरल लोकायुक्त विधेयक सहित सात विधेयकों को राष्ट्रपति की मंजूरी के लिए आरक्षित रखा था। केरल सरकार द्वारा कानून को मंजूरी देने में खान द्वारा अत्यधिक देरी का आरोप लगाते हुए सुप्रीम कोर्ट में याचिका दायर करने के बाद यह कदम उठाया गया था।
राज्य के कानून मंत्री ने क्या कहा?
राजभवन का बयान राज्य के कानून मंत्री पी राजीव की उस टिप्पणी के बाद आया है, जिसमें उन्होंने कहा था कि केरल लोकायुक्त संशोधन विधेयक 2022 को राष्ट्रपति की मंजूरी मिलना यह दर्शाता है कि इस मामले पर राज्यपाल का रुख गलत था।
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राजीव ने कहा कि जब संसद में लोकपाल विधेयक पर चर्चा हो रही थी, तब निर्णय लिया गया था कि राज्यों के पास समान कानून बनाने का अधिकार है और इसलिए, जिस तरह से केरल लोकायुक्त में संशोधन किए गए उसमें कुछ भी गलत नहीं था। उन्होंने कहा कि जब राज्यपाल ने विधेयक के संबंध में स्पष्टीकरण मांगा था, तो यह उन्हें पढ़कर सुनाया गया था और इसलिए उन्हें उसी समय इस पर हस्ताक्षर कर देना चाहिए था।

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