'एक राष्ट्र, एक चुनाव' को लेकर मंथन जारी, क्या एक साथ चुनाव लोकतंत्र के लिए है सकारात्मक?
वित्त आयोग के अध्यक्ष अरविंद पानगढिया ने एक राष्ट्र एक चुनाव का समर्थन किया जबकि पूर्व योजना आयोग के उपाध्यक्ष मोंटेक सिंह अहलूवालिया ने असहमति जताई। अहलूवालिया ने आर्थिक तर्कों का समर्थन नहीं किया और सुझाव दिया कि विधानसभा चुनाव लोकसभा चुनाव से अलग होने चाहिए। सुरजीत भल्ला ने चुनावों की आवृत्ति कम करने के लिए मध्यावधि चुनाव के आसपास विधानसभा चुनाव कराने का प्रस्ताव रखा।

डिजिटल डेस्क, नई दिल्ली। वित्त आयोग के अध्यक्ष अरविंद पानगढिया ने एक संसदीय समिति के समक्ष एक साथ चुनाव कराने के विचार का समर्थन किया, जबकि पूर्व योजना आयोग के उपाध्यक्ष रह चुके मोंटेक सिंह अहलूवालिया ने इस पर असहमति जताई। उन्होंने सुझाव दिया कि सभी विधानसभा चुनाव एक साथ हों, लेकिन लोकसभा चुनाव के साथ नहीं।
एक अन्य अर्थशास्त्री सुरजीत भल्ला ने बुधवार को 'एक राष्ट्र, एक चुनाव' के सिद्धांत का समर्थन करते हुए इसे लोकतंत्र के लिए एक 'सकारात्मक शक्ति' बताया, लेकिन उन्होंने प्रस्तावित किया कि सभी राज्य विधानसभा चुनाव लोकसभा के मध्यावधि चुनाव के आसपास एक साथ कराए जाएं, जिससे चुनावों की आवृत्ति कम हो सके और राजनीतिक दलों पर जवाबदेही और नियंत्रण बना रहे।
क्यों अलग-अलग होने चाहिए चुनाव?
2014 में मोदी सरकार द्वारा योजना आयोग के बंद होने से पहले के अंतिम उपाध्यक्ष रहे अहलूवालिया ने एक साथ चुनाव कराने के आर्थिक तर्कों का समर्थन नहीं किया। उन्होंने कहा कि पिछले कुछ दशकों में अर्थव्यवस्था ने अच्छा प्रदर्शन किया है।
एक सांसद ने बताया कि अहलूवालिया ने यह तर्क नहीं माना कि बार-बार चुनाव कराने से वित्तीय घाटा बढ़ता है और चुनावों का समन्वय विकास दर को बढ़ाएगा। उन्होंने कहा कि वित्तीय घाटा चुनाव समन्वय से 'अज्ञात' है। विधानसभा चुनावों को राष्ट्रीय चुनावों से अलग कराना चाहिए, क्योंकि इससे बड़े मुद्दे जो लोकसभा अभियान के दौरान एजेंडे पर होते हैं, राज्यों के चुनावों पर प्रभाव नहीं डालेंगे।
विधानसभा और लोकसभा के चुनाव हो अलग
हालांकि, अहलूवालिया ने इस बात से सहमति जताई कि चुनावों के दौरान लागू होने वाला मॉडल कोड ऑफ कंडक्ट आर्थिक गतिविधियों पर नकारात्मक प्रभाव डालता है और ऐसे दिशानिर्देशों की समीक्षा की जानी चाहिए। सभी विधानसभा चुनाव एक साथ कराए जा सकते हैं, लेकिन यह लोकसभा चुनावों के साथ नहीं होने चाहिए।
पानगढिया ने 'एक राष्ट्र, एक चुनाव' प्रस्ताव का समर्थन करते हुए कहा कि बार-बार माडल कोड आफ कंडक्ट का लागू होना नीति निर्माण में बाधा डालता है। खरीद और परियोजना निष्पादन में देरी करता है और सरकारों के लिए सुधार की प्रभावी खिड़की को संकुचित करता है।
हर पांच साल में एक बार होने वाले चुनावों का मॉडल राज्यों और केंद्र की सरकारों के लिए एक लंबा और स्पष्ट नीति क्षितिज प्रदान करता है, जिससे अनिश्चितता कम होती है और स्थिरता बनती है, जो निजी पूंजी निर्माण को प्रोत्साहित करती है।
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