बेटे को लेकर सबसे ज्यादा चिंतित... परिवार में भी पड़ीं अलग-थलग, क्या इंदिरा गांधी के लिए गले की फांस बन गए थे संजय गांधी?
पी.एन. धर की किताब 'इंदिरा गांधी, आपातकाल और भारतीय लोकतंत्र' आपातकाल के दौरान संजय गांधी के बढ़ते प्रभाव और उनकी असंवैधानिक गतिविधियों का वर्णन करती है। धर के अनुसार, प्रधानमंत्री सचिवालय कमजोर हो गया था और इंदिरा गांधी भी संजय के कार्यों, खासकर संविधान सभा के गठन के उनके प्रयासों से चिंतित थीं। आपातकाल की घोषणा इलाहाबाद हाई कोर्ट के फैसले और विपक्षी विरोध के बाद हुई, जिसमें इंदिरा गांधी ने केवल संजय पर भरोसा किया।

पीएन धर ने अपनी किताबों में कई कहानियां बताईं। (फाइल फोटो)
पीटीआई, नई दिल्ली। आपातकाल के 21 महीनों के शासनकाल के दौरान इंदिरा गांधी के प्रधान सचिव रहे पीएन धर ने उस दौर की गतिविधियों को अपनी किताब 'इंदिरा गांधी, आपातकाल और भारतीय लोकतंत्र' में लिपिबद्ध किया है। इस पुस्तक में उस दौर के विवरण में जिस चरित्र का सबसे अप्रिय चित्रण है, वह हैं तत्कालीन प्रधानमंत्री के छोटे बेटे संजय गांधी।
धर लिखते हैं कि पीएमएच (प्रधानमंत्री आवास) ''असंवैधानिक'' गतिविधियों का केंद्र बन गया था क्योंकि कांग्रेस के जूनियर नेताओं की बातों पर ध्यान देने वाली अविश्वासी प्रधानमंत्री और उनके बेटे के प्रति वफादार नेताओं की वजह से पीएमएस (प्रधानमंत्री सचिवालय) कमजोर हो गया था।
संजय गांधी और हरियाणा के नेता बंसी लाल जैसे उनके वफादारों ने उस दौर में कांग्रेस में बढ़त हासिल कर ली थी। यहां तक कि प्रधानमंत्री भी संविधान में व्यापक बदलाव के लिए संविधान सभा के गठन के समर्थन में राज्य विधानसभाओं से प्रस्ताव पारित करवाने के उनके कदम से चिंतित थीं।
संजय गांधी के इस कदम से नाराज थीं इंदिरा गांधी
संजय गांधी के प्रति उनके जुनून से अवगत धर 2000 में प्रकाशित इस पुस्तक में लिखते हैं, मुझे पता था कि उन्होंने कितनी सावधानी से संजय को संवैधानिक सुधारों पर सभी चर्चाओं से दूर रखा था। मुझे यह भी पता था कि तीन विधानसभाओं द्वारा उनकी जानकारी के बिना, लेकिन संजय की स्वीकृति से संविधान सभा के प्रस्तावों को पारित करने से वह कितनी नाराज थीं। वह आश्चर्य जताते हुए लिखते हैं, क्या संजय उनके लिए गले की फांस बन रहे थे?
संजय गांधी के बारे में इंदिरा गांधी अधिक चिंतित थीं
उन्होंने कहा कि संविधान सभा का मुख्य उद्देश्य आपातकाल के शासन को जारी रखना और चुनाव स्थगित करना प्रतीत होता है। बंसीलाल ने धर से कहा था कि इसका उद्देश्य ''बहन जी'' (इंदिरा गांधी) को आजीवन अध्यक्ष बनाना होगा। आपातकाल हटाने के बाद मार्च, 1977 के चुनावों में जब कांग्रेस को भारी हार का सामना करना पड़ा, तो दिल्ली में इंदिरा गांधी के कथित अपराधों की कहानियां और जनता पार्टी की योजनाएं गूंज रही थीं। संजय गांधी के बारे में इंदिरा गांधी अधिक चिंतित थीं और अपने परिवार में ही अलग-थलग हो गई थीं।
धर लिखते हैं, ''राजीव गांधी को अपने भाई के प्रति कोई सहानुभूति नहीं थी। वह मुझसे मिलने आए थे और अपनी मां के बारे में बेहद ¨चतित व अपने भाई के प्रति गुस्से से भरे हुए थे। उन्होंने कहा था कि वह अपने भाई के कार्यों के मूकदर्शक बनकर रह गए थे।''
कैसे की गई आपातकाल की घोषणा?
उन्होंने कहा कि भ्रष्टाचार सहित कई मुद्दों पर छात्रों के विरोध प्रदर्शनों के बाद गुजरात विधानसभा भंग होने के बाद हुए चुनावों में कांग्रेस की हार और जून, 1975 में उसी दिन इलाहाबाद हाई कोर्ट द्वारा इंदिरा गांधी को लोकसभा के लिए अयोग्य ठहराए जाने के फैसले ने आपातकाल की घोषणा का मार्ग प्रशस्त किया था क्योंकि जयप्रकाश नारायण के नेतृत्व वाले विपक्ष ने उन्हें हटाने के लिए कमर कस ली थी।
इस दौरान इंदिरा गांधी ने खुद को सबसे काट लिया था। अपने सर्वोच्च राजनीतिक संकट के समय उन्होंने अपने छोटे बेटे संजय को छोड़कर किसी पर भी भरोसा नहीं किया। धर ने कहा कि संजय गांधी अपनी मां के उन सहयोगियों और सहायकों को नापसंद करते थे, जिन्होंने उनकी मारुति कार परियोजना का विरोध किया था या उन्हें गंभीरता से नहीं लिया था।
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