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    चौहानों का शासन, सूफी संत का करिश्मा... ढाई दिन में बनी मस्जिद, कुछ ऐसा है अजमेर का खूबसूरत इतिहास

    By Preeti GuptaEdited By: Preeti Gupta
    Updated: Wed, 31 May 2023 02:38 PM (IST)

    PM Narendra Modi Rajasthan Ajmer Visit पीएम मोदी आज अजमेर में मेगा इवेंट करेंगे। वह अजमेर की कायड़ विश्राम स्थली में बड़े जनसमूह को संबोधित करेंगे। रा ...और पढ़ें

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    पीएम मोदी आज अजमेर में मेगा इवेंट करेंगे

    नई दिल्ली, ऑनलाइन डेस्क। PM Narendra Modi Rajasthan Ajmer Visit: प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी राजस्थान विधानसभा चुनावों से पहले आज अजमेर में मेगा इवेंट में शामिल होंगे। वह यहां एक विशाल रैली को संबोधित करेंगे। अपने मेगा इवेंट में पीएम मोदी केंद्र सरकार की नौ साल की उपलब्धियां गिनाएंगे।

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    पीएम सबसे पहले पुष्कर में ब्रह्मा मंदिर के दर्शन करेंगे। वहीं, इसके बाद वह अजमेर की कायड़ विश्राम स्थली में लोगों को संबोधित। पीएम का अजमेर दौरा अपने ही आप में बहुत विशेष है। लेकिन, क्या आप अजमेर के रोचक इतिहास से रूबरू हैं, क्या आप जानते हैं कि अजमेर का नाम अजमेर कैसे पड़ा। आप इस लेख के माध्यम से अजमेर के खूबसूरत इतिहास से रूबरू हो सकेंगे। 

    कब हुई अजमेर की स्थापना

    • राजस्थान की राजधानी वैसे तो जयपुर है, लेकिन इसका दिल तो अजमेर ही कहलाता है। अजमेर अपने दिलचस्प इतिहास के कारण आकर्षण का केंद्र बना रहता है।
    • राजा अजय पाल चौहान ने 7वीं शताब्दी में अजयमेरू की स्थापना की थी। वहीं, चौहानों ने 1193 ई. तक यहां पर शासन किया था। उसके बाद इसका नाम पहले अजयमेर रखा गया था और फिर बाद में इसे बदलाकर अजमेर रख दिया गया था।
    • अजमेर के बारे में यह भी रोचक है कि ऐसा माना जाता है कि अजमेर को दो राजाओं के द्वारा स्थापित किया गया था। कहीं राजा अजयपाल चौहान का और कहीं राजा अजयदेव चौहान का नाम अजमेरू के स्थापना के संबंध में उल्लेख आता है।
    • 700 वीं ईस्वी से 1193 तक अजमेर के शासक चौहान थे। चौहान वंश के राजाओं का 494 सालों तक यहां शासन किया है
    • अजमेर के बारे में यह भी रोचक इतिहास है कि पृथ्वीराज चौहान ने भी यहां पर शासन किया था।
    • उन्होंने अजमेयरू को अपनी राजधानी बनाया था, हालांकि वह इसे मोहम्मद गौरी से हार गए थे। तब से, अजमेर कई राजवंशों का घर बन गया था।

    अजमेर की खूबसूरत विरासतें

    आज, अजमेर हिंदुओं के साथ-साथ मुसलमानों के लिए भी एक लोकप्रिय तीर्थस्थल है। विशेष रूप से प्रसिद्ध सूफी संत ख्वाजा मोइनुद्दीन चिश्ती की दरगाह शरीफ-मकबरा, यह दोनों ही हिंदुओं और मुसलमानों द्वारा समान रूप से पूजनीय है। दरगाह के अलावा अजमेर के पुष्कर का पशु मेला, पुष्कर में ब्रह्मा मंदिर, आना सागर झील और दौलत बाग, मेयो कॉलेज, अढ़ाई दिन का झोपड़ा, तारागढ़ का किला और नारेली का जैन मंदिर प्रसिद्ध है। आइए जानते हैं कि यह क्यों प्रसिद्ध हैं और इनका इतिहास क्या है?

    क्यों प्रसिद्ध है मोइनुद्दीन चिश्ती की दरगाह

    मोइनुद्दीन चिश्ती की दरगाह राजस्थान का सबसे प्रसिद्ध तीर्थस्थल है। बताया जाता है कि मोइन-उद-दीन चिश्ती एक ऐसे महान सूफी संत थे जिन्होंने अपना पूरा जीवन गरीबों और दलितों के उत्थान के लिए समर्पित कर दिया था। वे हमेशा जरूरतमंदों की मदद में लगे रहते थे।

    हैदराबाद के निज़ाम ने कराया निर्माण

    मोइन-उद-दीन चिश्ती ने अपने आखिरी पल भी यहीं गुजारे थे। इसी वजह से हैदराबाद के निज़ाम मीर उस्मान अली ख़ाँ ने इस दरगाह का निर्माण करवाया था। इस दरगाह की मान्यता की वजह से हर साल लाखों की संख्या में लोग यहां आते हैं। यह किसी एक खास धर्म के लिए नहीं है, बल्कि यहां पर हिंदू धर्म के अलावा भी अन्य लोग आते हैं। ख्वाजा मोइनुद्दीन चिश्ती का निर्माण हैदराबाद के निज़ाम मीर उस्मान अली ख़ाँ ने करवाया था।

    • मोहम्मद बिन तुगलक हजरत ख्वाजा मुईनुद्दीन चिश्ती अजमेरी की दरगाह में आने वाला पहला व्यक्ति था जिसने 1332 में यहां की यात्रा की थी।
    • निजाम सिक्का नामक एक साधारण पानी भरने वाले ने एक बार यहां मुगल बादशाह हुमायूं को बचाया था। इनाम के तौर पर उसे यहां का एक दिन का नवाब बनाया गया। निजाम सिक्का का मकबरा भी दरगाह के अंदर स्थित है।
    • जहालरा- यह दरगाह के अंदर एक स्मारक है जो कि हजरत मुईनुद्दीन चिश्ती के समय यहां पानी का मुख्य स्रोत था। आज भी जहालरा का पानी दरगाह के पवित्र कामों में प्रयोग किया जाता है।
    • -रोजाना नमाज के बाद यहां सूफी गायकों और भक्तों के द्वारा अजमेर शरीफ के हॉल महफि़ल-ए-समां में अल्लाह की महिमा का बखान करते हुए कव्वालियां गाई जाती हैं।
    • दरगाह के पश्चिम में चांदी का पत्रा चढ़ा हुआ एक खूबसूरत दरवाजा है जिसे जन्नती दरवाजा कहा जाता है।
    • यह दरवाजा वर्ष में चार बार ही खुलता है- वार्षिक उर्स के समय, दो बार ईद पर और ख्वाजा शवाब की पीर के उर्स पर दरवाजा खुलता है। 

    पुष्कर में ब्रह्मा मंदिर

    हिंदू धर्म में ब्रह्म देव को सृष्टि का रचियता माना जाता है। ब्रह्म देव के नाम पर पूरे विश्व में कुछ ही मंदिरों का निर्माण किया गया है। जिनमें से सबसे पुराना मंदिर है पुष्कर का ब्रह्मा मंदिर है। इस पुष्कर मंदिर का निर्माण 14 वीं शताब्दी में किया गया था।

    यह मंदिर पुष्कर झील के किनारे स्थित है और ब्रह्म देव के सबसे पुराने मंदिरों में से एक है। यह मंदिर हर साल पर्यटकों और श्रद्धालुओं को अपनी ओर आकर्षित करता है। पुष्कर झील ब्रह्मा जी के कमल की एक पत्ती से बनी है, जो हिन्दुओं के लिए अत्यंत पवित्र झील है।

    प्राचीन ग्रंथों के मुताबिक, पुष्कर दुनिया की इकलौती जगह है, जहां ब्रह्मा का मंदिर स्थापित है और इस जगह को हिंदुओं के पवित्र स्थानों के राजा के रूप में वर्णित किया गया है।

    क्यों प्रसिद्ध है पुष्कर का पशु मेला

    अजमेर अपनी खूबसूरत विरासतों के लिए जाना जाता है। वहीं, यहां कुछ ऐसी भी चीजें हैं, जो लोगों को बेहद आकर्षित करती हैं। पुष्कर का पशु मेला लोगों के लिए आकर्षण का केंद्र बना रहता है।  इसे स्थानीय रूप से कार्तिक मेला या पुष्कर का मेला कहा जाता है। हर साल इसका आयोजन किया जाता है और लाखों की संख्या में लोग यहां आते हैं। मेले में ऊंट और घोड़ों की प्रदर्शनी और विविध प्रतियोगिताऐं आयोजित होती है। साथ ही मवेशियों का व्यापार किया जाता है।

    मेयो कॉलेज

    अजमेर का मेयो कॉलेज भारत के सबसे पुराने सार्वजनिक बोर्डिंग स्कूलों में से एक माना जाता है। यह पूरी तरह से एक ऑल-बॉयज बोर्डिंग स्कूल है। इसकी स्थापना 1875 में की गई थी। मेयो के 6वें अर्ल रिचर्ड बॉर्के ने इसकी स्थापना की थी।  अर्ल रिचर्ड बॉर्के 1869 से 1872 तक भारत के वायसराय थे।  मेयो कॉलेज की स्थापना का मुख्य उद्देश्य राजपूत राज्य के भावी शासकों में ब्रिटिश शासकों के प्रति स्वामी भक्ति तथा आज्ञाकारिता की भावना को दृढ़ करना था

    अढ़ाई दिन का झोपड़ा

    यूं तो अजमेर में बहुत-सी ऐसी जगह हैं, जो अपनी ऐतिहासिक पहचान के लिए जानी जाती हैं। इन्हीं में से एक है अढ़ाई दिन का झोपड़ा।  अढ़ाई दिन का झोपड़ा राजस्थान के अजमेर में स्थित है। असल में यह कोई झोपड़ा नहीं, बल्कि मस्जिद है। इसे अढ़ाई दिन का झोपड़ा इसलिए कहा जाता है क्योंकि इसे बनाने में केवल ढाई दिन का ही समय लगा था।

    पहले यह एक संस्कृत  स्कूल था, लेकिन मोहम्मद गौरी ने 1198 में मस्जिद का रूप दे दिया। हेरत के अबू बकर द्वारा डिजाइन की गई ये मस्जिद भारतीय मुस्लिम वास्तुकला का नायाब उदाहरण है और इसका इतिहास 800 साल पुराना है।

    तारागढ़ का किला

    अजमेर की एक-एक विरासतें मन मोह लेती हैं। उन्हीं में से एक है तारागढ़ का किला। आक्रमण, सुरक्षा और स्थापत्य का अद्भुत नमूना है तारागढ़ का किला।  अजमेर की सबसे ऊंची पर्वत शृंखला पर स्थित तारागढ़ किले को सन् 1832 में भारत के गवर्नर जनरल विलियम बैंटिक ने देखा तो उनके मुंह से निकल पड़ा-''ओह दुनिया का दूसरा जिब्राल्टर। यह अजमेर के प्रसिद्ध पर्यटक स्थलों में से एक है।

    पहाड़ी की खड़ी ढलान पर बने इस किले में प्रवेश करने के लिए तीन विशाल द्वार बनाए गए हैं। तारागढ़ किले में एक रानी महल भी है जो शासकों की पत्नियों के लिए बनाया गया था। रानी महल में ग्लास की खिड़कियां और दीवार के भित्ति के कारण यह यात्रियों को आकर्षित करता है।