मोदी सर ने लूटी बच्चों की महफिल, आंखों में भर गए सपने
तीन महीने पहले हुए चुनाव में लोगों का दिल जीतकर सत्ता में आए प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी शुक्रवार को टीचर की भूमिका में आए तो बच्चों की महफिल लूट ली। शिक्षक दिवस के अवसर पर अपनी बचपन की शरारतें सुनाकर पहले उनका दिल जीता फिर आत्म गौरव पैदा कर भरोसा भी हासिल कर लिया। एक सधे हुए शिक्षक की भांति सरल तरीके से नैतिक पाठ भी पढ़ाया तो शिक्षकों को भी उनका कर्तव्य याद दिलाने से नहीं चूके।
जागरण ब्यूरो, नई दिल्ली। तीन महीने पहले हुए चुनाव में लोगों का दिल जीतकर सत्ता में आए प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी शुक्रवार को टीचर की भूमिका में आए तो बच्चों की महफिल लूट ली। शिक्षक दिवस के अवसर पर अपनी बचपन की शरारतें सुनाकर पहले उनका दिल जीता फिर आत्म गौरव पैदा कर भरोसा भी हासिल कर लिया। एक सधे हुए शिक्षक की भांति सरल तरीके से नैतिक पाठ भी पढ़ाया तो शिक्षकों को भी उनका कर्तव्य याद दिलाने से नहीं चूके।
शुक्रवार को शिक्षक दिवस के अवसर पर नई परंपरा की शुरुआत हो गई। शिक्षकों को सम्मानित करने की परंपरा से थोड़ा और आगे बढ़ते हुए प्रधानमंत्री मोदी पहली बार देश के हर कोने के स्कूली बच्चों से रूबरू हुए। दिल्ली के मानेकशा आडिटोरियम में कई स्कूलों के बच्चों से सीधी बातचीत और देश के अन्य हिस्सों में सैटेलाइट के जरिये हुए सीधे प्रसारण में मोदी ने शिक्षक, शिक्षण व्यवस्था, पर्यावरण, बच्चों के लिए खेलकूद की जरूरत, स्कूलों में सफाई और स्वच्छता जैसे हर बिंदु को छुआ। अनुशासित लेकिन हल्के फुल्के माहौल में उन्होंने बच्चों में यह आत्मबल और गौरव जगाने की कोशिश की कि अपने छोटे बड़े कामों से वह भी देश का निर्माण कर सकते हैं। शिक्षकों से भी उन्होंने यही उम्मीद की कि वह बच्चों में इसी भावना का विकास करेंगे। शिक्षकों से आशा जताई कि ऐसा माहौल बनाएं, जिससे छात्रों के साथ भरोसे का व्यक्तिगत रिश्ता बने जो स्कूल के दायरे से बाहर भी हो। मोदी का मानना था कि भारत ऐसा देश बने जो अच्छे शिक्षकों के लिए जाना जाए। क्योंकि अच्छे शिक्षक ही बुनियाद बनाते हैं।
देश के अलग-अलग भागों से छात्रों के साथ सवाल जवाब का हिस्सा बच्चों के लिए यादगार रहेगा। दिल्ली ही नहीं, दूसरे राज्यों से स्कूलों के बच्चों में मोदी के भाषण को लेकर उत्साह दिखा। देहरादून में तो एक मदरसे में भी टीवी के जरिये बच्चों को मोदी का भाषण दिखाया गया। पश्चिम बंगाल संभवत: अकेला ऐसा राज्य था, जहां इसका सीधा प्रसारण नहीं हुआ। राज्य सरकार ने पहले ही संसाधन और समय की कमी की बात कहकर स्पष्ट कर दिया था कि वहां किसी स्कूल में बच्चे मोदी की पाठशाला से नहीं जुड़ेंगे।
अलग-अलग सवालों का जवाब देते हुए मोदी ने राजनीतिक दलों और राजनीतिज्ञों समेत मीडिया पर भी चुटकी ली तो यह समझाने में भी कामयाब रहे कि कुछ बनने की बजाय कुछ करने की ललक ही आगे ले जाएगी। दरअसल, उनसे सवाल पूछा गया था कि क्या उन्होंने सोचा था कि वह एक दिन प्रधानमंत्री बनेंगे। इसी तरह जब इंफाल के एक छात्र ने उनसे यह पूछा कि प्रधानमंत्री बनने के लिए उसे क्या करना चाहिए..तो ठहाकों के बीच मोदी ने तत्काल जवाब दिया- 2024 के चुनाव लड़ने की तैयारी करो। परोक्ष रूप से कांग्रेस समेत दूसरे दलों के लिए यह संदेश हो सकता है कि मोदी केंद्र की सत्ता में लंबी पारी खेलने के इरादे से आए हैं। बिजली और पानी की बचत, स्कूलों में सफाई भी देश सेवा है, जैसा पाठ देकर बच्चों को जहां इसका अहसास कराया कि छोटे होते हुए भी वह देश निर्माण में जुड़े हैं। मोदी को एकचित्त होकर सुनते बच्चों ने भी यह अहसास करा दिया कि प्रधानमंत्री की पाठशाला से वह कुछ सीखकर निकलेंगे।
बच्चों के साथ मोदी कुछ देर के लिए बच्चा हो गए थे। उन्होंने उनके साथ अपनी बचपन की शरारतों को भी साझा किया। मसलन शादियों में कोई शहनाई बजा रहा होता तो वह अपने दोस्तों के साथ इमली लेकर पहुंच जाते और उसे दिखाते। ध्यान रहे कि इमली के देखने से मुंह में पानी आ जाता है और फिर शहनाई का बेसुरा होना तय था। एक दूसरी कहानी यह थी कि शादियों में किस तरह वह आसपास खड़े दो लोगों के कपड़ों को स्टेपल कर देते थे। हालांकि, वह बच्चों से यह वादा लेने से नहीं चूके कि वह ऐसी कोई शरारत नहीं करेंगे।
लगभग दो घंटे तक चले कार्यक्रम में मोदी ने बालिका शिक्षा, शिक्षा में तकनीक के प्रयोग, क्लाइमेट चेंज जैसे कई विषयों पर सरल अंदाज में बच्चों को अपनी सोच बताई। कुल मिलाकर बच्चो के साथ मोदी का पहला सीधा संवाद यह संदेश देने में सफल रहा कि प्रधानमंत्री मोदी की नजरें स्कूली शिक्षा पर रहेंगी। तौर तरीके में बदलाव लाने होंगे। कार्यक्रम के दौरान ही डिजिटल इंडिया और जापान में शिक्षण व्यवस्था का इजहार कर मोदी ने यह संकेत दे दिया है। गौरतलब है कि दूरदर्शन पर जहां भाषण का सीधा प्रसारण हुआ, वहीं एनआइसी ने उत्तर पूर्व, पोर्ट ब्लेयर, नक्सलवाद प्रभावित दंतेवाड़ा जैसे दूर दराज के क्षेत्रों से भी बच्चों को प्रधानमंत्री के साथ जोड़ा था।
'मैं हेड मास्टर हूं या क्या हूं, यह नहीं जानता हूं। लेकिन मैं हार्ड टास्क मास्टर हूं। खुद भी काम करता हूं और दूसरों से काम लेता भी हूं।'
-नरेंद्र मोदी
पीएम की पाठशाला:
-अच्छे शिक्षक देश की बुनियाद डालते हैं, उन्हें छात्रों के साथ भरोसा का रिश्ता बनाना चाहिए
-भारत ऐसा देश बन सकता है, जहां अच्छे शिक्षक पैदा हों, उनकी जरूरत पूरे विश्व में है
-यह चिंता का विषय है कि बचपना खोता जा रहा है। बच्चों के शरीर से दिन भर में तीन-चार बार खेलकूद का पसीना नहीं आए तो विकास कैसे होगा
-शिक्षक और अनुभव दोनों का महत्व होता है, अच्छी शिक्षा न हुई तो अनुभव खतरनाक रास्ते पर ले जा सकती है
- कुछ बनने की नहीं, कुछ करने की इच्छा पालो, रास्ता खुद बन जाएगा
- पीएम बनना चाहते हो तो 2024 का चुनाव लड़ो और शपथग्रहण में मुझे भी बुलाना
-डॉक्टर, इंजीनियर समेत दूसरे पढ़े लिखे लोग क्या किसी भी स्कूल में बच्चों की एक क्लास नहीं ले सकते हैं
-हमें प्रकृति के प्रति भी संवेदनशील होना चाहिए। प्रकृति के प्रति लगाव हमारी संस्कृति का हिस्सा रहा है। लेकिन बदलाव आया है। प्रकृति से प्यार करो, अपनी आदतें बदलो, सब ठीक हो सकता है।
-सिर्फ गूगल पर निर्भर नहीं रहें, गूगल गुरु से जानकारी तो मिल जाएगी, पर ज्ञान नहीं मिलेगा।