क्या पाकिस्तान क्रिप्टो करेंसी से कर रहा आतंकी फंडिंग, क्रिप्टो हब और US कनेक्शन; आखिर क्या है रणनीति?
पाकिस्तान में क्रिप्टो करेंसी को बढ़ावा देने पर भारत चिंतित है क्योंकि इसका उपयोग आतंकवादी संगठनों को वित्तीय मदद पहुंचाने में हो सकता है। पाकिस्तान पहले भी FATF की प्रतिबंधित सूची में रहा है। सरकार और सेना की क्रिप्टो में रुचि से आतंकियों को मदद मिलना आसान हो सकता है। भारत इसे वैश्विक मंच पर उठाएगा और डिजिटल करेंसी पर निगरानी की मांग करेगा।

जयप्रकाश रंजन, नई दिल्ली। आईएमएफ जैसी अंतरराष्ट्रीय वित्तीय एजेंसियों से कर्ज लेकर किसी तरह से अपनी वित्तीय स्थिति को संभालने वाले पाकिस्तान के हुक्मरान जिस तरह से क्रिप्टो करेंसी को बढ़ावा देने में जुटे हैं, उस पर भारत की भी पैनी नजर है।
भारत की चिंता इस बात की है कि आतंकवादी संगठनों को वित्तीय मदद पहुंचाने में पाकिस्तान क्रिप्टो जैसे अत्याधुनिक प्रौद्योगिकी आधारित डिजिटल व वर्चुअल करेंसी का इस्तेमाल कर सकता है।
आतंकवादी संगठनों को वित्तीय मदद देने का पाकिस्तान का पुराना रिकॉर्ड रहा है। पाकिस्तान तकरीबन चार वर्षों तक एफएटीएफ (अवैध तौर पर वित्तीय लेन-देने की निगरानी करने वाली एजेंसी) की प्रतिबंधित सूची में रहा था। एफएटीएफ के दबाव में पाकिस्तान को आतंकवादी संगठनों के बैंक खातों आदि की निगरानी व उन पर प्रतिबंध करने को लेकर कानून बनाने पड़े थे।
क्रिप्टोकरेंसी से आतंकियों को मिल रही मदद?
अब क्रिप्टोकरेंसी को जिस तरह से बढ़ावा देने में वहां की सरकार और पाकिस्तान सेना कोशिश कर रही है, उससे आतंकवादी गतिविधि करने वालों को फिर से वित्तीय मदद पहुंचाना आसान हो सकता है। इस बारे में उच्च पदस्थ
सूत्रों का कहना है कि क्रिप्टोकरेंसी को लेकर पाकिस्तान की जरूरत से ज्यादा उत्सुकता पर लगातार नजर रखने की जरूरत है। भारत वैश्विक मंच से इस बात को उठाएगा कि पाकिस्तान में डिजिटल करेंसी के इस्तेमाल पर भी वैसी ही निगरानी हो जैसे उसके बैंकिंग चैनल पर है।
आखिर भारत क्यों चिंतित?
भारत की चिंता इसलिए ज्यादा है कि क्रिप्टो जैसे डिजिटल करेंसी की वैश्विक निगरानी की अभी तक कोई व्यवस्था नहीं है। अगर बैंकिंग व्यवस्था के तहत गलत कारोबार करने वालों को धन पहुंचाया जाता है तो उस पर लगाम लगाने को लेकर एफएटीएफ और संयुक्त राष्ट्र जैसे एजेंसियां कदम उठा सकते हैं, लेकिन वर्चुअल करेंसी को लेकर कैसे किया जाएगा, इसका अभी तक रोडमैप नहीं बन पाया है।
वर्ष 2023 में भारत की अध्यक्षता में जी-20 की बैठक में क्रिप्टोकरेंसी के नियमन व्यवस्था के रोडमैप पर सहमति बनी थी। यह कब लागू होगा, स्पष्ट नहीं है। भारत की यह चिंता तब सामने आई है कि जब क्रिप्टोकरेंसी को लेकर पिछले तीन-चार महीनों के दौरान पाकिस्तान सरकार सक्रियता काफी बढ़ गई है।
WLF का क्या है रोल?
पीएम शाहबाज शरीफ की सरकार ने कहा है कि वह पाकिस्तान को दक्षिण एशिया में क्रिप्टोकरेंसी का हब बनाना चाहती है। इस संदर्भ में पाकिस्तान सरकार ने वर्ल्ड लिबर्टी फाइनेंशिएल (डब्लूएलएफ) के साथ समझौता किया है। डब्लूएलएफ वर्ष 2024 में स्थापित एक क्रिप्टोकरेंसी कंपनी है और इसके प्रमुख प्रवर्तकों में राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप के करीबी पारिवारिक मित्र शामिल हैं।
इसके प्रतिनिधियों ने पाकिस्तान क्रिप्टो काउंसिल (पीसीसी) के आमंत्रण पर पाकिस्तान का दौरा किया था। जहां उनकी मुलाकात पीएम शाहबाज शरीफ और पाकिस्तान सेना के प्रमुख फील्ड मार्शल आसिम मुनीर से भी मुलाकात हुई थी। पी सीसी और डब्लूएलएफ के बीच 26 अप्रैल, 2025 को समझौता हुआ है।
किस की दम पर उछल रहा पाक?
कुछ विशेषज्ञों ने पहलगाम हमले के बाद जिस तरह से राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप की सरकार ने भारत और पाकिस्तान को एक नजर से देखने की कोशिश की है, उसके पीछे पाकिस्तान में डब्लूएलएफ के हितों से जोड़ कर देख रहे हैं।
मजेदार तथ्य यह है कि पाकिस्तान सरकार ने अभी तक क्रिप्टोकरेंसी के नियमन को लेकर कोई कानूनी तैयारी नहीं की है जबकि वहां की एजेंसियां क्रिप्टोकरेंसी उद्योग को बढ़ावा देने में जुटी हुई हैं।
रविवार को वित्त मंत्री ने मोहम्मद औरंगजेब ने क्रिप्टो व आर्टिफिशियल इंटेलीजेंस जैसे नए उद्योगों को निर्बाध बिजली आपूर्ति के लिए अलग से 2,000 मेगावाट बिजली देने की घोषणा की है।
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