गुजरात में नेता विपक्ष के प्रबल दावेदार बने परेश धनानी
कांग्रेस अध्यक्ष राहुल गांधी की गुजरात की टीम में भी धनानी शामिल रहे हैं। धनानी की दावेदारी मजबूत होने की एक बड़ी वजह पार्टी के तमाम वरिष्ठ दिग्गजों का चुनाव हारना भी है।
संजय मिश्र, नई दिल्ली: गुजरात चुनाव की हार में भी दिखी उम्मीद के मद्देनजर कांग्रेस हाईकमान सूबे में अब अपने नेतृत्व के चेहरों को उभारने की रणनीति को सिरे चढ़ाएगा। इस लिहाज से विपक्ष के नए नेता के चयन को लेकर गंभीर विचार मंथन शुरू हो गया है।
संकेत है किजमीनी सियासत पर पकड़ रखने वाले मुखर और अपेक्षाकृत युवा चेहरे को गुजरात में नेता विपक्ष की जिम्मेदारी दी जा सकती है। इस कसौटी पर तीसरी बार चुनाव जीते परेश धनानी को गुजरात में कांग्रेस विधायक दल के साथ विपक्ष के नेता का प्रबल दावेदार माना जा रहा है।
वहीं हिमाचल प्रदेश में हाईकमान निर्वतमान मुख्यमंत्री वीरभद्र सिंह को भरोसे में लेकर कांग्रेस के नये नेतृत्व के लिए राह बनाने की संभावनाओं पर भी गौर कर रहा है।
पार्टी नेतृत्व का मानना है कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की शख्सियत को छोड़ दिया जाए तो भाजपा के सूबे के नेतृत्व के चेहरों का मुकाबला करना उतना मुश्किल नहीं है। इसीलिए विधानसभा में नेता विपक्ष के साथ प्रदेश संगठन में भविष्य में इसी रणनीति के तहत चेहरों को आगे लाना होगा।
इस कसौटी पर ही परेश धनानी को गुजरात में कांग्रेस विधायक दल के नेता के रुप में दावेदार माना जा रहा। वैसे इस दौड़ में पिछली विधानसभा में शंकर सिंह वाघेला के जाने के बाद कांग्रेस विधायक दल के नेता बने मोहन सिंह राठवा भी हैं।
मगर गुजरात की नई विधानसभा में कांग्रेस के सीटों की संख्या में हुए अच्छे खासे इजाफे के बाद सामाजिक-जातीय समीकरण के लिहाज से आदिवासी समुदाय के राठवा के सहारे सूबे की सियासत साधने में पार्टी को मुश्किल होगी। भाजपा के प्रदेश नेतृत्व का मुकाबला करने के नजरिये से भी राठवा की नरम शैली से कांग्रेस का काम शायद ही चलेगा। इसी वजह से परेश धनानी को नेता विपक्ष के पद का प्रबल दावेदार माना जा रहा।
कांग्रेस ने इस चुनाव में पाटीदारों को सबसे अधिक साधा और टिकट भी दिया जिसमें कई जीत कर भी आए हैं। आगे की सियासत में भी सूबे के इस प्रभावशाली वर्ग को साधे रखना पार्टी की अनिवार्य जरूरत है। इस चुनौती के मद्देनजर भी तीसरी बार विधायक बने धनानी फिट माने जा रहे हैं क्योंकि वे खुद पाटीदार समुदाय से ताल्लुक रखते हैं।
कांग्रेस अध्यक्ष राहुल गांधी की गुजरात की टीम में भी धनानी शामिल रहे हैं। धनानी की दावेदारी मजबूत होने की एक बड़ी वजह पार्टी के तमाम वरिष्ठ दिग्गजों का चुनाव हारना भी है। शक्ति सिंह गोहिल, अर्जुन मोडवाडिया, सिद्धार्थ पटेल और तुषार चौधरी जैसे पार्टी के सीएम दावेदार चेहरे अपनी सीट भी नहीं जीत पाये। गुजरात चुनाव के नतीजों की समीक्षा के लिए 20 दिसंबर से अहमदाबाद में शुरू हो रही कांग्रेस की बैठक के बाद राहुल विधायक दल के नेता को लेकर फैसला करेंगे।
हिमाचल प्रदेश में वैसे तो अभी वीरभद्र सिंह ही विधानसभा में नेता विपक्ष के दावेदार हैं। मगर कांग्रेस नेतृत्व सूबे में भविष्य की राजनीति के लिहाज से वीरभद्र के संरक्षण में नये चेहरों को आगे करने के पक्ष में है। हालांकि कांग्रेस नेतृत्व के लिए वीरभद्र की एकदम से अनदेखी करना आसान नहीं माना जा रहा क्योंकि पार्टी के जीते 21 विधायकों में 17 या 18 राजा वीरभद्र के खास समर्थक हैं।
वीरभद्र विरोधी खेमे के लिए इसमें दूसरी मुश्किल यह है कि उनको चुनौती देने वाले कैंप के अधिकांश बड़े नेता ठाकुर कौल सिंह, जीएस बाली, सुधीर शर्मा आदि चुनाव हार गये हैं। विरोधी खेमे में शामिल प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष सुखविंदर सिंह सुक्खू विधायक दल के नेता के संभावित दावेदारों में गिने जा रहे। मगर सुक्खू को लेकर अपने खुले ऐतराज को देखते हुए वे इस पर राजी होंगे इसमें संदेह है।
माना जा रहा कि वीरभद्र नई पीढी को कमान देने के लिए राजी भी हुए तो वे अपने भरोसेमंद उद्योग मंत्री रहे ऊना से जीते मुकेश अग्निहोत्री को विधायक दल का नेता बनाने की कोशिश करेंगे।
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