'राजनीतिक दलों में Posh कानून लागू हो', याचिकाकर्ता की मांग पर SC ने क्या कहा?
सुप्रीम कोर्ट में एक याचिका दायर की गई है जिसमें राजनीतिक दलों को कार्यस्थल पर महिलाओं के यौन उत्पीड़न (रोकथाम निषेध और निवारण) अधिनियम 2013 का पालन करने का निर्देश देने की मांग की गई है। याचिका में कहा गया है कि राजनीतिक दल अधिनियम के दायरे में आते हैं और उन्हें शिकायत निवारण तंत्र स्थापित करने का निर्देश दिया जाए।

पीटीआई, नई दिल्ली। सुप्रीम कोर्ट में दायर एक याचिका में राजनीतिक दलों को कार्यस्थल पर महिलाओं के यौन उत्पीड़न (रोकथाम, निषेध और निवारण) अधिनियम, 2013 के प्रविधानों का पालन करने का निर्देश देने की मांग की गई है।
याचिका में तर्क दिया गया है कि राजनीतिक दल 2013 के अधिनियम के दायरे में आते हैं, इसलिए वे इसमें उल्लिखित प्रक्रियाओं का पालन करने के लिए बाध्य हैं। याचिका में कहा गया है कि 2024 में याचिकाकर्ता वकील योगमाया एमजी ने सुप्रीम कोर्ट में इसी तरह की याचिका दायर की थी, जिसने उन्हें सक्षम प्राधिकारी के पास जाने की स्वतंत्रता दी थी।
याचिका में आगे कहा गया है कि याचिकाकर्ता ने भारत के चुनाव आयोग को एक प्रतिवेदन भेजा था, लेकिन उन्हें अब तक कोई जवाब नहीं मिला है। अब सुप्रीम कोर्ट के समक्ष योगमाया ने राजनीतिक दलों में महिलाओं के लिए एक सुरक्षित और समावेशी कार्य वातावरण सुनिश्चित करने और यौन उत्पीड़न को रोकने तथा उससे निपटने के लिए राजनीतिक दलों को जवाबदेह ठहराने के निर्देश देने की मांग की है।
केंद्र और भाजपा एवं कांग्रेस सहित राजनीतिक दलों को प्रतिवादी बनाते हुए याचिका में यौन उत्पीड़न की समस्या से निपटने के लिए 2013 के अधिनियम और विशाखा मामले में ऐतिहासिक फैसले में सुप्रीम कोर्ट के निर्देशों के अनुरूप एक शिकायत निवारण तंत्र स्थापित करने का निर्देश देने की मांग की गई है।
याचिकाकर्ता ने क्या कहा?
वकील श्रीराम पी. के माध्यम से दायर याचिका में कहा गया है, ''यह रिट याचिका कार्यस्थल पर महिलाओं के यौन उत्पीड़न (रोकथाम, निषेध और निवारण) अधिनियम, 2013 के तहत सुरक्षा के दायरे से महिला राजनीतिक कार्यकर्ताओं को बाहर रखने को चुनौती देती है।''
याचिका में कहा गया है कि अधिनियम के प्रगतिशील उद्देश्य के बावजूद, महिला राजनीतिक कार्यकर्ता, विशेष रूप से जमीनी स्तर पर चुनाव प्रचार और पार्टी कार्य के दौरान यौन शोषण की चपेट में रहती हैं। मौजूदा विधायी ढांचे के तहत उनके लिए कोई प्रभावी कानूनी उपाय उपलब्ध नहीं है।
''संयुक्त राष्ट्र महिला (2013) और अंतर-संसदीय संघ (2016) द्वारा किए गए अध्ययनों का हवाला देते हुए, जो राजनीतिक क्षेत्रों में महिलाओं के व्यापक मनोवैज्ञानिक और यौन उत्पीड़न को उजागर करते हैं, याचिका में यौन उत्पीड़न रोकथाम अधिनियम के तहत ऐसे कार्यकर्ताओं के समावेश और संरक्षण की तत्काल आवश्यकता पर जोर दिया गया है।''
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