'ऑपरेशन सिंदूर भारतीय रक्षा क्षमताओं का रियलिटी चेक', रक्षा सचिव ने खामियां भी गिनाईं
रक्षा सचिव राजेश कुमार सिंह ने कहा कि ऑपरेशन सिंदूर पाकिस्तान को धूल चटाने के साथ भारतीय सशस्त्र बलों के लिए एक रियलिटी चेक था। इससे भारत की रक्षा क्षमताओं का पता चला और कुछ सुरक्षा खामियां उजागर हुईं। इलेक्ट्रॉनिक युद्ध और ड्रोन तकनीक में सुधार की आवश्यकता महसूस हुई। उन्होंने स्वदेशी रक्षा उत्पादन को बढ़ावा देने और रक्षा खर्च का 75% भारत में ही करने पर जोर दिया।

डिजिटल डेस्क, नई दिल्ली। रक्षा सचिव राजेश कुमार सिंह ने शुक्रवार को कहा कि ऑपरेशन सिंदूर के दौरान हमने पाकिस्तान को तो धूल चटाई ही, यह हमारे सशस्त्र बलों के लिए एक रियलिटी चेक भी था। इससे हमें यह समझने का अवसर मिला कि भारत की रक्षा क्षमताएं किस तरह की हैं?
उन्होंने आगे कहा कि हालांकि, इस ऑपरेशन के दौरान कुछ सुरक्षा खामियों का भी पता चला। इनमें इलेक्ट्रॉनिक युद्ध, मानवरहित प्रणाली के खिलाफ कार्रवाई और सैन्य स्तर के ड्रोन के निर्माण के लिए बेहतर पारिस्थितिकी तंत्र की आवश्यकता शामिल है।
'रियलिटी चेक था ऑपरेशन सिंदूर'
रक्षा सचिव ने पत्रकारों से बात करते हुए कहा कि मौजूदा भू-राजनीतिक स्थिति के संदर्भ में यह बिल्कुल स्पष्ट है कि अधिकांश देश फिर से रक्षा और सैन्य शक्ति पर बहुत ध्यान दे रहे हैं। हमारे पड़ोस को देखते हुए, भारत कोई अपवाद नहीं है। ऑपरेशन सिंदूर के साथ हमारा भी यही अनुभव रहा है। यह कुछ मायनों में हमारे लिए एक रियलिटी चेक था कि हम कहां बेहतर कर सकते हैं। हमें भविष्य के युद्ध की बदलती जरूरतों के अनुसार कहां बदलाव करना होगा।
इन क्षेत्रों में भारत को क्षमता बढ़ाने की जरूरत
दक्षिणी कमान रक्षा तकनीक संगोष्ठी (स्ट्राइड 2025) से इतर उन्होंने उन क्षेत्रों का विस्तार से विवरण दिया, जहां रक्षा प्रणालियों को बेहतर बनाया जा सकता है। इनमें इलेक्ट्रॉनिक युद्ध, मानवरहित प्रणालियों का मुकाबला, सैन्य स्तरीय ड्रोन के निर्माण के लिए बेहतर इकोसिस्टम जैसे क्षेत्र शामिल हैं। कुछ ऐसे क्षेत्र हैं, जहां हमें लगा कि अपनी क्षमता बढ़ाने की जरूरत है। हमेशा से हमारा उद्देश्य रहा है कि सैन्य क्षमता बढ़ाने के लिए पूरे रक्षा उद्योग का उपयोग किया जाए।
दीर्घावधि में सभी रक्षा क्षमताएं स्वदेशी होंगी
क्षमता बढ़ाने के उपाय के बारे में पूछे जाने पर रक्षा सचिव ने कहा कि सशस्त्र बलों को आपातकालीन खरीद नियमों के माध्यम से तत्काल आवश्यक वस्तुएं प्राप्त करने की छूट दी गई है। लेकिन, दीर्घकालिक दृष्टि से रक्षा अनुसंधान एवं विकास संगठन (डीआरडीओ) के साथ मिलकर स्वदेशी उपकरणों के विकास को बढ़ावा देने का नियम रहा है। अल्पावधि में इसमें समझौता करना पड़ता है, लेकिन दीर्घावधि में हम इस बात को लेकर बहुत स्पष्ट हैं कि भले ही फौरी तौर पर वैश्विक खरीदारों से कुछ खरीद लें, दीर्घावधि में हमारा इरादा सभी क्षमताओं को पूर्णत: स्वदेशी करने का है। इन सभी क्षेत्रों में हम डीआरडीओ के साथ मिलकर स्वदेशी विकल्प भी विकसित करेंगे।
राजेश कुमार सिंह ने कहा कि स्वदेशी रक्षा उत्पादन को प्रोत्साहित करने का एक तरीका यह सुनिश्चित करना है कि रक्षा व्यय का कम से कम 75 प्रतिशत भारत में ही खर्च किया जाए। इसे देखते हुए 2024 में 88 प्रतिशत रक्षा खर्च भारत में ही किया गया।
(न्यूज एजेंसी एएनआई के इनपुट के साथ)
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