नए ग्रामीण रोजगार कानून में क्या है खास, मनरेगा से यह कैसे है अलग, जानिए सब कुछ

VB–G RAM G: कृषि एवं किसान कल्याण मंत्री शिवराज सिंह चौहान ने लोकसभा में ‘विकसित भारत - रोजगार और आजीविका गारंटी मिशन (ग्रामीण) अधिनियम, 2025’ का विधे...और पढ़ें
एस.के. सिंह जागरण न्यू मीडिया में सीनियर एडिटर हैं। तीन दशक से ज्यादा के करियर में इन्होंने कई प्रतिष्ठित संस्थानों में ...और जानिए
125 दिन के रोजगार की कानूनी गारंटी
ग्राम पंचायत योजना होगी आधारशिला
केंद्र सरकार तय करेगी राज्यों का आवंटन
प्राइम टीम, नई दिल्ली।
VB–G RAM G: केंद्रीय कृषि एवं किसान कल्याण मंत्री शिवराज सिंह चौहान ने लोकसभा में ग्रामीण रोजगार से जुड़ा नया बिल पेश किया है। नया कानून ‘विकसित भारत - रोजगार और आजीविका गारंटी मिशन (ग्रामीण) अधिनियम, 2025’ लगभग दो दशक पुराने महात्मा गांधी राष्ट्रीय ग्रामीण रोजगार गारंटी अधिनियम (मनरेगा) 2005 का स्थान लेगा। रोजगार की कानूनी गारंटी का मूल अधिकार बरकरार रखते हुए भी यह विधेयक संरचना, फंडिंग और कार्यान्वयन व्यवस्था में मनरेगा से काफी अलग है।
नए कानून के तहत ग्रामीण परिवारों को हर वित्त वर्ष में 125 दिन के रोजगार की कानूनी गारंटी देने का प्रावधान किया गया है, जो मनरेगा में 100 दिन है। सरकार का कहना है कि यह कानून ग्रामीण रोजगार को केवल मजदूरी तक सीमित न रखकर उसे ग्रामीण बुनियादी ढांचे, आजीविका सृजन और जलवायु अनुकूलन से जोड़ता है, ताकि इसे ‘विकसित भारत @2047’ के राष्ट्रीय विजन के अनुरूप बनाया जा सके।
नए बिल के तहत राज्यों पर वित्तीय बोझ तो बढ़ेगा ही, यह केंद्र को इस बात पर ज्यादा कंट्रोल भी देता है कि स्कीम कहां और कैसे लागू की जाएगी। इसके सेक्शन 4(5) में कहा गया है, “केंद्र सरकार हर वित्त वर्ष में राज्यों के लिए अलग-अलग आवंटन तय करेगी, जो केंद्र सरकार द्वारा तय पैरामीटर पर आधारित होगा।” मनरेगा योजना मांग आधारित थी जिसमें जरूरत के हिसाब से बजट बढ़ाया जा सकता था। नए प्रस्तावित कानून के तहत राज्यों के लिए आवंटन केंद्र सरकार के फिक्स्ड बजट के अंदर ही सीमित रहेंगे।
केंद्र का नियंत्रण इस लिहाज से भी रहेगा कि रोजगार सिर्फ केंद्र द्वारा नोटिफाई किए गए ग्रामीण इलाकों में ही दिया जाएगा। दूसरे शब्दों में कहें तो केंद्र न सिर्फ हर राज्य के लिए बजट तय करेगा बल्कि यह भी तय करेगा कि इसे कहां खर्च किया जाएगा। सेक्शन 5(1) केंद्र सरकार को किसी राज्य में ग्रामीण इलाकों को नोटिफाई करने का अधिकार देता है जहां स्कीम लागू की जाएगी। मनरेगा में यह यूनिवर्सल था।
नए अधिनियम का मूल प्रावधान यह है कि हर ग्रामीण परिवार, जिसके वयस्क सदस्य अकुशल शारीरिक श्रम करने को इच्छुक हों, को साल में कम से कम 125 दिन का काम दिया जाएगा। काम करने वाले श्रमिकों को मजदूरी का भुगतान साप्ताहिक या अधिकतम एक पखवाड़े के भीतर करना अनिवार्य होगा।
मजदूरी की दर को लेकर बिल में कहा गया है कि केंद्र सरकार की तरफ से नई मजदूरी दर अधिसूचित किए जाने तक मनरेगा के तहत लागू न्यूनतम मजदूरी दर ही लागू रहेगी, यानी मजदूरी में किसी भी तरह की कमी नहीं की जा सकती। मनरेगा मुख्य रूप से श्रम-सघन मजदूरी उपलब्ध कराने पर केंद्रित था, वहीं नया कानून ग्रामीण रोजगार को एक व्यापक ग्रामीण विकास और अवसंरचना मिशन के रूप में परिभाषित करता है।
इस कानून की अहम विशेषता यह है कि इसके तहत होने वाले सभी कार्य ‘विकसित ग्राम पंचायत योजना’ से ही निकलेंगे। इन योजनाओं को ग्राम पंचायत स्तर पर भागीदारी आधारित प्रक्रिया के जरिए तैयार किया जाएगा और फिर इन्हें ब्लॉक, जिला, राज्य और राष्ट्रीय स्तर पर इंटीग्रेट किया जाएगा।
इन सभी योजनाओं को मिलाकर एक ‘विकसित भारत राष्ट्रीय ग्रामीण अवसंरचना स्टैक’ तैयार किया जाएगा, जिसमें देशभर में होने वाले ग्रामीण कार्यों का एक साझा और समन्वित खाका होगा। सरकार का दावा है कि इससे अलग-अलग योजनाओं में दोहराव रुकेगा और सरकारी निवेश भी ज्यादा प्रभावी होगा।
नए कानून के तहत सभी कार्यों को चार श्रेणियों में बांटा गया है-
1. जल सुरक्षा से जुड़े कार्य
इसमें जल संरक्षण, सिंचाई, भूजल रिचार्ज, जल स्रोतों का पुनर्जीवन, वॉटरशेड का विकास और वृक्षारोपण जैसे कार्य शामिल होंगे।
2. ग्रामीण बुनियादी ढांचा
ग्रामीण सड़कों, पुलों, पंचायत भवनों, आंगनवाड़ी केंद्रों, स्कूल भवनों, पेयजल, स्वच्छता, सौर ऊर्जा और अन्य सामुदायिक सुविधाओं का निर्माण और मरम्मत जैसे कार्य होंगे।
3. आजीविका से जुड़े ढांचागत कार्य
इसमें कृषि भंडारण, ग्रामीण हाट, कौशल विकास केंद्र, पशुपालन और मत्स्य पालन से जुड़ा ढांचा, स्वयं सहायता समूहों के लिए भवन और वैल्यू चेन से जुड़े कार्य होंगे।
4. चरम मौसम और आपदा प्रबंधन से जुड़े कार्य
बाढ़, सूखा, चक्रवात, भूस्खलन और अन्य आपदाओं से निपटने के लिए ढांचे, शरण स्थल, मरम्मत और पुनर्वास कार्य होंगे।
सरकार का कहना है कि जलवायु परिवर्तन के बढ़ते प्रभाव को देखते हुए यह कानून ग्रामीण क्षेत्रों को जलवायु-संवेदनशील और आपदा-रोधी बनाने की दिशा में एक बड़ा कदम है। मनरेगा में इस पर प्रत्यक्ष रूप से जोर नहीं दिया गया था। इसका कारण शायद यह था कि जब मनरेगा योजना लागू हुई तब जलवायु परिवर्तन का असर ऐसा नहीं था।
यह कानून कनवर्जेंस (Convergence) और संतृप्ति आधारित योजना को अनिवार्य बनाता है। बिल में प्रावधान किया गया है कि कनवर्जेंस के लिए अधिसूचित केंद्र सरकार, राज्य सरकार और स्थानीय स्तर की स्कीमों को विकसित ग्राम पंचायत योजना के साथ जोड़ा जाएगा।
योजनाओं की तैयारी में GIS आधारित टूल्स, पीएम गति शक्ति नेशनल मास्टर प्लान और डिजिटल पब्लिक इंफ्रास्ट्रक्चर का उपयोग किया जाएगा। इससे क्षेत्रीय जरूरतों के अनुसार बेहतर नियोजन संभव होगा और योजनाओं के दोहराव से बचा जा सकेगा। बिल का उद्देश्य 'सिंगल प्लान-मल्टी फंडिंग' अप्रोच की ओर बढ़ना है।
मनरेगा से एक बड़ा बदलाव यह है कि नए कानून में खेती के पीक सीजन में काम रोकने का स्पष्ट प्रावधान किया गया है। राज्यों को साल में अधिकतम 60 दिन का समय अधिसूचित करना होगा, जिसमें बुवाई और कटाई के दौरान इस योजना के तहत कोई काम नहीं होगा।
सरकार का तर्क है कि इससे कृषि कार्यों के लिए मजदूरों की उपलब्धता बनी रहेगी, जो लंबे समय से किसानों की एक प्रमुख मांग रही है। हालांकि, प्राकृतिक आपदाओं या असाधारण परिस्थितियों में केंद्र सरकार विशेष छूट दे सकती है और काम के दायरे को अस्थायी रूप से बढ़ा सकती है।
यदि किसी परिवार को काम मांगने के 15 दिन के भीतर रोजगार नहीं मिलता है, तो मनरेगा की तरह उसे बेरोजगारी भत्ता मिलेगा। पहले 30 दिनों के लिए यह भत्ता मजदूरी का कम से कम 25 प्रतिशत और उसके बाद 50 प्रतिशत से कम नहीं होगा। इस भत्ते की जिम्मेदारी राज्य सरकारों की होगी।
हर परिवार को ग्रामीण रोजगार गारंटी कार्ड दिया जाएगा, जिसकी वैधता तीन वर्ष होगी। महिलाओं, दिव्यांगों, बुजुर्गों, विशेष रूप से कमजोर जनजातीय समूहों और ट्रांसजेंडर व्यक्तियों के लिए विशेष कार्ड का प्रावधान किया गया है।
इस कानून के तहत केंद्र और राज्य स्तर पर ग्रामीण रोजगार गारंटी परिषदें बनाई जाएंगी। इसके अलावा, नीति निर्धारण और निगरानी के लिए राष्ट्रीय और राज्य स्तरीय स्टीयरिंग समितियां गठित होंगी। विभिन्न मंत्रालयों के बीच कनवर्जेंस का जिम्मा इन समितियों का ही होगा।
जिलाधिकारी को जिला कार्यक्रम समन्वयक बनाया जाएगा, जबकि ब्लॉक स्तर पर कार्यक्रम अधिकारी काम और मजदूरों की मांग-आपूर्ति का प्रबंधन करेंगे। बेरजोगारी भत्ता को मंजूरी देने और समय पर मजदूरी का भुगतान करने का दायित्व इसी ब्लॉक कार्यक्रम अधिकारी का होगा।
ग्राम, मध्यवर्ती और जिला, तीनों स्तर की पंचायतें योजना बनाने, उन पर अमल और मॉनिटरिंग के केंद्र में रहेंगी। ग्राम सभाएं नियमित रूप से सामाजिक अंकेक्षण (ऑडिट) करेंगी। उनके पास फिजिकल और डिजिटल रिकॉर्ड की एक्सेस रहेगी।
सरकार ने पारदर्शिता के लिए व्यापक तकनीकी प्रावधान किए हैं, जिनमें मजदूरों की बायोमेट्रिक उपस्थिति, योजना के तहत किए जाने वाले कार्यों की जियो-टैगिंग, रियल-टाइम डैशबोर्ड और मोबाइल फोन से मॉनिटरिंग, हर सप्ताह कार्यों, भुगतान और शिकायतों को सार्वजनिक किया जाना और आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस आधारित ऑडिट और धोखाधड़ी नियंत्रण शामिल हैं। सभी भुगतान सीधे श्रमिकों के खातों में किए जाएंगे। सभी रिकॉर्ड पब्लिक जांच के लिए उपलब्ध होंगे।
मनरेगा में केंद्र सरकार श्रम लागत का 100% और मटीरियल लागत का 75% फंड देती है। राज्य सरकारें मटीरियल लागत का 25% योगदान करती हैं। नई योजना भी केंद्र प्रायोजित होगी, लेकिन इसमें राज्यों का हिस्सा बढ़ेगा। पूर्वोत्तर और हिमालयी राज्यों के लिए केंद्र और राज्य की फंडिंग का अनुपात 90:10 होगा। बाकी राज्यों के लिए यह अनुपात 60:40 का रहेगा। केंद्रशासित प्रदेशों के लिए 100 प्रतिशत राशि केंद्र सरकार देगी।
केंद्र सरकार हर राज्य के लिए सालाना आवंटन निर्धारित करेगी। उससे अधिक खर्च करने पर अतिरिक्त राशि राज्य सरकार को ही देनी पड़ेगी। हालांकि उसका भी तरीका केंद्र सरकार ही तय करेगी। बेरोजगारी भत्ता और देरी के मुआवजे का खर्च राज्य सरकारों को उठाना होगा।
नया कानून लागू होने की अधिसूचित तारीख से मनरेगा 2005 को निरस्त कर दिया जाएगा। हालांकि पहले से चल रहे काम, परिसंपत्तियां, रिकॉर्ड, देनदारियां और कानूनी कार्यवाही नए कानून के तहत मान्य रहेंगी। राज्यों को यह विकल्प भी दिया गया है कि यदि उनके पास समान या बेहतर रोजगार गारंटी कानून है, तो वे उसे लागू कर सकते हैं।
मनरेगा जरूरत यानी मांग आधारित योजना है। लेकिन नई योजना में केंद्र सरकार राज्यवार आवंटन तय करेगी, जिससे यह सप्लाई आधारित योजना बन जाएगी। नए प्रस्तावित कानून में ग्रामीण रोजगार को एक विस्तृत विकास एवं इन्फ्रास्ट्रक्चर की रणनीति के साथ जोड़ा गया है। रोजगार की गारंटी वाले दिनों की संख्या में वृद्धि, जलवायु पर अधिक फोकस, राष्ट्रीय इन्फ्रास्ट्रक्चर प्लानिंग के साथ इंटीग्रेशन और डिजिटल सिस्टम का अधिक से अधिक इस्तेमाल नीति के बड़े बदलाव कहे जा सकते हैं।
योजना की सफलता पंचायत स्तर पर प्रभावी प्लानिंग के साथ समय पर मजदूरी के भुगतान पर निर्भर करेगी। इसके साथ यह भी देखना होगा कि खेती के मौसम में योजना पर रोक भूमिहीन परिवारों की आय को किस तरह प्रभावित करती है। संसद की बहस में यह सवाल अहम रहेंगे कि खेती के मौसम में काम रोकने का असर भूमिहीन मजदूरों पर क्या पड़ेगा और ग्राम पंचायतें इतनी जटिल योजना व्यवस्था को कैसे संभालेंगी। फिलहाल, सरकार इस विधेयक को ग्रामीण रोजगार नीति में बड़ा संरचनात्मक बदलाव मान रही है।


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