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    'ब्लेंडेड विंग' से कैसे सस्ता होगा हवाई किराया? पढ़ें कब तक हो जाएगा तैयार

    Updated: Tue, 18 Nov 2025 03:19 PM (IST)

    अगले पांच वर्षों में 'ब्लेंडेड विंग' डिजाइन वाला नया यात्री विमान आने वाला है। यह विमान ईंधन की खपत को आधा कर देगा और शोर भी कम करेगा। यह तकनीक पहले सैन्य विमानों में इस्तेमाल होती थी। अमेरिकी कंपनी जेटजीरो इसे बना रही है।

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    इस नई तकनीक से ईंधन की खपत आधी हो जाएगी। (प्रतीकात्मक तस्वीर)

    डिजिटल डेस्क, नई दिल्ली। अगले पांच सालों में आसमान में उड़ान भरने वाला एक बिल्कुल नया यात्री विमान तैयार हो रहा है। इसकी सबसे बड़ी खासियत है इसका 'ब्लेंडेड विंग' डिजायन यानी पंख और विमान का मुख्य शरीर एक ही चिकनी आकृति में जुड़े हुए हैं।

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    इस नई तकनीक से ईंधन की खपत आधी हो जाएगी और हवाई अड्डों के आसपास का शोर भी बहुत कम हो जाएगा। यह विमान न सिर्फ सस्ता उड़ेगा, बल्कि पर्यावरण को भी बहुत कम नुकसान पहुंचाएगा।

    सैन्य विमानों में इस्तेमाल होती है तकनीक

    इस डिजाइन का विचार दरअसल 100 साल से भी पुराना है। सन् 1920 के दशक में रूसी पायलट निकोलस वोएवोडस्की ने सबसे पहले ब्लेंडेड विंग का कॉन्सेप्ट दिया था। अब तक यह तकनीक ज्यादातर सैन्य विमानों में इस्तेमाल होती रही है, लेकिन अब पहली बार आम यात्री विमानों में आने जा रही है।

    आम विमानों में एक लंबी नलीनुमा बॉडी होती है जिसके किनारे पर पंख जोड़े जाते हैं। लेकिन इस नए डिजाइन में पंख और बॉडी एक ही सपाट और चौड़ी संरचना में मिल गए हैं। इससे विमान का वजन कम होता है, हवा का प्रतिरोध (ड्रैग) घटता है और उड़ान ज्यादा आसान और किफायती हो जाती है।

    अमेरिकी कंपनी जेटजीरो की मेहनत

    इस क्रांतिकारी विमान को बना रही है अमेरिकी कंपनी जेटज़ीरो। कंपनी का दावा है कि उनका यह विमान एक बार में 250 यात्रियों को ले जा सकेगा और 9,250 किलोमीटर तक उड़ान भर सकेगा। यानी दिल्ली से लंदन या मुंबई से सिंगापुर जैसे लंबे रूट आसानी से कवर हो जाएंगे।

    सबसे खास बात यह विमान साधारण जेट फ्यूल के साथ-साथ सस्टेनेबल एविएशन फ्यूल (SAF) पर भी चल सकेगा। भविष्य में इसे हाइड्रोजन ईंधन पर भी चलाया जा सकेगा, जिससे कार्बन उत्सर्जन बिल्कुल शून्य हो जाएगा।

    पर्यावरण के लिए वरदान

    पर्यावरण के लिए यह विमान किसी वरदान से कम नहीं है। आज के विमानों की तुलना में यह आधा ईंधन जलाएगा, यानी हवा में कार्बन डाइऑक्साइड का उत्सर्जन भी आधा रहेगा।

    इसके साथ ही, नया डिजाइन और छोटे इंजन होने से उड़ान के दौरान और लैंडिंग-टेकऑफ के समय शोर भी बहुत कम होगा। हवाई अड्डे के आसपास रहने वाले लोगों को राहत मिलेगी। यात्रियों को भी फायदा – टिकट के दाम कम होने की संभावना है क्योंकि एयरलाइंस का सबसे बड़ा खर्चा ईंधन ही होता है।

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