'SIR' की भेंट चढ़े जनता के मुद्दे, डूबे मानसून सत्र के 41 घंटे
जनहित के मुद्दों पर चर्चा के मामले में संसद का मानसून सत्र अब तक निराशाजनक रहा है। सत्ता पक्ष और विपक्ष के अपने-अपने रुख पर अड़े रहने के कारण राज्यसभा का काफी समय बर्बाद हो गया है। बिहार मतदाता सूची पुनरीक्षण के मुद्दे पर विपक्ष सरकार को घेरने की कोशिश कर रहा है लेकिन उस पर चर्चा की संभावना कम है।

जितेंद्र शर्मा, नई दिल्ली। जनहित के मुद्दों की चर्चा के मामले में संसद का मानसून सत्र अब तक सूखा ही बीता है। सत्ता पक्ष और विपक्ष जिस तरह से अपनी-अपनी जिद पर अड़े हैं, उसके कारण मौजूदा सत्र में राज्यसभा का 41 घंटे 11 मिनट का समय बर्बाद हो चुका है।
यही नहीं, मंगलवार को राज्यसभा की पीठ से दी गई व्यवस्था ने संकेत दे दिया है कि बिहार मतदाता सूची विशेष सघन पुनरीक्षण (SIR) के जिस मुद्दे पर सरकार को घेरने के लिए विपक्ष ने इतना पसीना बहाया है, उस पर चर्चा की संभावना फिलहाल न के बराबर है।
उपसभापति ने विपक्ष को पढ़ाया पाठ
उपसभापति हरिवंश ने न सिर्फ नियम 267 पर विपक्ष को पाठ पढ़ाया, बल्कि इतिहास के पन्ने पलटते हुए यह भी बताया कि चुनाव अयोग, न्यायालय में विचाराधीन मामलों या राज्य सरकारों के अधिकार क्षेत्र वाले मुद्दों पर चर्चा को पूर्व में भी पीठ नियम विरुद्ध मानती रही है।
इस बार सदन की कार्यवाही के दौरान लगभग समान स्थिति रही है। विपक्षी सदस्य एसआइआर सहित कुछ मुद्दों पर नियम 267 के तहत कार्य स्थगन कराते हुए चर्चा का नोटिस दे रहे हैं और पीठ से उसे खारिज करने पर हंगामे के बाद कार्यवाही स्थगित हो रही है।
मंगलवार को भी नहीं उठे मुद्दे
मंगलवार को भी यही माहौल शुरू हुआ कि उपसभापति ने नियम 267 पर विस्तारपूर्वक व्यवस्था देते हुए कहा कि न्यायालय में विचाराधीन या राज्य सरकारों के अधिकार क्षेत्र से संबंधित मुद्दे को सदन में नहीं उठाया जा सकता। प्रश्नकाल और शून्य काल सरकार को जवाबदेह बनाने और लोक महत्व के अतिआवश्यक मुद्दों को उठाने के महत्वपूर्ण औजार हैं।
उपसभापति ने आंकड़ा भी दिया कि वर्तमान सत्र में अब तक विभिन्न महत्वपूर्ण विषयों पर हमारे पास 150 तारांकित प्रश्न, 150 शून्यकाल प्रस्ताव और 150 विशेष उल्लेख रखने का अवसर था, लेकिन लगातार व्यवधान के कारण मात्र 13 तारांकित प्रश्न, पांच शून्यकाल प्रस्ताव और 17 विशेष उल्लेख ही लिए जा सके।
उपसभापति ने क्या कहा?
उपसभापति ने कुछ पुराने तथ्य रखते हुए कहा कि वर्ष 2000 से 2004 तक नियम 267 के तहत एक भी नोटिस पर चर्चा की अनुमति नहीं दी गई। 2004 से 2009 तक सिर्फ चार नोटिस स्वीकृत किए गए और 2009 से 2014 तक सिर्फ एक नोटिस कार्य स्थगन का लिया गया।
वहीं, 2014 से पिछले सत्र तक छह नोटिसों पर चर्चा कराई जा चुकी है। साथ ही बताया कि 1988 में लोकसभा में बहस के दौरान तत्कालीन लोकसभा अध्यक्ष ने कहा था, "मैं चुनाव आयोग, जो एक स्वायत्त निकाय है, के कार्यों और निर्णयों पर टिप्पणी नहीं कर सकता। मैंने पहले कभी ऐसा नहीं किया और न ही अब करूंगा। जब तक आप संविधान में बदलाव नहीं करते और चुनाव आयोग को अपने अधिकार क्षेत्र में नहीं लाते, हम उसके कार्यों पर टिप्पणी नहीं कर सकते।"
नियमों का किया उल्लेख
इसी तरह 15 मार्च 1972 को जब नीरेन घोष एक विचाराधीन मामले के विवरण पर चर्चा कर रहे थे, तब प्रणब कुमार मुखर्जी ने आपत्ति जताई और कहा कि जो मामला विचाराधीन है, उसे किसी भी रूप में सदन के समक्ष नहीं लाया जा सकता। तत्कालीन उपसभापति ने इसका समर्थन किया और कहा, "यदि यह विचाराधीन है तो आपको इसका उल्लेख नहीं करना चाहिए।" उपसभापति ने न्यायालय में विचाराधीन मामलों को न उठाए जाने संबंधित संसदीय नियमों का भी उल्लेख किया।
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