नोटबंदी का एक साल, कालेधन और भ्रष्टाचार पर लगेगी लगाम
सिस्टम में नकदी पर अंकुश लगने से महंगाई नियंत्रित होने और कर अनुपालन में सुधार से सरकार का खजाना भरने के रूप में अल्पावधि फायदे नजर आने लगे हैं।
नई दिल्ली (जेएनएन)। नोटबंदी के चलते अर्थव्यवस्था की गति कुछ महीने भले ही धीमी पड़ी हो लेकिन मोदी सरकार के इस ऐतिहासिक कदम से कालेधन और भ्रष्टाचार पर लगाम लगेगी जिससे देश का अर्थतंत्र निखरकर मजबूत होगा। माना जा रहा है कि नोटबंदी से संगठित क्षेत्र का विस्तार होगा और दीर्घावधि में इसके फायदे देश को मिलेंगे। बहरहाल सिस्टम में नकदी पर अंकुश लगने से महंगाई नियंत्रित होने और कर अनुपालन में सुधार से सरकार का खजाना भरने के रूप में अल्पावधि फायदे नजर आने लगे हैं। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने आठ नवंबर 2016 को 500 रुपये और 1000 रुपये के पुराने नोट बंद करने का एलान किया था।
एक साल पीछे मुड़कर देखने पर पता चलता है कि नोटबंदी अपने पीछे कई सौगात छोड़कर गई है। इसके असली फायदे दीर्घावधि में मिलने हैं, लेकिन अल्पावधि में भी अर्थव्यवस्था को कई अहम लाभ मिले हैं। हालांकि यह बात अलग है कि इसके क्रियान्वयन में बैंकों के स्तर पर खामियों के चलते आम लोगों को दिक्कतों से भी दो चार होना पड़ा। अर्थव्यवस्था की सेहत के लिए नोटबंदी ने कड़वी घुट्टी की तरह काम किया है। नोटबंदी के बाद अर्थतंत्र में नकदी कम होने से कीमतें नीचें रहीं हैं, वहीं बैंकों के पास पर्याप्त पूंजी उपलब्ध होने से ब्याज दरें भी कुछ नीचे आई हैं। वित्त मंत्रालय के अनुसार चालू वित्त वर्ष में अप्रैल से अक्टूबर के दौरान प्रत्यक्ष कर संग्रह में 15.2 फीसद की शुद्ध वृद्धि हुई है।
सरकार ने आम बजट 2017-18 में प्रत्यक्ष करों से 9.8 लाख करोड़ रुपये जुटाने का लक्ष्य रखा था, जिसमें से अब तक 4.39 लाख करोड़ रुपये जुटाए जा चुके हैं। दरअसल नोटबंदी के दौरान बैंकों में जो नकदी जमा हुई, उसके आंकड़ों की ‘डेटा माइनिंग’ कर आयकर विभाग ने उन लोगों को नोटिस भेजे हैं जो रिटर्न दाखिल नहीं करते। इससे कर अनुपालन में सुधार आया है। इसका सबूत यह है कि पिछले साल अप्रैल से अक्टूबर की अवधि में दाखिल किए गए आयकर रिटर्न की तुलना में इस साल अधिक रिटर्न दाखिल हुए हैं। इसके अलावा सरकार ने बेनामी संपत्ति कानून को अमल में लाते हुए बेनामी संपत्ति तथा मुखौटा कंपनियों के खिलाफ भी कार्रवाई तेज की है। ये सभी उपाय कर कानूनों का बेहतर अनुपालन सुनिश्चित कर रहे हैं।
पुराने 500 रुपये और 1000 रुपये के नोटों की हिस्सेदारी कुल मुद्रा में 86 फीसद थी, इसलिए इनके बंद होने से व्यावसायिक गतिविधियों में कुछ समय तक व्यवधान भी रहा। इसी का परिणाम रहा कि पिछले वित्त वर्ष की अंतिम तथा चालू वित्त वर्ष की पहली तिमाही में विकास दर में गिरावट दर्ज की गई। चालू वित्त वर्ष की पहली तिमाही में विकास दर घटकर 5.7 फीसद रह गई, जो तीन साल में न्यूनतम है। पिछले वित्त वर्ष की अंतिम तिमाही में देश की विकास दर 6.1 फीसद थी। सरकार ने जिस समय नोटबंदी काफैसला किया, उस तिमाही में देश की विकास दर 7 फीसद थी। पूर्व प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह समेत कई विशेषज्ञों ने नोटबंदी के फैसले के लिए सरकार की आलोचना करते हुए कहा भी था कि इस निर्णय से जीडीपी की दर में दो फीसदी की गिरावट आ सकती है। उनकी दलील थी कि नोटबंदी से असंगठित क्षेत्र को नुकसान होगा जिससे जीडीपी की वृद्धि सुस्त पड़ेगी।
सरकार की दलील रही है कि नोटबंदी के चलते आर्थिक गतिविधियां कुछ समय के लिए भले ही सुस्त पड़ी हों, लेकिन दीर्घावधि में अर्थव्यवस्था को इसका लाभ मिलेगा। वित्त मंत्री अरुण जेटली का कहना है कि संस्थागत सुधारों का असर पीछे छूट चुका है और बेहतर भविष्य के सकारात्मक संकेत दिखने लगे हैं। अंतरराष्ट्रीय मुद्रा कोष ने कहा है कि जीएसटी लागू होने से अगले वित्त वर्ष में विकास दर 7.4 फीसद रह सकती है। सरकार मानकर चल रही है कि चालू वित्त वर्ष की दूसरी और तीसरी तिमाही से विकास दर पटरी पर आ जाएगी।
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