धुएं का असली 'विलेन' कौन? दिल्ली तो बस 30% जिम्मेदार, बाकी 70% का सच कर देगा हैरान!
North India Air Pollution: Why Delhi-Centric Solutions Are Failing? वायु प्रदूषण को केवल दिल्ली की समस्या मानना एक बड़ी भूल है। विशेषज्ञों के अनुसार, ...और पढ़ें

जानिए उत्तर भारत की 'जहरीली हवा' का पूरा सच! फोटो-पीटीआई
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डिजिटल डेस्क, नई दिल्ली। दिल्ली में प्रदूषण की समस्या को एक क्षेत्र विशेष की समस्या मानकर इससे नहीं निपटा जा सकता है। हमें यह समझना होगा कि पूरे उत्तर भारत में प्रदूषण की गंभीर स्थिति एक खास भौगोलिक स्थिति के कारण है। यह पूरे इंडो गैग्नेटिक प्लेन यानी उत्तरी मैदान की समस्या है।
ठंड में प्रदूषण की स्थिति इसलिए गंभीर हो जाती है क्योंकि हवा का प्राकृतिक वेंटिलेशन रुक जाता है। ऐसा भी नहीं है कि दिल्ली का प्रदूषण सिर्फ यहीं सीमित है। यह पूरे एनसीआर क्षेत्र और आस-पास के दूसरे प्रदेशों में भी फैलता है। इसी तरह से दूसरे प्रदेशों का प्रदूषण भी दिल्ली तक आता है। दिल्ली के प्रदूषण में उसका योगदान सिर्फ 30 प्रतिशत है। बाकी प्रदूषण का स्रोत दिल्ली से बाहर है।
ऐसे में प्रदूषण की समस्या को खत्म करने के लिए हमें सबसे पहले पूरे उत्तर भारत के शहरों के हॉटस्पॉट यानी ऐसी जगहें जहां सबसे ज्यादा प्रदूषण है, वहां से शुरुआत करनी होगी। इसके बाद शहरों और रीजन के हिसाब से कदम उठाने होंगे। सिर्फ दिल्ली में कोयला, लकड़ी और जैविक कचरा जलाने पर रोक लगाना एक तात्कालिक कदम है, लेकिन हमें पूरे उत्तरी मैदान के हिसाब से एक्शन प्लान बनाकर उस पर अमल करना होगा।
दिल्ली ही नहीं, इससे पूरे देश में हो रहा पॉल्यूशन
अगर कोयला लकड़ी और जैविक कचरे के जलने से दिल्ली की हवा प्रदूषित हो रही है तो यही प्रदूषण देश के बाकी हिस्सों में भी हो रहा है। ऐसे में जब तक हम पूरे रीजन में जीवाश्म ईंधन की जगह स्वच्छ ऊर्जा का इस्तेमाल सुनिश्चित नहीं करेंगे, तब तक प्रदूषण की समस्या से प्रभावी तरीके से नहीं निपटा जा सकता है।
यह सही है कि बिजली उत्पादन के लिए हमें कोयले की जरूरत है, लेकिन अब समय आ गया है कि हम अपने पावर प्लांट को धीरे धीरे स्वच्छ ऊर्जा स्रोतों की ओर ले जाएं। इसी तरह जैविक कचरा न जलाया जाए। इसके लिए हमें पूरे देश में घरों से निकलने वाले कचरे को एकत्र करके इससे बायोगैस या दूसरी चीजें बनाने का एक मजबूत तंत्र विकसित करना होगा। सिर्फ कुछ शहरों में कचरा प्रबंधन करके काम नहीं चला सकते हैं।

अब बात आती है कि प्रदूषण की समस्या से निपटने के लिए पूरे वर्ष काम करने की। आम तौर पर जब प्रदूषण की बात आती है सिर्फ दिल्ली की बात होती है और वह भी ठंड के कुछ महीनों की। ऐसा इसलिए होता है क्योंकि ठंड के दिनों में प्रदूषण धुंध के रूप में हमें दिखने लगता है, जबकि दिल्ली में पूरे वर्ष का एक्यूआई 126 है। वहीं विश्व स्वास्थ्य संगठन के मानक के हिसाब से पूरे वर्ष का एक्यूआई 40 होना चाहिए।
इसका मतलब है कि पूरे वर्ष दिल्ली में प्रदूषण मानक से चार पांच गुना अधिक रहता है। इसका मतलब है कि हमें प्रदूषण पर अंकुश लगाने के लिए पूरे वर्ष काम करना होगा और प्रदूषण से प्रभावित पूरे रीजन यानी उत्तर भारत में काम करना होगा।
ऐसा नहीं है कि इस दिशा में कोई काम नहीं हो रहा है। काम हो रहा है लेकिन जितने बड़े पैमाने पर और जितनी तेजी से काम होना चाहिए, उस तरह से काम नहीं हो रहा है।
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राज्य क्या करें उपाय?
राज्यों को सार्वजनिक परिवहन की दिशा में बड़े पैमाने पर काम करना होगा, जिससे लोग आसानी से आ जा सकें और सड़कों पर निजी गाड़ियों की संख्या कम हो। ग्रामीण इलाकों में खाना बनाने के लिए लकड़ी का इस्तेमाल अब भी हो रहा है। सरकार को इस दिशा में भी ध्यान देना चाहिए। आप सिर्फ शहरों में कदम उठा कर प्रदूषण से नहीं निपट सकते हैं क्योंकि अगर ग्रामीण इलाकों में प्रदूषण हो रहा है यह शहरों तक जरूर आएगा।
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(सोर्स: सेंटर फॉर साइंस एंड एनवायरमेंट की कार्यकारी निदेशक अनुमिता राय चौधरी)

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