राष्ट्रध्वज की तरह राष्ट्रगान के अपमान पर भी होनी चाहिए सजा
मामले की सुनवाई न्यायमूर्ति दीपक मिश्रा की अध्यक्षता वाली पीठ कर रही है।
माला दीक्षित, नई दिल्ली। राष्ट्रध्वज या संविधान का अपमान करने पर कानून मे सजा का प्रावधान है लेकिन ऐसा प्रावधान राष्ट्रगान का अपमान करने पर नहीं है। मंगलवार को कानून की इस कमी को उजागर करते हुए राष्ट्रध्वज की तरह राष्ट्रगान के अपमान पर भी सजा का प्रावधान किये जाने की मांग उठी। ये मांग देश भर के सिनेमा घरों में राष्ट्रगान जरूरी करने का मुद्दा उठाने वाले याचिकाकर्ता श्याम नारायण चौसकी की ओर से की गई।
कोर्ट ने चौसकी के वकील को अपनी मांग रखने के लिए याचिका में जरूरी बदलाव करने की इजाजत दे दी है। मामले की सुनवाई न्यायमूर्ति दीपक मिश्रा की अध्यक्षता वाली पीठ कर रही है। मंगलवार को चौसकी के वकील राकेश द्विवेदी ने प्रिवेंशन आफ डिसरिस्पेक्ट एंड इंसल्ट टू नेशनल फ्लैग एंड नेशनल एंथम एक्ट 1971 के प्रावधानों का जिक्र करते हुए कहा कि कानून में राष्ट्रध्वज और संविधान का अपमान करने पर सजा का प्रावधान है लेकिन राष्ट्रगान के बारे में ऐसा कोई प्रावधान नहीं है। इसके चलते जो लोग राष्ट्रगान का अपमान करते हैं उनके साथ भेदभाव होता है, जो कि अनुच्छेद 14 का उल्लंघन है।
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उन्होंने कहा कि ये कानून पुराना हो गया है और संविधान में अनुच्छेद 51-ए जोड़े जाने के बाद अपडेट नहीं किया गया है। अनुच्छेद 51-ए (ए)में नागरिकों के मूल कर्तव्य बताए गये हैं। इसमें राष्ट्र ध्वज और राष्टगान का समान सम्मान देना नागरिकों का मूल कर्तव्य बताया गया है। ऐसे में राष्ट्रगान के साथ भेदभाव या उसे नजरअंदाज नहीं किया जा सकता। उन्होंने कहा कि भारत सरकार को इस कानून में बदलाव के बारे में विचार करना चाहिए।जब ये दलीले चल रहीं थी तभी केंद्र सरकार की ओर से पेश एएसजी तुषार मेहता ने कहा कि ये बड़े दुर्भाग्य की बात है कि राष्ट्रगान के सम्मान के लिए भी लोगों को कोर्ट आना पड़ा उससे भी दुर्भाग्य की बात ये है कि एक वर्ग अदालत में इसका विरोध कर रहा है।
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उन्होंने कहा कि इसके सम्मान से कोई समझौता नहीं हो सकता। कोर्ट ने द्विवेदी की दलीलें सुनने के बाद उन्हें अपनी मांग रखने के लिए याचिका में संशोधन करने की इजाजत दे दी। इसके अलावा कोर्ट ने देश भर के स्कूलों में राष्ट्रगान अनिवार्य करने की मांग वाली याचिका पर केंद्र सरकार को नोटिस जारी कर चार सप्ताह में जवाब मांगा है। ये याचिका वकील और दिल्ली भाजपा प्रवक्ता अश्वनी कुमार उपाध्याय ने दाखिल की है। हालांकि याचिका में राष्ट्रगान के साथ ही राष्ट्रगीत वंदेमातरम को भी जरूरी किये जाने की मांग की गई है लेकिन कोर्ट ने पिछली तारीख 17 फरवरी को ही साफ कर दिया था कि वह राष्ट्रगीत के मसले पर विचार नहीं करेगा।
कोर्ट इस मामले में 23 अगस्त को फिर सुनवाई करेगा। उसी दिन कोर्ट सिनेमा घरों में राष्ट्रगान अनिवार्य करने के आदेश को वापस लेने की मांग अर्जी पर भी सुनवाई करेगा। इसके अलावा कोर्ट ने मंगलवार को कुछ और दिव्यांग श्रेणियों को सिनेमाघरों में राष्ट्रगान बजने पर खड़े होने से छूट दे दी है। जिन्हें छूट दी गई है उनमें व्हील चेयर का प्रयोग करने वाले, सेरेबल पल्सी से ग्रसित, मल्टीपल डिसएबेलिटी, पार्रकिंगसन रोग ग्रसित, नेत्रहीन और बधिर आदि शामिल हैं।