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    यूपी में कौन चखेगा सत्ता का स्वाद, कौन चाटेगा धूल.. बताएंगे ये चुनावी समीकरण

    By Gunateet OjhaEdited By:
    Updated: Wed, 11 Jan 2017 05:14 PM (IST)

    चुनाव में कौन सा दल किसके दम पर जीत के तराने गा रहा है.. सबका एक फौरी ब्योरा आपको इस खबर में मिल जाएगा....

    नई दिल्ली [गुणातीत अोझा]। जनसंख्या के आधार पर भारत के सबसे बड़े राज्य उत्तर प्रदेश में इन दिनों हर पल चुनावी समीकरण बन-बिगड़ रहे हैं। यूपी की सत्ता पर आसीन समाजवादी पार्टी भले ही जीत दोहराने के दावे कर रही हो, लेकिन पार्टी की घरेलू कलह से इस दल की हालत खस्ता है। सपा में छिड़ी रार के बावजूद सीएम अखिलेश की छवि दिन पर दिन चमकती जा रही है।

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    इस बीच यूपी में हांफ रही राहुल गांधी के नेतृत्व वाली कांग्रेस पार्टी की सपा में घुसपैठ बढ़ती जा रही है। इन सबसे अलग भाजपा और बसपा में भी अंदरखाने खेमेबाजी तेज है। मोदी के सुर में भाजपा हर बार की तरह विजय पथ पर सबको पछाड़ने में लगी हुई है।

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    वहीं, बसपा ने अयोध्या से मुस्लिम को उतार कर सालों से चली आ रही परंपरा को तोड़ा है। भाजपा, सपा, बसपा और कांग्रेस के अलावा अन्य छोटे दल भी चुनावी समीकरण बनाने-बिगाड़ने में अहम माने जा रहे हैं। चुनाव में कौन सा दल किसके दम पर जीत के तराने गा रहा है.. सबका एक फौरी ब्योरा आपको इस खबर में मिल जाएगा....

    नोटबंदी जोड़ेगी या तोड़ेगी वोट

    नोटबंदी का असर उत्तर प्रदेश के चुनाव पर पड़ेगा या नहीं? इस सवाल का जबाव लोग एक दूसरे से पूछ रहे हैं। राजनीति में दिलचस्पी रखने वाले लोग इसे गहरी उत्सुकता से समझने की कोशिश में जुटे हैं। एटीएम की लाइनों में लगे लोग अपने-अपने नजरिए से नोटबंदी पर विचार प्रकट कर रहे हैं। अशिक्षित समाज अभी तक समझ नहीं पाया है कि नोटबंदी उनके फायदे के लिए है या फिर उनका होगा। उन्हें इतना ज्ञात है कि सरकार के इस फैसले से समस्या बढ़ी है।

    वहीं शिक्षित समाज केंद्र सरकार के इस फैसले की सराहना तो कर रहा है, लेकिन एटीएम के बाहर अपनी बारी का इंतजार करने की खीज उन्हें भी है। वहीं, विपक्ष भाजपा पर प्रहार किए हुए है.. विपक्ष का कहना है.. ''थोथी दलीलों और परीलोक कथाओं से समस्याएं हल नहीं होतीं। केन्द्र सरकार इसी आधार पर चल रही है।'' नोट बंदी का कदम उठाकर भाजपा उत्तर प्रदेश में विजय की ओर बढ़ रही है या पार्टी ने जानबूझकर अपनी पराजय के मार्ग खोल दिए हैं.. इस पर असमंजस बना हुआ है। इतना साफ है कि चुनावी संग्राम में नोटबंदी कुछ न कुछ असर जरूर छोड़ जाएगी।

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    भाजपा की ओर से मोदी ही एक मात्र चेहरा

    2014 का लोकसभा चुनाव जीतने के बाद भाजपा हर जगह मोदी दाव खेल रही है। यूपी विधानसभा चुनाव में भाजपा की ओर से मोदी ही एक मात्र चेहरा हैं। अभी तक की तैयारियों से यही प्रतीत होता है कि पार्टी को भरोसा है कि सीएम का चेहरा घोषित किए बिना ही उसे जनता का आशीर्वाद मिल जाएगा। प्रधानमंत्री खुद अब तक प्रदेश में कई रैलियां कर चुके हैं। यूपी में विकास को वनवास पर बताते हुए पीएम मोदी जनता से बीजेपी को पूर्ण बहुमत देने की अपील कर चुके हैं। चुनावी हवा का रुख देखें तो भाजपा को यूपी की सत्ता का मजबूत दावेदार भी बताया जा रहा है।

    सपा पर कलह का काल, अखिलेश फिर भी मजबूत

    चुनावी पंडित मान चुके हैं कि सपा में मचा घमासान पार्टी के लिए घातक साबित होगी। इसके इतर अखिलेश की छवि पर कोई आंच नहीं आने वाली है। इस आपसी झगड़े से अखिलेश की चुनावी जमीन और मजबूत हो गई है। लेकिन इससे सब वाकिफ हैं कि अगर पार्टी दो धड़ों में बंटती है तो चुनाव में पार्टी को इसका नुकसान उठाना पड़ता है। चुनाव के तराजू में मापा जाए तो अंदरूनी कलह के बावजूद अखिलेश भारी हैं। लेकिन पार्टी को जीत के लिए इस कलह से उबरना ही होगा। सपा के अंदरूनी कलह का फैसला ही चुनाव में पार्टी की दिशा तय करेगा।


    मायावती दलित और मुस्लिम गठजोड़ पर दे रही बल

    1980 के दशक के बाद संभवत: ऐसा पहली बार हुआ है कि किसी भी राजनैतिक पार्टी ने अयोध्या से मुस्लिम को टिकट दिया है। बसपा ने अयोध्या से बज्मी सिद्दिकी पर दाव खेला है। दार उल उलूम के घर देवबंद से भी बसपा ने 1993 के बाद पहली बार मुस्लिम को उतारा है। यहां से माजिद अली को टिकट दिया गया है। प्रदेश में भाजपा की धमक को देखते हुए यह कहा जा रहा है कि सवर्ण भाजपा के साथ होंगे। ऐसे में मायावती दलित और मुस्लिम गठजोड़ पर बल दे रही हैं।

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    एसपी और कांग्रेस के बीच गठबंधन की चर्चाएं आम होने के बाद मायावती ने मुस्लिमों को चेता दिया है कि ये सब भाजपा के इशारे पर हो रहा है। मायावती ने मुस्लिमों से यहां तक कह दिया है कि प्रदेश में भाजपा को रोकने का काम सिर्फ बीएसपी ही कर सकती है। बता दें कि 2007 में पूर्ण बहुमत से यूपी में आई बसपा के लिए स्थिति करो या मरो की है।

    गठजोड़ के दांव-पेंच लगा सत्ता पाने में लगी कांग्रेस

    उत्तर प्रदेश में अपना पंजा जमाने की ताक में कांग्रेस कोई कसर नहीं छोड़ रही है। चुनाव के दौरान पूरा गेम पलट देने वाले जाने माने चुनाव प्रबंधक प्रशांत किशोर इस वक्त कांग्रेस की नैया पार लगाने में लगे हैं। प्रशांत किशोर ने शीला दीक्षित को सीएम पद का उम्मीदवार घोषित कांग्रेस के लिए शुरुआत तो अच्छी की, लेकिन उन्हें जल्द ही आभास हो गया है कि इससे काम नहीं चलने वाला है। इसके बाद कांग्रेस फिलहाल गठबंधन पर फोकस किए हुए है। कांग्रेस की सपा से नजदीकी बढ़ी है। मुलायम ने तो कांग्रेस से गठबंधन को नकार दिया है लेकिन उनके बेटे अखिलेश यादव ने अभी अपना जवाब नहीं दिया है। गठबंधन हुआ तो यूपी में कांग्रेस के सितारे चमचमा सकते हैं।

    बड़ी भूमिका में छोटे दल

    चुनाव की तारीख जैसे-जैसे नजदीक आ रही है बड़े दल छोटे दल को भाव देने में लग गए हैं। सीटों से लेकर इन दलों का कितने विधानसभा सीटों पर असर है, उसका भी आकलन किया जा रहा है। खासतौर पर अपना दल (कृष्णा पटेल) और सुहेलदेव भारतीय समाज पार्टी पर बड़े दलों की नजर है। अपना दल का वाराणसी, मीरजापुर, सोनभद्र, चंदौली से लेकर गाजीपुर तक असर है। अनुप्रिया पटेल के बीजेपी के साथ मिलने के बावजूद अपना दल के कृष्णा पटेल गुट भी कुर्मियों के वोट बैंक में सेंधमारी करने में सक्षम है। कौमी एकता दल, कौएद भी ऐसे दल हैं जिन पर बड़े दलों की गिद्ध सी निगाहें टिकी हुई हैं। इन दलों का गठजोड़ भी चुनावी समीकरण में करिश्मा दिखा सकती हैं।

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    समाजवादी पार्टी कुनबे की रार पर यूं तो सभी की निगाह है, मगर जनपद में राष्ट्रीय लोकदल के कार्यकर्ता कुछ ज्यादा ही गहरी नजर लगाए हुए हैं। उन्हें लग रहा है कि गठबंधन के लिए मना करने वाले मुलायम सिंह यादव को मनाया जा सकता था बशर्ते उनके और अखिलेश के बीच ये झगड़ा न हुआ होता। फिलहाल रालोद के नेता जनपद की पांचों सीटों पर प्रत्याशी उतारने की तैयारी करने की बात कर रहे हैं, मगर अंदर ही अंदर सब चाहते हैं कि किसी तरह से सपा के साथ तालमेल हो जाए।

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