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    कर्नाटक हाईकोर्ट ने की समान नागरिक संहिता की वकालत, केंद्र और राज्यों से कहा- कानून बनाएं

    Updated: Sat, 05 Apr 2025 10:21 PM (IST)

    कर्नाटक हाई कोर्ट ने समान नागरिक संहिता की वकालत की है। हाईकोर्ट ने संसद और राज्य विधानसभाओं से देशभर में समान नागरिक संहिता (यूसीसी) लागू करने के लिए कानून बनाने का आग्रह किया है। न्यायालय ने इस बात पर जोर दिया कि यद्यपि भारत भर में महिलाएं संविधान के तहत समान नागरिक हैं। हालांकि धर्म-आधारित व्यक्तिगत कानूनों के कारण उनके साथ असमान व्यवहार किया जाता है।

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    कर्नाटक हाईकोर्ट ने की समान नागरिक संहिता की वकालत। (फाइल फोटो)

    पीटीआई, बेंगलुरु। कर्नाटक हाई कोर्ट ने संसद और राज्य विधानसभाओं से देशभर में समान नागरिक संहिता (यूसीसी) लागू करने के लिए मिलकर काम करने का आग्रह किया है। हाई कोर्ट ने सभी नागरिकों, विशेषकर महिलाओं के लिए समानता, पंथनिरपेक्षता और न्याय के संवैधानिक ²ष्टिकोण को कायम रखने में इसके महत्व पर जोर दिया।

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    जस्टिस हंचेट संजीव कुमार की एकल पीठ ने मृतक मुस्लिम महिला शहनाज बेगम के पति और भाई-बहन के बीच संपत्ति विवाद से संबंधित एक सिविल अपील पर फैसला सुनाते हुए यह अपील की। इस मामले ने धर्म के अनुसार पर्सनल ला द्वारा शासित उत्तराधिकार कानूनों और लैंगिक न्याय पर उनके प्रभाव के बारे में व्यापक प्रश्न उठाया है।

    देश में समान नागरिक संहिता लागू करने की कोर्ट ने की वकालत

    जस्टिस कुमार ने शुक्रवार को कहा कि संविधान के अनुच्छेद 44 के तहत समान नागरिक संहिता लागू किए जाने से प्रस्तावना में निहित आदर्शों अर्थात न्याय, स्वतंत्रता, समानता, बंधुत्व और राष्ट्रीय एकता को पूरा किया जा सकेगा। देश को व्यक्तिगत कानूनों और धर्म के संबंध में समान नागरिक संहिता की आवश्यकता है। तभी भारत के संविधान के अनुच्छेद 14 का उद्देश्य प्राप्त होगा।

    धर्म-आधारित व्यक्तिगत कानूनों से महिलाओं के साथ होती है असमानता

    न्यायालय ने इस बात पर जोर दिया कि यद्यपि भारत भर में महिलाएं संविधान के तहत समान नागरिक हैं। लेकिन धर्म-आधारित व्यक्तिगत कानूनों के कारण उनके साथ असमान व्यवहार किया जाता है। पीठ ने इस असमानता को स्पष्ट करने के लिए हिंदू और मुस्लिम पर्सनल लॉ के तहत विरासत के अधिकारों की तुलना की। जहां हिंदू कानून बेटियों को पैतृक संपत्ति में समान अधिकार देता है, वहीं मुस्लिम पर्सनल लॉ भाइयों और बहनों के बीच भेद करता है। यह भाइयों को हिस्सेदार का दर्जा देता है।

    वहीं, दूसरी तरफ बहन को अवशिष्ट के रूप में हिस्सा पाने का अधिकार है, लेकिन हिस्सेदार के रूप में नहीं। यह देखते हुए कि गोवा और उत्तराखंड जैसे राज्यों ने पहले ही समान नागरिक संहिता लागू कर दिया है, न्यायालय ने रजिस्ट्रार जनरल को निर्देश दिया कि वह निर्णय की एक प्रति केंद्र सरकार और कर्नाटक सरकार के प्रधान विधि सचिवों को भेजें, ताकि ऐसी संहिता लागू करने की दिशा में विधायी प्रयास शुरू किए जा सकें।

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