NIRF में होगी निगेटिव मार्किंग, रिसर्च पेपर वापस लेने पर सरकार का बड़ा कदम
राष्ट्रीय संस्थागत रैंकिंग फ्रेमवर्क (एनआइआरएफ) में जल्द ही निगेटिव मार्किंग शुरू होगी जिसमें वापस लिए गए शोध पत्र शामिल हैं। शिक्षा मंत्री धर्मेंद्र प्रधान ने एनआइआरएफ के दसवें संस्करण की घोषणा की है। एनबीए के अध्यक्ष अनिल सहस्त्रबुद्धे ने कहा कि गलत तरीकों के इस्तेमाल के विरुद्ध कार्रवाई होगी। निगेटिव मार्किंग प्रणाली जल्द घोषित की जाएगी। एनआइआरएफ में पांच मानदंडों के आधार पर शिक्षण संस्थानों का मूल्यांकन किया जाता है।

डिजिटल डेस्क, नई दिल्ली। राष्ट्रीय संस्थागत रैंकिंग फ्रेमवर्क (एनआइआरएफ) में जल्द ही कई मानदंडों के लिए निगेटिव मार्किंग शुरू की जाएगी। इनमें वापस लिए गए शोध पत्र और खराब शोध पत्रों से उद्धरण शामिल हैं। शिक्षा मंत्री धर्मेंद्र प्रधान ने एनआइआरएफ के दसवें संस्करण की घोषणा की है। अपनी स्थापना के बाद से एनआइआरएफ में कभी भी निगेटिव मार्किंग नहीं रही है।
एनआइआरएफ का प्रबंधन करने वाली एजेंसी नेशनल एक्रीडिशन बोर्ड (एनबीए) के अध्यक्ष अनिल सहस्त्रबुद्धे ने कहा, ''पहली बार शोध में गलत तरीकों के इस्तेमाल और आंकड़ों के गलत प्रस्तुतीकरण के विरुद्ध कार्रवाई करने के लिए रैंकिंग पद्धति में औपचारिक रूप से दंड को शामिल किया जा रहा है। निगेटिव मार्किंग प्रणाली जल्द ही घोषित की जाएगी और मसौदा मानदंड तैयार किए जा रहे हैं।''
क्यों पड़ी निगेटिव मार्किंग की जरूरत?
उन्होंने कहा कि कई संस्थानों में दो-तीन वर्षों से बड़ी संख्या में शोध पत्र वापस लिए जा रहे हैं। इन संस्थानों की विश्वसनीयता एक मुद्दा है। जब तक हम निगेटिव मार्क्स नहीं देंगे, लोग इसे ठीक नहीं करेंगे। एनआइआरएफ में पांच व्यापक मानदंडों के आधार पर शिक्षण संस्थानों का मूल्यांकन किया जाता है। ये हैं- सीखना और सिखाना, स्नातक के परिणाम, शोध, पहुंच और धारणा।
2024 में 8,700 से ज्यादा संस्थानों की भागीदारी के साथ इसके परिणाम छात्रों, नियोक्ताओं और नीति निर्माताओं के लिए व्यापक रूप से संदर्भ का पैमाना बन गए हैं। क्यूएस, टाइम्स हायर एजुकेशन और एनआइआरएफ जैसी रैंकिंग में स्कोरिंग के लिए शोध पत्रों की वापसी को महत्व नहीं जाता, जिससे उनके शोध विभागों से शोध पत्रों की चिंताजनक संख्या में वापसी के बावजूद ये संस्थान आगे बढ़ रहे हैं।
हाईकोर्ट पहुंचा था मामला
यह बात अप्रैल में मद्रास हाई कोर्ट में दायर एक जनहित याचिका में भी उजागर हुई थी। इसमें एनआइआरएफ जैसी रैंकिंग प्रणालियों की पारदर्शिता पर सवाल उठाया गया था। याचिका में कहा गया था कि एनआइआरएफ रैंकिंग की गणना केवल शैक्षणिक संस्थानों द्वारा अपनी वेबसाइट पर उपलब्ध कराए गए आंकड़ों के आधार पर बिना किसी सत्यापन या आडिटिंग के की जाती है।
इसके बाद अदालत ने रैंकिंग पर अंतरिम रोक लगा दी थी, जिसे केंद्र के हस्तक्षेप के बाद हटा लिया गया। केंद्र ने कहा कि एनआइआरएफ रैंकिंग सूची के प्रकाशन के लिए एक विशेषज्ञ निकाय द्वारा निर्धारित ''वैज्ञानिक पद्धति'' का पालन किया जा रहा है।
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