One Nation One Election: सहमति बनने के बाद भी तैयारियों में लगेंगे 3 साल, 35 लाख से ज्यादा EVM-VVPAT की जरूरत
One Country One Election India एक देश- एक चुनाव को लेकर इन दिनों राजनीतिक हलचल बढ़ी हुई है हालांकि अभी यह तय नहीं है कि इस पर कब से अमल होगा। चुनावों को एक साथ कराने में राजनीतिक अड़चन भारी खर्च और ज्यादा समय लगने जैसी दिक्कतों को देखते हुए माना जा रहा है कि केंद्र सरकार इस पूरी योजना के प्लान बी को अपना सकती है।
अरविंद पांडेय, नई दिल्ली। One Country One Election Opportunities: एक देश- एक चुनाव (One Nation One Election) को लेकर इन दिनों राजनीतिक हलचल बढ़ी हुई है, हालांकि अभी यह तय नहीं है कि इस पर कब से अमल होगा, क्योंकि केंद्र सरकार ने इसकी संभावनाओं को तलाशने के लिए हाल ही में एक उच्च स्तरीय कमेटी गठित की है।
बावजूद इसके यदि एक साथ चुनाव कराने की सहमति बन भी जाती है तब भी इससे जुड़ी तैयारियों के लिए कम से कम तीन साल का समय लगेगा। यह इसलिए क्योंकि एक साथ चुनाव के लिए निर्वाचन आयोग (Election Commission) को 35 लाख से ज्यादा ईवीएम (इलेक्ट्रानिक वोटिंग मशीन) और वीवीपैट (वोटर वेरीफाइड पेपर आडिट ट्रेल) की जरूरत होगी।
आयोग के पास कितनी ईवीएम है?
जबकि रिपोर्ट के मुताबिक, अभी आयोग के पास तकरीबन 20 लाख ईवीएम और वीवीपैट ही मौजूद है। ऐसे में बाकी की पंद्रह लाख ईवीएम और वीवीपैट तैयार कराने में उसे समय लगेगा। साथ ही इसके लिए उसे एकमुश्त बड़े बजट की भी जरूरत होगी।
एक साथ चुनाव कराने की वैसे भी जब से चर्चा शुरू हुई है, तब से निर्वाचन आयोग भी अपने गुणा- गणित में जुटा हुआ है।
सूत्रों के मुताबिक, आयोग ऐसी स्थितियों में अपनी जरूरतों को समझने में जुटा है। फिलहाल अबतक जो जानकारी निकलकर सामने आयी है, उसके तहत उसकी चिंता अभी एक साथ चुनाव कराने के लिए ईवीएम और वीवीपैट मशीनों की उपलब्धता को लेकर है, क्योंकि मौजूदा समय में इन मशीनों को तैयार करने वाली कंपनियों की क्षमता साल में सिर्फ पांच लाख मशीनें ही तैयार करने की है।
ऐसे में पंद्रह लाख मशीनों को तैयार करने में तीन साल का समय लगेगा। यही नहीं इन मशीनों को खरीदने के लिए आयोग को पांच हजार करोड़ से ज्यादा राशि की जरूरत पड़ेगी।
एक ईवीएम की कीमत?
एक रिपोर्ट के मुताबिक, मौजूदा समय में एक ईवीएम मशीन की कीमत तकरीबन 35 हजार रुपए के आसपास पड़ती है। एक ईवीएम की औसत आयु 15 साल की ही होती है।
एक साथ चुनाव की जगह सरकार अपना सकती है 'प्लान बी' भी
चुनावों को एक साथ कराने में राजनीतिक अड़चन, भारी खर्च और ज्यादा समय लगने जैसी दिक्कतों को देखते हुए माना जा रहा है कि केंद्र सरकार इस पूरी योजना के प्लान बी को अपना सकती है। जिसमें एक साथ चुनाव को लेकर सहमति न बन पाने पर सभी चुनावों को दो चरणों में कराया जा सकता है। पहला चरण लोकसभा के साथ, जबकि दूसरा चरण ढाई साल बाद यानी मिड टर्म में। ऐसे में देश में पांच सालों में सिर्फ दो बार ही चुनाव होंगे। इससे प्रत्येक छह महीनों में होने वाले चुनावों से देश को निजात मिलेगी।
सूत्रों की मानें तो चुनावी खर्च और तैयारियों में ज्यादा समय लगने जैसी दिक्कतों को देखते हुए इस विकल्प को ज्यादा उपयुक्त माना जा रहा है। नीति आयोग भी पूर्व इसे लेकर सुझाव दे चुकी है। इनता ही नहीं, केंद्र सरकार की ओर से पूर्व राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद की अगुआई में हाल ही में गठित कमेटी के एजेंडे में इस विषय को भी प्रमुखता से रखा गया है।
जानकारों की मानें तो एक साथ चुनाव कराने से पहले इस विकल्प को आजमाया जा सकता है। यह चुनाव मौजूदा उपलब्ध ईवीएम मशीनों के जरिए ही कराया जा सकेगा। इससे कोई अतिरिक्त बोझ भी नहीं पड़ेगा।
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