अब इतिहास बन जाएगा 'योजना आयोग'
हाल के वर्षो में विवादों में रहा योजना आयोग अब इतिहास बन जाएगा। बदलते वैश्रि्वक व घरेलू आर्थिक परिदृष्य के मद्देनजर मोदी सरकार जल्द ही एक नई संस्था बन ...और पढ़ें

नई दिल्ली (हरिकिशन शर्मा)।
हाल के वर्षो में विवादों में रहा योजना आयोग अब इतिहास बन जाएगा। बदलते वैश्रि्वक व घरेलू आर्थिक परिदृष्य के मद्देनजर मोदी सरकार जल्द ही एक नई संस्था बनाएगी जो मौजूदा आर्थिक चुनौतियों से निपटने, युवाओं की क्षमता के बेहतर उपयोग और संघीय ढांचे को मजबूत बनाने का काम करेगी।
प्रधानमंत्री की अध्यक्षता वाले योजना आयोग का गठन 15 मार्च 1950 को एक प्रस्ताव से हुआ था। इसका उद्देश्य कृषि और औद्योगिक उत्पादन बढ़ाने को संसाधनों का आकलन, केंद्रीयकृत पंचवर्षीय योजनाएं बनाना व धन आवंटित करना था। यह और बात है कि हाल के वर्षो में इसकी भूमिका पर सवाल उठने लगे। 1991 में आर्थिक सुधारों के आगाज से जिस तरह आर्थिक गतिविधियों में सरकार की भूमिका सिमटी और निजी क्षेत्र की बढ़ी है, उसे देखते हुए आयोग का खास औचित्य नहीं बचा।
एक महत्वपूर्ण बदलाव यह आया कि बीते दो दशक में राज्य विकास ध्रुव बनकर उभरे हैं। राज्यों के विकास की रफ्तार केंद्र से अधिक रही है। कई मौकों पर राज्यों ने ही लड़खड़ाती राष्ट्रीय अर्थव्यवस्था को संबल दिया। ऐसे में योजना आयोग की केंद्रीयकृत भूमिका की जरूरत अब नहीं है।
इसके अलावा संप्रग के कार्यकाल में कई मौकों पर योजना आयोग केंद्रीय मंत्रालयों और राज्यों के साथ विवाद का मंच बनकर उभरा। इसे 'आर्मचेयर एडवाइजर' से लेकर नौकरशाहों का 'पार्किंग लॉट' तक करार दिया गया। इधर संघीय ढांचे को नजरअंदाज कर योजना आयोग खुद को बड़ा भाई समझ राज्यों के साथ छोटे भाई जैसा बर्ताव करने लगा। राज्यों को अपने ही धन को खर्च करने की मंजूरी लेने को बार-बार योजना भवन के चक्कर काटने पड़ते थे। तमिलनाडु की मुख्यमंत्री जयललिता ने 2012 में योजना आयोग के उपाध्यक्ष मोंटेक सिंह अहलूवालिया से साफ कह दिया कि ऐसा लगता है कि हम यहां सिर्फ यह समझने को आते हैं कि अपना पैसा खुद कैसे खर्च करें।
गुजरात के मुख्यमंत्री के रूप में नरेंद्र मोदी का योजना आयोग से लगातार 12 साल वास्ता रहा है। वह भलीभांति जानते जानते हैं कि आयोग में क्या खामियां हैं। पिछले साल मोदी ने योजना भवन में एक बैठक में एक वीडियो दिखाकर अहलूवालिया और बाकी सदस्यों को यह समझाया था कि आयोग का गठन किस लिए हुआ था और आज यह क्या कर रहा है।
नई संस्था का कैसा होगा स्वरूप
माना जा रहा है कि योजना आयोग की जगह उत्पादकता आयोग या विकास और सुधार आयोग बन सकता है। योजना आयोग के पास जो वित्तीय शक्तियां हैं, उन्हें वित्त मंत्रालय को सौंपा जा सकता है। नई संस्था में राज्यों की भूमिका बढ़ाई जा सकती है। मोदी केंद्र और राज्यों को मिलाकर टीम इंडिया की बात करते हैं। लिहाजा, नई संस्था में इसकी झलक देखने को मिल सकती है। नई संस्था एक थिंक टैंक के रूप में देश के विकास की दीर्घकालिक योजनाएं बना सकती है।
ये है इतिहास
सोवियत संघ के केंद्रीयकृत नियोजन से प्रभावित होकर प्रथम प्रधानमंत्री पंडित जवाहरलाल नेहरू ने योजना आयोग का गठन किया था। प्रधानमंत्री इसके पदेन अध्यक्ष थे। इसके पहले उपाध्यक्ष गुलजारीलाल नंदा तथा आखिरी उपाध्यक्ष मोंटेक सिंह अहलूवालिया रहे। योजना आयोग ने 1951 में पहली पंचवर्षीय योजना बनाई। फिलहाल 12वीं पंचवर्षीय योजना (01 अप्रैल 2012 से 31 मार्च 2017) चल रही है। राष्ट्रपति प्रणब मुखर्जी और पूर्व प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह भी योजना आयोग के उपाध्यक्ष रह चुके हैं।

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