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बिना गाइड और पोर्टर के माउंट अकोंकागुआ को फतह करने वाली पहली भारतीय महिला हैं मिताली

परिस्थितियां भले ही विपरीत हों लेकिन मजबूत हौसलों से बड़े से बड़ा पहाड़ फतह किया जा सकता है। कुछ ऐसा ही कर दिखाया है बिहार की मिताली प्रसाद ने।

By Kamal VermaEdited By: Published: Sun, 19 Jan 2020 03:02 PM (IST)Updated: Mon, 20 Jan 2020 08:07 AM (IST)
बिना गाइड और पोर्टर के माउंट अकोंकागुआ को फतह करने वाली पहली भारतीय महिला हैं मिताली
बिना गाइड और पोर्टर के माउंट अकोंकागुआ को फतह करने वाली पहली भारतीय महिला हैं मिताली

पटना जयशंकर [बिहारी]। पटना विश्वविद्यालय के राजनीतिशास्त्र विभाग की छात्र मिताली प्रसाद ने बीते दिनों एशिया के बाहर सबसे ऊंची चोटी माउंट अकोंकागुआ (6962 मीटर) को फतह किया। शिखर तक पहुंचने के सफर में सबसे अहम बात यह रही कि उन्होंने बगैर किसी गाइड और पोर्टर के माउंट अकोंकागुआ को फतह किया। एशिया के बाहर की इस सबसे ऊंची चोटी पर अकेले पहुंचने वाली वह पहली भारतीय महिला बनीं। उनका यहां तक का सफर बिल्कुल भी आसान नहीं रहा।

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घर की कमजोर आर्थिक स्थिति

कमजोर आर्थिक स्थिति से गुजर रहे परिवार में जन्मी मिताली के लिए संसाधनों को जुटाना शिखर फतह करने से भी ज्यादा कठिन रहा। हालांकि, इन संघर्षो ने उनके इरादों को और मजबूत किया। गत 13 जनवरी की रात 12:45 बजे दक्षिण अमेरिका की माउंट अकोंकागुआ की चोटी पर तिरंगा फहराने वाली मिताली पिछले साल अफ्रीका की सबसे ऊंची चोटी किलिमंजारो (तंजानिया) को भी फतह कर चुकी हैं। उनका लक्ष्य सातों महाद्वीपों की सबसे ऊंची चोटियों को फतह करना है, जिसके सफर पर वह निकली हैं।

बिना गाइड और पोर्टर के पूरी की चढ़ाई 

मिताली ने चार जनवरी को माउंट अकोंकागुआ की चढ़ाई प्रारंभ की थी। मौसम खराब होने के कारण अतिरिक्त पांच दिन लगे। इस वजह से राशन की कमी भी आड़े आई। 90 से 100 किलोमीटर की रफ्तार वाली हवा और मानइस 30 डिग्री सेल्सियस के बीच चढ़ाई बिल्कुल भी आसान नहीं थी, लेकिन मिताली शिखर को फतह कर के ही मानीं। मिताली ने बगैर गाइड और पोर्टर चढ़ाई की। राशन भी खुद ही उठाया। रास्ते में खाना भी बनाया। रोडमैप और प्लानिंग भी खुद ही की। सामान्य तौर पर पर्वतारोही ग्रुप में चढ़ाई करते हैं। गाइड और पोर्टर के बिना चढ़ाई काफी जोखिम भरी होती है।

खुशी से ज्यादा कर्ज उतारने की चिंता

इस मिशन के लिए मिताली गत 17 दिसंबर को पटना से रवाना हुई थीं। उन्होंने बताया कि राज्य के खेलकूद में पर्वतारोहण शामिल नहीं होने के कारण सहायता नहीं मिल पाती। कुछ मददगार हैं, जो हौसला टूटने नहीं देते हैं। कराटे में ब्लैक बेल्ट मिताली नालंदा जिले के कतरीसराय प्रखंड के मायापुर गांव की हैं। वह पटना के बहादुरपुर में परिवार के साथ रहती हैं। मां चंचला देवी सर्जिकल बेल्ट बनाती हैं। पिता मणीन्द्र प्रसाद किसान हैं। परिजनों का कहना है कि चोटी फतह करने की अपार खुशी है, लेकिन बेटी कर्ज के पैसे से दक्षिण अमेरिका गई है। अब उसे उतारने की चिंता है।

चंदे में कोई 10 रुपये देता तो भर आतीं आंखें

मिताली कहती हैं, ‘किलिमंजारो और अकोंकागुआ फतह करने से ज्यादा समय विभाग में प्रोत्साहन राशि के लिए दौड़ने में लगा। पैसा तो नहीं मिल सका, लेकिन तिरस्कार ने सपने को जिद में बदलने का हौसला पैदा कर दिया। साथियों की सलाह पर सर्टिफिकेट दिखाकर चंदा मांगती थी। लाखों रुपये सैलरी पाने वाले जब 10 रुपये चंदा देते थे तो घर पर आकर खूब रोती थी। हालांकि, कुछ सपोर्ट करने वालों ने हौसला टूटने नहीं दिया। किलिमंजारो फतह करने के बाद सपोर्ट करने वालों की संख्या बढ़ी है। अब माउंट एवरेस्ट की बारी है।’

मां का संघर्ष चोटी फतह करने से भी बड़ा 

आर्थिक तंगी से निकलने के लिए मिताली की मां चंचला देवी ने खादी ग्रामोद्योग से ट्रेनिंग ली और 2008 में परिवार के सभी सदस्यों को लेकर पटना आ गईं। तीन बेटियों की पढ़ाई और सभी खर्चे उन्होंने ही 12 से 18 घंटे काम कर पूरे किए। चंचला देवी बताती हैं कि बड़ी बेटी ने नेशनल इंस्टीट्यूट ऑफ डिजाइन (अहमदाबाद) से टेक्सटाइल डिजाइनिंग में कोर्स किया है। अभी सिलवासा में नौकरी करती है। छोटी बेटी मीनल 12वीं में पढ़ती है।

पर्वतारोहण के सभी कोर्स में उत्तीर्ण

मिताली ने बताया कि उनके गांव से राजगीर के पहाड़ नजदीक हैं। पहाड़ पर चढ़ाई बचपन का सपना है, लेकिन घर की आर्थिक स्थिति इतना ज्यादा सोचने की इजाजत नहीं देती थी। पटना आने पर एनसीसी से जुड़ीं। ‘सी’ सर्टिफिकेट प्राप्त किया। पर्वतारोहण की परीक्षा में बेहतर करने पर एनसीसी की ओर से पैरा जंपिंग टीम में चयन हुआ। पर्वतारोहण के बेसिक, एडवांस, मेथड ऑफ इंस्ट्रक्शन के साथ-साथ अल्पाइन कोर्स भी किया। अल्पाइन कोर्स में तंबू के साथ विद्यार्थी किसी चोटी पर कई दिनों के लिए अकेले छोड़ दिया जाता है।

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